किसने सोचा था ‘महाकाल लोक’ से इतनी जल्दी मलबा उठाना पड़ेगा?
महाकाल लोक में हवा से क्षतिग्रस्त मूर्तियों के संदर्भ में पत्रकार निरुक्त भार्गव का आलेख
उज्जैन उतना अजीब नहीं है, जितने यहां के जागरूक लोग जो खामखां तूफ़ान उठाए फिरते हैं! मुए मीडिया यानी खबरिया माध्यमों के प्रतिनिधि तो तिल का ताड़ बनाने में ही लगे रहते हैं! इन सबकी खूब-खूब ज़िन्दगी बीत चुकी है, पर न तो ये राजा (राजनीति और प्रशासन के) और न ही रंक (झोंपड़ियों और महलों में रहने वालों) के रहन-सहन और कार्य-व्यवहार से कुछ सीख लेना चाहते हैं! रविवार को आये बवंडर में नव-निर्मित और बहुचर्चित ‘श्री महाकाल लोक’ की सप्त-ऋषियों की सात में छ: मूर्तियां क्या टपक पड़ीं, इन नामुरादों ने सन्डे मना रही जनता का अमन-चैन ही छीन लिया!
रविवार को महाकाल जी की नगरी में आये बवंडर से इस लोक के रहवासी पहले से परिचित हैं. इसकी भयावहता को वे सिंहस्थ महापर्व 2016 के दौरान देख, समझ और झेल चुके हैं. इस बार भी अचानक 12 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आई हवा, आंधी, कड़कड़ाती बिजली और मध्यम बारिश ने देखते-ही-देखते तांडव मचा दिया: अनेक बड़े-बड़े पेड़ धराशायी हो गए तो मकानों/दुकानों के बोर्ड, शीशे ध्वस्त हो गए और कुछेक जीर्ण-शीर्ण संरचनाओं के भी परखच्चे उड़ गए. मनुष्य और पशु-पक्षियों की हानि भी हुई है! रहा सवाल बिजली आपूर्ति का तो वो काफी हद तक ठप हो गई और हालात ये थे कि शाम को जिला चिकित्सालय में अंधेरा पसरा हुआ था. शादी-ब्याह और अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम को मानों पलीता-सा लग गया!
हर नई सुबह के साथ नेता नगरी जो करती है, वो कर रही थी: सत्ता की चाश्नी में डूबे लोग भूमि-पूजन, आख्यानों-व्याख्यानों, परिक्रमा, पेट-पूजन और निद्रा लोक में रत थे, तो ‘तथाकथित’ विपक्षी लोग निंदा और फब्तियां कसने के अभियान में सक्रिय दिखे: कुछेक रैली निकालने और टिकट पाने की जुगाड़ में अपना प्रोफाइल चमकाते दिखे!
प्रशासनिक क्षेत्रों का तो आलम वही था, जो शासकीय अवकाशों को छोड़कर सोम से शुक्र होता है! सब जगह अलमस्ती छायी हुई थी! संभाग के बड़े ओहदेदार गायब दिखे: आधे इंदौर में तो शेष भोपाल! जो-जो होना था, वो-वो होता रहा, उन सबकी मजाल से! और जब इन्तेहां होने लगी तो जरूर मुलम्मा चढ़ाने के लिए ‘तंत्र’ सक्रिय हो उठा!
वर्तमान दौर के पसारियों (बोले तो जागरूक नागरिक/पत्रकार) को मसाला नहीं मिलता यदि उज्जैन में ‘श्री महाकाल लोक’ या ‘श्री महाकाल महालोक’ भी रविवार का तांडव नृत्य नहीं देखता! लिखना अनिवार्य है कि जिस प्रकार से कतिपय मूर्तियां दरकने लगीं, उन्होंने उक्त प्रजातियों के उन कथनों और कथानकों को पुष्ट कर दिया जिसमें तमाम आशंकाएं बार-बार प्रकट की गईं थीं! अब ये सब कथाकार अपनी बात कह रहे हैं, लिख रहे हैं और प्रदर्शित कर रहे हैं तो धर्म/आध्यात्म/राजनीति/प्रशासन/मैनेजमेंट वाले लोक अन्तर्ध्यान हो गए हैं! ‘नासमिटे’ लोग लोक आयुक्त से लेकर सीबीआई/ईडी/आईटी जांच की मांग कर रहे हैं और स्थानीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक को लपेट रहे हैं: 310 करोड़ रुपए के पहले चरण के कार्यों में हुए कथित घोटाले, घपले, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के बरक्स!
हाथ तो ताज महल बनाने वाले का भी कटा था और शोले फिल्म के ठाकुर साहब का भी, मगर क्या अब राजस्थान के उन कारीगरों की बारी है, जिनको सप्त-ऋषियों की मूर्ति बनाने का ‘पेटी कॉन्ट्रैक्ट’ (उप-ठेका) दिया गया था? क्या इस बार गुजरात के वो सब ठेकेदार नपेंगे जो राजनीतिक और व्यावयासिक संरक्षण के चलते मध्यप्रदेश में बेहिसाब मलाई खा रहे हैं?
जागरूक लोगों को भी नया मुद्दा मिल जाएगा और मीडिया के लोगों को भी कोई नई बटेर मिल ही जाएगी! न स्थानीय प्रशासन और न ही राज्य शासन कोई बड़ा कदम उठाएगा! केंद्र में बैठे लोगों से कोई उम्मीद करना बेमानी होगा!…क्या महाकाल महाराज भी…?
(लेखक पत्रकार हैं)