बसंत को मौन कर गईं स्वर कोकिला लता मंगेशकर
वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की भारत रत्न गायिका लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि।
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इधर बसंत आया उधर स्वर कोकिला लता मंगेशकर अनंत यात्रा पर निकल गई। वे जब पिछले दिनों अस्पताल में भर्ती हुई थी तब मैंने उनके लिए देश से उनके लिए प्रार्थना है अपील की थी लेकिन सब अपीलें मंजूर कहां होती हैं। लता मंगेशकर नेता नहीं थीं, कलाकार थीं और उनके चाहने वालों की दुनिया देश के किसी भी बड़े से बड़े नेता के भक्तों की दुनिया से बड़ी दुनिया है। वे राजनीति,धर्म,जाति, क्षेत्रों से बहुत ऊपर की हस्ती थीं ।
93 साल की लता जी इस देश की जनता की कोई 87 साल से अनवरत सेवा कर रहीं थीं। इस सेवा के बदले में उन्हें जनता का अपार स्नेह मिला है। इसलिए उनकी कुशलता के लिए पूरा देश समवेत स्वर में प्रार्थना की।क्योंकि लता मंगेशकर जैसे कलाकार रोज-रोज पैदा नहीं होते।
दूसरों की तरह मैं भी लता मंगेशकर का प्रशंसक हूँ। मेरे जैसे करोड़ों प्रशंसक हैं उनके। वे गाती हैं और लोग उन्हें सुनते हैं। वे जीवन के हर रस को अपने गायन से साकार कर चुकी हैं। मै उन्हें स्वर कोकिला कहना ही अधिक पसंद करता हूँ हालांकि कहने वाले उन्हें स्वर साम्राज्ञी भी कहते हैं। साम्रज्ञी एक सामंतवादी शब्द है किन्तु स्वर कोकिला एक सहज और पावन अलंकार ,जो कभी नष्ट नहीं हो सकता।
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लता मंगेश्कर आईसीयू में भर्ती थी। उनका इलाज कर रहे डॉक्टर प्रतीत समदानी ने लता मंगेश्कर के स्वास्थ्य को लेकर कहा,था कि ‘लता जी जल्द से जल्द ठीक हो जाएं इसके लिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करें। हमें डॉ समदानी की सलाह पर अमल करना चाहिए। दरअसल प्रार्थना का यही सही समय है। लता जी हमारी थाती हैं।
लता जी उपलब्धियां किसी भी प्रधानमंत्री ,किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से अधिक नहीं तो कम भी नहीं हैं। 1942 से मात्र 13 साल की उम्र से संगीत के माध्यम से देश की सेवा कर रही लता जी ने 30 हजार से अधिक गीत गाये हैं। उनकी उपलब्धियों में किसी राजनितिक दल या किसी संघ का कोई योगदान नहीं है। वे स्वनिर्मित कलाकार हैं। भारत की लगभग प्रतीक भाषा में गीत गाने वाली लता जी भारत ही नहीं अपितु भारतीय उप महाद्वीप की सबसे अधिक लोकप्रिय कलाकार हैं। उनके पास जो कुछ है वो उनका अपना कमाया हुया है। इसीलिए उनकी उपलब्धियों पर देश को गर्व होता है।
मध्यप्रदेश की धरती इंदौर में जन्मी लता जी दीनानाथ -शेवंती मंगेशकर की बेटी हैं। उनका पूरा परिवार संगीत का पुजारी है,लेकिन संगीत की जो ध्वजा लता जी ने फहराई वैसा कोई दूसरा नहीं कर सका। अभिनय से गायकी की दुनिया में आयीं लता मंगेशकर ने उस जमाने में गाना शुरू किया जब देश में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी।
मैं इन तीनों का मुरीद रहा हूँ। लता जी ने इन सबसे प्रतिस्पर्धा नहीं की बल्कि अपना अलग मुकाम बनाया। हमेशा नंगे पांव खड़े होकर गाना गाने वाली लता जी एक जीवंत किंवदंती हैं। उनके नाम पर देश में पुरस्कार दिया जता है और देश में जितने भी पुरस्कार हैं लगभग सभी उनके दामन में सुशोभित हो रहे हैं। वे भारतरत्न हैं इसलिए उन्हें मिले दीगर पुरस्कारों का जिक्र करना मै उचित नहीं समझता।
लता मंगेशकर भारत की उन चुनिंदा शख्सियतों में से हैं जिन्हें राजनीति के इतर काम करते हुए भी पूरी दुनिया जानती है,आदर करती है। वे महात्मा गांधी से लेकर परमात्मा नरेंद्र मोदी का युग भी देख चुकी हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता जैसी कल थी वैसी आज भी है,भले ही आज वे गा नहीं रहीं। उन्होंने हर वर्ग के लिए गाया। उन्होंने सुख-दुःख,उल्लास,पीड़ा,हमदर्दी यानि जीवन के हर रंग को अपने सुरों से सजाया। उनके गीत कभी मरहम तो कभी मुगली घुट्टी 555 का काम करते हैं। वे शब्दों को जीवांत करने की कला में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने देश की कम से कम पांच पीढ़ियों के लिए गीत गाये। बच्चे उनकी लोरियां सुनकर सो जाते हैं। किशोर प्रफुल्लित हो जाते हैं.सेना के जवानों में जोश भर जाता है। उम्र दराज लोग लता जी को सुनकर मुदित हो जाते हैं।
संगीत के सातों सुरों को साधने वाली लता मंगेशकर सबसे अलग हैं, मैंने संगीत की राजधानी ग्वालियर में रहकर भारत के श्रेष्ठतम गायकों को सुना है लेकिन वे लता मंगेशकर की तरह जन-जन के गायक नहीं हैं। वे भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर जरूर हैं लेकिन आम जनता का हृदय स्पंदित करने का काम जैसा लता मंगेशकर ने किया वे नहीं कर पाए फिर चाहे वे गंगू बाई हंगल हों या और कोई। ऐसी लता मंगेशकर जी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)