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संक्रमण की राजनीति से मुक्ति का योग बने मकर संक्रांति

पत्रकार राकेश अचल का मकर संक्रांति के अवसर पर भारतीय राजनीति के संक्रमण के संदर्भ में आलेख।

भारत में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है,अनेक दंतकथाएं हैं,धार्मिक मान्यताएं हैं,बावजूद इसके देश की राजनीति का संक्रमण दूर नहीं होता। क्या वर्ष 2022 की मकर संक्रांति भारत की राजनीति को भ्र्ष्टाचार,दल-बदल,संकीर्णता और दिनों-दिन बढ़ रही बर्बरता से निजात दिला पायेगी?

भारतीय राजनीति को लेकर किंवदंतियां नहीं साक्ष्य भी हैं कि कब उसे भ्र्ष्टाचार,भाई-भतीजावाद,संकीर्णता और साम्प्रदायिकता का ग्रहण लगा। इन सभी के पीछे किसका शाप है,कोई नहीं जानता लेकिन इन सबसे मुक्ति का कोई जतन भी इस देश में महात्मा गांधी के बाद किसी ने गंभीरता से नहीं किया और जिसने किया उसे खुद ही जीवन से मुक्ति दे दी गयी।

भारतीय राजनीति में असहमति के साथ क्रूरता का बर्ताव तो 30 जनवरी 1948 से ही शुरू हो गया था,लेकिन संयोग से इस पर लगाम लगी रही। असहमति और प्रतिशोध ने भारतीय राजनीति को खून आलूदा बना दिया। आजाद भारत के 75 साल के इतिहास में महात्मा गांधी के बाद दो-दो प्रधानमंत्री गोलीयों के शिकार बनाये गए लेकिन किसी ने राजनीति को हिंसामुक्त बनाने की गंभीर कोशिश नहीं की,उलटे अब नियोजित तरिके से राजनीति को रक्तरंजित करने वालों के महिमामंडन का युग शुरू हो गया है।

राकेश अचल

भारतीय राजनीति में प्रतिशोध निरंतर बढ़ता जा रहा है और इसके लिए सभी तरह के औजारों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हाल ही में दल-बदल करने वाले यूपी सरकार के एक मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ एक सात साल पुराने मामले में गिरफ्तारी वारंट का जारी होना एक बहुत छोटा सा उदाहरण है। स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रति किसी की कोई सहानुभूति हो तो हो किन्तु मेरी बिलकुल नहीं है लेकिन वे प्रतिशोध की राजनीति के ताजा शिकार हैं इसलिए उनका नाम लेना जरूरी है।

कभी-कभी लगता है कि अंग्रेजों से आजाद होकर भी हम अपने लिए एक मुफीद राजनीतिक प्रणाली विकसित नहीं कर पाए, इसके लिए लम्बे समय तक देश में सत्ता करने वाली कांग्रेस के साथ ही वे दल भी जिम्मेदार हैं जो बाद में समय-समय पर सत्ता में आये। किसी ख़ास दल का नाम लूंगा तो मित्र नाराज हो जायेंगे इसलिए मै संकेतों में अपनी बात कर रहा हूँ। हमारे यहां धर्म में तो हर साल संक्रांति आती है। सूर्य के शाप मुक्त होने का जश्न मनाया जाता है। दान-पुण्य किया जाता है किन्तु राजनीति के शनि को कोढ़ग्रस्त होने से बचने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता। ये हमारे समाज का दोगलापन है।

वर्ष 2022 भारतीय राजनीति को तमाम तरह की बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस साल के शुरू में ही देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। देश के मतदाता इस अवसर को भारतीय राजनीति में परिवर्तन के लिए इस्तेमाल कर शुभ और अशुभ में से किसी एक को चुन सकते हैं। ये मौक़ा है जब इस बात का चुनाव हो सकता है कि देश को कैसी राजनीति की जरूरत है? क्या देश की राजनीति निठठ्लों ,बाबा-बैरागियों और माफियाओं के जरिये आगे बढ़ाई जाना चाहिए या फिर राजनीति में ईमानदार युवा वर्ग को अवसर दिया जाना चाहिए।

इन पांच प्रांतों का मतदाता दल-बदल,भ्र्ष्टाचार,जातिवाद जैसे सर्पों का सर इन चुनावों के जरिये कुचल सकता है। मुमकिन है कि ऐसा करते हुए कुछ सांप मतदाताओं को भी काट लें किन्तु इसकी फ़िक्र नहीं करना चाहिए। राजनीति में पढ़े-लिखे, ईमानदार संवेदनशील और संस्कारी लोगों का प्रवेश इस मकर संक्रांति पर संकल्प के साथ हो सकता है। बीते साल देश के किसानों ने सत्याग्रह कर इस दिशा में पहल की है लेकिन वे राजनीति से दूर हैं, उनके पास खेत-खलिहान हैं।

बीते तीन दशक से उत्तर प्रदेश में सत्ता से दूर कांग्रेस ने इस बार लड़कियों को महत्व देकर एक छोटी सी कोशिश जरूर की है किन्तु ये अकेले कांग्रेस के बूते की बात नहीं है। समाजवादियों ने तो दल-बदलुओं को अपनी गोद में बैठकर जाहिर कर दिया है कि वे नहीं सुधरने वाले.मायावती इस अभियान में पहले ही नाकाम साबित हुईं हैं और स्वामी प्रसाद की गति से बचने के लिए कहीं छुपी बैठीं हैं।

दरअसल इस नवाचार की जरूरत हर उस राजनितिक दल को है जो भारतीय राजनीति को संक्रमण से बाहर निकालने की लालसा रखता है। राजनीति को संक्रमण से बाहर निकालने में राजनीतिक दलों से कहीं ज्यादा हमारे मतदाता सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। वे किसी भी दल के समर्थक हों देखें की उनके बीच वोट मांगने वाला व्यक्ति कैसा है? इस बार दलों को नहीं चेहरों को देखकर चुनाव होना चाहिए। हर चेहरे का इतिहास मतदाता के सामने होना चाहिए मतदाता साहस कर हर बाहुबली, धनपशु और जातीयता के आधार पर राजनीति करने वालों की शिनाख्त कर उनका बहिष्कार करे। अन्यथा न उसे टैनियों से मुक्ति मिलेगी और न राजनीति के बाबाओं से।

भारतीय राजनीति की बुराइयां तिल-गुड़ दान करने या सुरसरि में डुबकी लगाने से दूर होने वाली नहीं हैं। इसके लिए कमर कसकर सामने आना पड़ेगा। धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले भारतीय राजनीति का उद्धार नहीं कर सकते। राजनीति के उद्धार के लिए या तो विवेकानद चाहिए या महात्मा गांधी लेकिन आज के दौर में अवतार किसी और ने लिया है। अपने आपको असुरक्षित समझने वाले अवतार राजनीति को कैसे भयमुक्त कर सकते हैं ये यक्षप्रश्न है?

देशवासियों को मकर संक्रांत की बधाई और शुभकामनाएं देना एक औपचारिकता है, इसे औपचारिकता से मुक्ति दिलाने के लिए राजनीति पर लगे खून के दाग मिटाना होंगे। पहल कहीं से,कोई भी कर सकता है। इसके लिए किसी लाउंड्री में जाने की जरूरत नहीं है। सफाई अपने घर से ही शुरू कीजिये और भारतीय राजनीति को संक्रमण से मुक्ति दिलाइये। ये काम अवतारों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। मतदाता ही इसका निमित्त बने तो श्रेयस्कर हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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