बेखबर केंद्र-माननीय मौन, अस्पताल माफिया लील गया गैस पीड़ितों का BMHRC
भोपाल मेमोरियल हॉस्पीटल एंड रिसर्च सेंटर यानी बीएमएचआरसी। करीब 86 एकड़ में फैला। भव्य बिल्डिंग। खुला कैंपस। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पीटल के रूप में पहचान। बिल्डिंग निर्माण एवं अन्य कार्यों पर खर्च करीब 200 करोड़ रुपए। 16 विभाग। एक से बढ़कर एक डॉक्टर। लेकिन अब अस्पताल खुद बीमार। इसकी सेहत गिरने की अहम वजह, सभी विभागों में स्पेशलिस्ट, प्रोफेसर, कंसलटेंट, फिजीशियन वगैरह का न होना। नतीजा जूनियर डॉक्टरों के भरोसे अस्पताल संचालित।
ऐसा नहीं, कि पौने छह लाख गैस पीड़ितों को इलाज देने वाले बीएमएचआरसी की बीमारी लाइलाज है लेकिन, अफसोस इलाज करने को आईसीएमआर (इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च सेंटर) खुद तैयार नहीं। न ही केंद्र सरकार ध्यान दे रही। भोपाल के नुमाइंदे भी इस मसले पर खामोश। उनकी चुप्पी को लेकर शहर में तरह-तरह की खुसुर-पुसर भी जोरों पर है। हां, कुछ संगठन मुखर हैं। सरकार भी इनकी बात नहीं सुन रही।
इसको देखकर लगता है कि सिस्टम बेपरवाह है। संभवत: यही वजह है कि बीएमएचआरसी ने दिनों-दिन अपनी विश्वसनीयता भी खो दी। इसकी बदहाली से सबसे ज्यादा परेशान कैंसर, किडनी और हार्ट के गैस पीड़ित मरीज हैं। यहां की कैथ लैब तारीफ के काबिल लेकिन अब इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा। न ही किडनी मरीजों का डायलिसिस। कैंसर मरीजों का तो ओर बुरा हाल है।
हुजूर, इसका खमियाजा गैस पीड़ितों को भुगतना पड़ रहा है। गुरबत से घिरे कई गैस पीड़ित अब प्राइवेट अस्पताल में जाने को मजबूर हैं। ये नौबत भी एक-दो दिन में नहीं आई। ताजा मामला आईसीयू का एसी खराब होने पर मरीजों के परिजनों से कहा जा रहा हैं, वह पंखा लेकर आए हैं। एसी रखरखाव और नियमित देखरेख नहीं होने से काफी समय से बंद बताए गए हैं। जबकि सीसीयू एवं आईसीयू में ये बंद नहीं होना चाहिए।
पप्पू खान की पत्नी रेहाना गैस पीड़ित है। मुआवजा भी मिला है। इसके बाद भी उसे इलाज देने के नाम पर 25 हजार रुपए जमा करने को कहा गया है। इसके बाद भी जन प्रतिनिधियों की खामोशी और मानव अधिकार आयोग का संज्ञान नहीं लेना आश्चर्यजनक है।
अब ये भी जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट के नियंत्रण से बीएमएचआरसी के मुक्त होने के बाद वर्ष 2010 से यहां की स्वास्थ्य सेवाओं में दिनों-दिन गिरावट आती चली गई। यूनियन कार्बाइड परस्त राजनेताओं और अफसरों की बेरुखी ने आग में घी का काम किया।
भोपाल के अस्पताल माफिया या कहे तो बीएमएचआरसी को रसातल में पहुंचाने के लिए कुछ असरदारों ने वहां ऐसी स्थिति का निर्माण कराया कि डॉक्टरों के इस्तीफे की सुनामी आ गई। एक से बढ़कर एक काबिल डॉक्टर यहां से चले गए। ये गैस पीड़ितों का इल्जाम है। इल्जाम अगर गलत नहीं तो क्या वजह है…? बीएमएचआरसी की व्यवस्था सुधरने के बदले निरंतर बदतर हुई…? ये सवाल हरेक गैस पीड़ित का है। कभी रसायन एवं उवर्रक मंत्रालय तो कभी एटामिक एनर्जी विभाग तो कभी स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच यह झूलता रहा।
मौजूदा वक्त में बीएमएचआरसी का नियंत्रण आईसीएमआर के हाथों में है। यह स्वंय केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन है। आईसीएमआर की मुश्किल प्रबंधकीय कौशल की है। वे बीएमएचआरसी का प्रबंधन ठीक ढंग से नहीं कर रहा। वहीं यहां सेवाएं देने की शर्तें और सेवा नियम को लेकर डॉक्टरों में नाराजगी है। इसे दूर करने के लिए जबलपुर हाईकोर्ट में बीएमएचआरसी की ओर से कहा गया कि हम नियम और सेवा शर्तें बना रहे हैं लेकिन अब तक नहीं बनाईं। इस कारण अधिकांश बड़े डॉक्टरों ने अस्पताल छोड़ना ही मुनासिब समझा।
अस्पताल की जरुरत क्योेंं?
यूनियन कार्बाइड से गैस रिसाव के बाद हुए अध्ययन में ये बात सामने आई थी कि इसका दुष्प्रभाव दीर्घ अवधि तक रहेगा। विभिन्न सर्वे में भी ये सामने आया। गैस त्रासदी के 36वर्ष बाद भी लोग श्वांस, किडनी, कैंसर, आंख की रोशनी से लेकर अन्य बीमारियों से घिरे है। तब एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में गैस पीड़ितों के बेहतर इलाज के लिए अस्पताल की आवश्यकता जताई थी। खुद बीएमएचआरसी की एक स्टडी रिपोर्ट बताती है कि एक लाख 70 हजार गैस पीड़ित स्थायी रूप से बीमार है।
एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था उद्घाटन:
वर्ष 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बीएमएचआरसी का उद्घाटन किया था। लेकिन आधी-अधूरी व्यवस्थाएं होने से खिन्न हो गए। अस्पताल का मुआयना किए बगैर वे यहां से चले गए थे।
यूका की प्रॉपर्टी बेचकर बना अस्पताल:
गैस पीड़ितों को इलाज देने की खातिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यूका की कुछ प्रॉपर्टी को बेचा गया था। इससे 294 करोड़ हासिल हुए थे। इस राशि से अस्पताल को बनाया गया।
प्रसंगवश:
बरतानिया हुकूमत के एटार्नी जनरल रहे सर ईयान पर्सिबल ने वर्ष 1992 में लंदन में गैस पीड़ितों को इलाज मुहैया कराने की खातिर भोपाल हॉस्पीटल ट्रस्ट रजिस्टर्ड कराया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में ये मामला आने पर इस ट्रस्ट को फिर यहां रजिस्टर्ड कराया गया। वे करीब डेढ़ दशक तक ट्रस्ट के ट्रस्टी भी रहे। इसी तरह चीफ जस्टिस रहे एएम अहमदी दो दशक तक इसके चेअरमैन रहे।
आखिर में सिर्फ इतना ही
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी लेकिन आग जलनी चाहिए।
(दैनिक भास्कर भोपाल में न्यूज एडिटर अलीम बज़्मी की फेसबुक पोस्ट)