डॉ हीरालाल अलावा को UP में बड़ी जिम्मेदारी, क्या MP में भी होगा असर?
यूपी चुनाव में हीरालाल अलावा की भूमिका आदिवासी वर्ग पर केंद्रित हो रही मध्यप्रदेश की सियासत के लिए भी अहम साबित हो सकती है।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) कांग्रेस विधायक और जयस के संरक्षक डॉक्टर हीरालाल अलावा को उत्तरप्रदेश चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। हीरालाल अलावा को उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त किया गया है। यूपी चुनाव में हीरालाल अलावा की यह भूमिका भविष्य में आदिवासी वर्ग पर केंद्रित हो रही मध्यप्रदेश की सियासत के लिए भी अहम साबित हो सकती है।
बीते कई सालों से आदिवासियों के हकों के लिए संघर्ष कर रहे डॉ हीरालाल की नियुक्ति को उत्तर प्रदेश की जातिगत सियासत की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यूपी की राजनीति बहुत हद तक जातीय समीकरणों पर ही टिकी है। राज्य की सियासत में ओबीसी वोट बैंक पर सभी सियासी दलों की निगाह है लेकिन 15 जिलों में रहने वाली करीब 15 लाख की आदिवासी आबादी न सिर्फ सामाजिक रूप से बल्कि सियासत में भी उपेक्षित है। ऐसे में आदिवासियों के बीच अपनी पहचान बना चुके डॉ अलावा की नियुक्ति बेहद प्रासंगिक हो जाती है।
आदिवासी वर्ग में गहरी पैठ बना चुके जयस के सरंक्षक हीरालाल अलावा ने AIIMS में डॉक्टरी की पढ़ाई की है। वे 2012 से 2015 तक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के रूप AIIMS में सेवायें भी दे चुके हैं। साल 2016 में उन्होंने AIIMS में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी को छोड़ दी। इस बीच उन्होंने जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) नामक संगठन बनाया। आदिवासियों के लिए उनका संघर्ष रंग लाने लगा और देखते ही देखते जयस मध्यप्रदेश में राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है।
डॉ अलावा की लोकप्रियता को देखते कांग्रेस ने उनको 2018 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में मनावर सीट से मैदान में उतारा था। डॉ अलावा ने भी कांग्रेस आलाकमान के भरोसे पर खरा उतरते हुए मनावर में 15 सालों से बीजेपी के वर्चस्व को ख़त्म कर पूर्व कैबिनेट मंत्री रंजना बघेल को बड़े अंतर से हराया था। कहा जाता है कि इस चुनाव में कांग्रेस के स्थानीय नेता डॉ हीरालाल के खिलाफ थे लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनके टिकट पर मोहर लगाई थी।
राहुल गांधी के भरोसे पर खरा उतर चुके डॉ अलावा को अब उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के संगठन को दोबारा खड़ा कर रहीं प्रियंका गांधी की टीम में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। यह इस बात का भी संकेत है कि डॉ अलावा की आदिवासियों के बीच पकड़ और पैठ का अब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भी भरपूर इस्तेमाल करना चाहती है।
अगर बात मध्यप्रदेश की सियासत की हो तो सत्ताधारी भाजपा का पूरा ध्यान इस समय आदिवासी वोट बैंक पर है। आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की जयंती पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में शिवराज सरकार द्वारा मनाए गए जनजातीय गौरव दिवस के साथ ही राज्य में आदिवासियों के लिए लोकलुभावन घोषणाओं का दौर जारी है। हाल ही में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने आदिवासी वोट बैंक में सेंधमारी के हर संभव प्रयास किए थे।
मध्यप्रदेश में भाजपा ने आदिवासी वोट बैंक में सेंधमारी का सियासी गणित भी साफ़ है। राज्य में आदिवासी बहुल 47 आरक्षित सीटें है इनमें से साल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं साल 2013 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़ा और भाजपा के 31 आदिवासी विधायक जीते लेकिन 2018 में कहानी उलट गई थी। इस विधानसभा चुनाव में 47 आरक्षित सीटों में बीजेपी को केवल 16 सीटों पर ही जीत मिली थी।
ऐसे ने भाजपा आदिवासी वर्ग को साथ लाने जी तोड़ प्रयास कर रही है वहीं कांग्रेस के सामने अपना परंपरागत आदिवासी वोट बैंक बचाने की चुनौती है। मध्यप्रदेश के इस सियासी परिदृश्य में डॉ हीरालाल अलावा कांग्रेस के लिए तुरूप का इक्का साबित हो सकते हैं। यह बात अलग है कि इसके लिए डॉ अलावा को प्रदेश कांग्रेस के स्थापित आदिवासी नेताओं से भी पार पाना होगा।