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18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से : 31 दिन के सीएम का खंडवा से था खास कनेक्शन

वकालत से करियर शुरू करने के बाद भगवंतराव मंडलोई स्वतंत्रता आंदोलन और कांग्रेस से जुड़े और बाद में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) वकालत से करियर शुरू करने के बाद भगवंतराव मंडलोई (bhagwantrao mandloi) स्वतंत्रता आंदोलन और कांग्रेस से जुड़े और बाद में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उ जोशहोश मीडिया की सीरीज ’18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से’ में आप जान सकेंगे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों की अनसुनी कहानियां। आज पढ़िए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भगवंतराव मंडलोई (bhagwantrao mandloi) के किस्से।

प्रदेश के दूसरे और चौथे नंबर के मुख्यमंत्री थे भगवंतराव मंडलोई

1892 में पैदा हुए मंडलोई खंडवा से थे। वही खंडवा जहां अशोक कुमार और किशोर कुमार अपने शुरुआती सालों में रहे। वकालत से करियर शुरू करने के बाद वो स्वतंत्रता आंदोलन और कांग्रेस से जुड़े, लेकिन अपनी ज़िंदगी के पहले 50 साल उन्होंने खंडवा में ही लगाए। आज़ादी के बाद रविशंकर शुक्ल के कैबिनेट में उन्हें मंत्रीपद मिला, तब जाकर वो सूबे की राजनीति में उठे। 

पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल और मंडलोई जिनके पास राजस्व मंत्रालय था

भगवंतराव मंडलोई पहली दफा महज 31 दिन ही सीएम रह सके थे। 1 जनवरी 1957 से 31 जनवरी 1957 तक। इस तरह वह मध्यप्रदेश के पहले कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने। दरअसल, दिसंबर 1956 में जब रविशंकर शुक्ल का निधन हुआ तब मध्यप्रदेश को संभालने के लिए कई दावेदार सामने आने लगे। द्वारका प्रसाद मिश्र उन दिनों जवाहरलाल नेहरू का विरोध करने पर कांग्रेस से बाहर थे। रविशंकर शुक्ल की मृत्यु के एक दिन बाद ही 1 जनवरी को इंदौर में कांग्रेस महासमिति का अधिवेशन होना था, जिसे एक दिन आगे बढ़ाया और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य भगवंतराव मंडलोई को शपथ दिलाई गई, तखतमल जैन को यह ठीक नहीं लगा। तखतमल जैन खुद को रविशंकर शुक्ल का उत्तराधिकारी मानते थे। इसके बाद कैलाशनाथ काटजू सीएम बने।  

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डॉक्टर काटजू के पांच साल के कार्यकाल के बाद सन् 1962 में जब आम चुनाव हुए उसमें कांग्रेस तो सत्ता में आई, लेकिन सिटिंग चीफ मिनिस्टर के रूप में काटजू जावरा से जनसंघ के उम्मीदवार लक्ष्मीनारायण पांडे के हाथों चुनाव हार गए। इन चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। 288 में से केवल 142 सीटें ही कांग्रेस जीत सकी। कैलाशनाथ काटजू के चुनाव हार जाने पर 18 महीनों के लिए 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक दूसरी बार खंडवा के भगवंतराव मंडलोई मुख्यमंत्री बने। इसके पहले मंडलोई रविशंकर शुक्ल के देहांत होने पर 31 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे। अक्टूबर 1963 में कांग्रेस का कामराज प्लान आने के कारण मंडलोई को जाना पड़ा और काटजू को फिर से मध्यप्रदेश की कमान देने की तैयारी होने लगी। इसी बीच में राजनीति में चाणक्य कहे जाने वाले द्व्रारका प्रसाद मिश्र ने ऐसी बिसात बिछाई कि उन्हें 1963 में मुख्यमंत्री चुन लिया गया। 

शपथ लेते भगवंतराव मंडलोई

[साभार – राजनीतिनामा मध्यप्रदेश]

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