उन्माद पर आमादा सरकार, टकराव नहीं उदारता से बनेगी बात
वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और लगातार बढ़ रहे उन्माद के संदर्भ में आलेख।
तय है कि हमारी सरकार मुगलिया सल्तनत के समय हुयीऔरंगजेबी को आधार बनाकर देश में एक उन्माद पैदा करने पर आमादा है। साथ ही ये भी तय है कि सरकार और सरकारी पार्टी के एजेंडे को फिलहाल कोई रोक नहीं सकता, ऐसे में बात टकराव से नहीं समझदारी से बनेगी। इस बार समझदारी देश के अल्पसंख्यकों को दिखाना होगी क्योंकि अंतत:भाजपा के निशाने पर वे ही हैं।
भाजपा के पास देश बनाने का कोई पंचवर्षीय खाका नहीं है। जो है भी उसमें मंदिर और मस्जिदें हैं। मान लीजिये कि मुगलिया सल्तनत ने अपने दौर में हिन्दुओं के पूजाघरों को तोड़कर उनके ऊपर मस्जिदें तामीर कर दी, तो इसके लिए आज के मुसलमान जिम्मेदार नहीं हैं, उनसे इसके लिए माफी मांगने की बात करना भी भी बचकानी है। बचकाना काम तो जमीदोज हो चुके हिन्दू पूजाघरों को पुन: हासिल करने की कोशिश भी है,लेकिन जब इस कोशिश का मकसद ही सियासत हो तो कोई क्या कर सकता है ? राम मंदिर के बाद ज्ञानवापी मस्जिद को हासिल करना यदि सत्तारूढ़ दल का मकसद है तो वो पूरा होकर रहेगा क्योंकि समय भाजपा के साथ है। पूरी मशीनरी उनके हाथ में है। क़ानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
देश के मुसलमानों को ये बात समझ लेना चाहिए कि भाजपा जिस तरह का देश बनाना चाहती है वो तो कम से कम इस कलियुग में नहीं बनेगा, हाँ उसे बनाने से रोकने के लिए अल्पसंख्यकों को हिकमत अमली से काम लेते हुए भाजपा को और बहाने नहीं करने देना चाहिए। अल्पसंख्यक चाहें तो एक बार में ही कह दें कि वे देश की उन तमाम मस्जिदों को त्यागने के लिए राजी हैं जिन्हें हिन्दू मंदिरों के खण्डहरों पर बनाया गया है। मुसलमान अपने लिए नयी इबादतगाहें तामीर कर लें। देश में जगह की कोई कमी नहीं है। कमी है तो दरियादिली की। ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी लाख कोशिशें कर लें लेकिन वे भाजपा को अपनी मनमानी करने से रोक नहीं सकते। ऐसे में एक प्रयोग होना ही चाहिए।
पूजाघरों को लेकर सनातनी मानयताओं के इतर भाजपा की अपनी मान्यताएं हैं। सनातनी किसी भी भग्न मूर्ति की न पूजा करते हैं और न उसे प्राण प्रतिष्ठित करते हैं, लेकिन भाजपा का हिंदुत्व ऐसा कर सकता है। बाबरी को उन्होंने गिराकर राम मंदिर बनाने का काम शुरू किया। भाजपा मानती है कि देश की करोड़ों की आबादी को मुफ्त का अन्न देकर बहलाया जा सकता है, लेकिन देश मंदिर बनाकर ही तरक्की कर सकता है, कर लेने दीजिये भाजपा को ऐसा। भाजपा ये काम कर सकती है कर रही है और किश्तों में कर रही है किन्तु एक समय तो ऐसा आएगा जब पूजाघरों को लेकर कोई विवाद नहीं रहेगा। तब भाजपा क्या करेगी ? तब जो करना है जनता करेगी ,क्योंकि मोदी युग भी नेहरू-इंदिरा युग की तरह किसी दिन तो समाप्त होगा।
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अपील ,अपील पर फैसले और उन पर अमल का ये समय नहीं है लेकिन सब हो रहा है। अदालत अपना काम कर रही है,प्रशासन अपना काम कर रहा है। अदालत हर समय तो हर मामले में लगायी गयी जनहित याचिका को ख़ारिज नहीं कर सकती। अदालत भी आखिर अदालत है। सरकार की मंशा को समझती है। कांग्रेस के जमाने में 1991 में एक कानून बना था जिसके मुताबिक किसी भी मजहबी जगह का जो 15 अगस्त 1947 को थी उसका नेचर और कैरेक्टर नहीं बदला जा सकता है लेकिन इस क़ानून को कौन मानता है? आज की सरकार तो कांग्रेस को ही नहीं मानती तो उसके जमाने में बनाये गए क़ानून को क्यों मानेगी ? देश सरकार की अपनी मर्जी से चल रहा है। अदालतों की देश के संचालन में सीमित भूमिका होती है,इसलिए जो हो रहा है,सो होगा,आगे भी होगा.इसलिए बेहतर हो की तमाम विवाद एक ही बार में निबटा दिए जाएँ।
देश के प्रधानमंत्री देश को संविधानमय नहीं राममय बनाना चाहते हैं, क्योंकि शायद उन्होंने देश बनाने के लिए संविधान की नहीं बल्कि राम की शपथ ली है। वे अपने नेपाल दौरे में भी दो देशों के बीच रिश्ते बनाने के लिए राम का ही नाम ले रहे हैं। जब राजनीति राम-राम कर ही चलना है तो उन्हें मत समझाइये। वे नहीं समझेंगे। उन्हें समझाने का एक ही तरीका है। वो है जनादेश। वक्त की प्रतीक्षा कीजिये और जब आपको सरकार चुनने का समय मिले तो समझदारी से सरकार चुनिए ताकि भविष्य में देश में ऐसी कोई सरकार न बने जो गड़े मुर्दे उखाड़कर अपना काम चलाये।
दुनिया में समझदार लोग दूसरों के अनुभवों से भी सीख लेते हैं लेकिन दुर्भाग्य कि हम ऐसा नहीं करते । हमें सोने की जलती लंका नहीं दिखाई देती। लंका में जो हो चुका है, हम उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन उस रास्ते पर आगे बढ़कर लंका को क्या हासिल हुआ ? मंदिर-मस्जिद करके हमें भी यानि भारत को भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है। भूखे पेट भजन कोई नहीं करने वाला। कोई नहीं मंदिर-मस्जिद जाने वाला .जिस दिन मुफ्त का अन्न खाकर ज़िंदा लोग हकीकत समझेंगे उस दिन देश का परिदृश्य बदल जाएगा। आज के भाग्य विधाता भूल जाते हैं की ये देश हजारों साल की गुलामी से राम-राम कहकर आजाद नहीं हुआ था। देश की आजादी के लिए बाकायदा शहादतें देना पड़ी थीं। देश ने आजादी खंडहरों में बदली गयी संस्कृति को सियासत का हथिया बनाने के लिए हासिल नहीं की थी।
बहरहाल ये आजादी का मकसद समझने का समय नहीं है क्योंकि कोई समझने को तैयार ही नहीं है। इसलिए बेहतर हो कि देश की अस्मिता को बचाये रखने के लिए समरसता बनाये रखने के लिए अब हिकमत अमली से ही काम लिया जाये। जो लोग समाज में टकराव चाहते हैं उनके मंसूबे पूरे न हों इसके लिए जरूरी है कि हम आपस में टकराएं नहीं। अगर आज की सियासत टूटे हुए खिलौनों से खेलने की जिद पर अड़ी है तो उन्हें ये सब दे दीजिये। अतीत में जो हुआ उसके लिए आज मौजूद लोग बिलकुल जिम्मेदार नहीं हैं। उन्हें अतीत के अतिचार के लिए क्षमा मांगने की कोई जरूरत भी नहीं है। उन्हें शांत रहने की जरूरत है।
याद रखिये कि ये देश मंदिरों-मस्जिदों से नहीं नहीं अपनी समरसता की संस्कृति से चलता आया है और आगे भी चलेगा। जब औरंगजेब का दौर नहीं रहा तो ये दौर भी नहीं रहेगा। हम फिर संविधान के अनुसार आगे बढ़ेंगे। सब साथ -साथ बढ़ेंगे और सबका विकास किसी नारे से नहीं ठोस योजनाओं से करेंगे ,भविष्य की योजनाएं हिन्दू -मुसलमान के लिए नहीं बल्कि हर भारतीय के लिए बनायीं जाएँगी।