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सियासी नफरत पर मौन नेतृत्व, एक के बाद दूसरे ‘ताज’ पर कुदृष्टि

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का ताजमहल को लेकर चल रहे विवाद के संदर्भ में आलेख

आसमान में चाँद की तरह अपनी धरती पर मुझे अगर कुछ खूबसूरत लगता है तो वो इमारत है ‘ ताज महल ‘ ताजमहल कोई महल नहीं बल्कि एक मकबरा है लेकिन उसे महल कहा जाता है। दुनिया बहुत बड़ी है और दुनिया में अनेक देशों में ताजमहल से भी ज्यादा खूबसूरत और बड़ी भव्य-दिव्य इमारतें हैं लेकिन वे सब ‘ ताज महल ‘ नहीं हैं। उन्हें कब और किसने बनाया है, ये अतीत है और सब जानते हैं इस बारे में लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हमारे देश में सत्तापोषित एक वर्ग इस खूबसूरत इमारत के पीछे पड़ा हुया है। सिर्फ ताज ही नहीं बल्कि ताज की तरह देश की वे तमाम इमारतें इस वर्ग के निशाने पर हैं जो हमारे अतीत का हिस्सा हैं। इस समाज को इन सब पर गर्व करने में अब शर्म आती है।

देश के नव निर्माण के असल दायित्व से मुंह चुराने में माहिर राजनीतिक दल और राजनीतिक दलों के नेतृत्व खुद मौन रहकर कानों में ऐसा जहर फूंक रहे हैं। जो न केवल जीवित समाज को बल्कि निर्जीव इमारतों तक के प्रति घृणा पैदा कर रहा है। इस समाज ने देश की 25 करोड़ आबादी को अपना जानी दुश्मन मान लिया है। इस बड़ी आबादी के खिलाफ रोज मनगढ़ंत किस्से फैलाये जा रहे हैं। इतिहास पढ़ने में कोई दिलचस्पी न रखने वाली पीढ़ी को एक ऐसा इतिहास पढ़ाया जा रहा है जो घृणा के अलावा और कुछ नहीं दे रहा। ताजमहल भी इसी घृणा का शिकार है अब।
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यदि ये मान भी लिया जाये कि ताजमहल एक ऐसा मकबरा है जो किसी दूसरे मजहब के स्मारक को तोड़कर बनाया गया है तो क्या आज की सरकार और सरकार में बैठे अतीत की इस निशानी को ही नहीं बल्कि पूरे देश में उस पांच शतक पुराने दौर की हर निशानी को नेस्तनाबूद कर एक नया हिन्दुस्तान गढ़ना चाहती है? एक बार ध्वस्त किये गए स्मारक पर बने किसी दूसरे स्मारक को ध्वस्त कर फिर से वहां कुछ नया बनाना कौन सी संस्कृति है?

दुनिया का इतिहास गवाह है कि सत्ताएं आती-जाती रहतीं हैं और वे अपने पीछे ध्वंश और निर्माण की कहानियां लिखती और मिटाती रहतीं हैं लेकिन क्या आज भी उसी मानसिकता से शासन किया जा सकता है? ‘ताजमहल’ हो या कोई दूसरा मुगलिया स्मारक, क्या आज ध्वस्त कर वहां नया निर्माण कराया जाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। ये काम अफगानिस्तान ने भी बामियान में बुद्ध मूर्तियों को बारूद से उड़ाकर किया था, क्या हासिल हुआ उसे ? भारत में भी एक बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर अब वहां भव्य राममंदिर बनाया जा रहा है। इससे क्या हासिल हुआ देश को ? क्या देश की वो 80 करोड़ आबादी इस ध्वंश और निर्माण के बाद भूख,गरीबी से मुक्त हो गयी जो आज भी सरकार से मिलने वाले मुफ्त अन्न पर गुजारा करने पर मजबूर है।

राकेश अचल

हमारी मौजूदा सरकार ताजमहल से बड़े देश के ताज माने जाने वाले जम्मू-कश्मीर के टुकड़े पहले ही कर चुकी है। कश्मीर तो किसी मुगल ने नहीं बसाया था! क्या हासिल हुआ देश का मुकुट मणि विभाजित करके? वहां आज तीन साल बाद भी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया आरम्भ नहीं हो सकी है। वहां आजतक कश्मीरी पंडितों की वापसी का रास्ता नहीं खुल पाया है। खुला है तो काशी में ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद। जनता और सरकार को भूख से नहीं लड़ना बल्कि एक खंडित किये जा चुके स्मारक में रखी एक मूर्ती की पूजा केलिए लड़ना है। लड़िये ,जरूर लड़िये और लोगों को आपस में लड़ाइये क्योंकि लोकतंत्र ऐसे ही मजबूत हो सकता है शायद?

गनीमत है कि इस लड़ाई में देश की अदालतें पूरी तरह से शामिल नहीं हुईं। अन्यथा हालात और खराब हो सकते हैं। अभी अदालतें ताजमहल को लेकर दायर की गयी जनहित याचिका को ख़ारिज करने का साहस दिखा रही हैं लेकिन कल भी ऐसा होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि जहर धीरे-धीरे लोकतंत्र के सभी स्तम्भों को नीला करता जा रहा है। आजादी के पहले क्या हुआ और आजादी के बाद क्या होना चाहिए ,ये जाने बिना देश की जनता को मूर्ख बनाने का अभियान चलना एक बड़ा दुस्साहस है।

कभी-कभी मुझे लगता है कि लोकतंत्र की रेल ‘ डिरेल ‘ हो चुकी है। अब इसे पटरी पर लाने का एक ही उपाय है कि देश में सत्ता परिवर्तन होने के साथ देश की नयी पीढ़ी में जो जहर घोल दिया गया है उसका उपचार हो। इस जहर के शिकार अब कोमा की स्थिति में हैं। मुझे रामचरित मानस में युद्धोन्मत्त कुम्भकर्ण की छवि याद आती है। जिसमें उसे कालवश होने के कारण अपना-पराया कुछ नहीं दिखाई देता। ठीक यही स्थिति आज है। आज हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने की सनक ने देश की एक पूरी पीढ़ी को मदांध कर दिया है। ये पीढ़ी मंहगाई,बेरोजगारी,अशिक्षा,स्वास्थ्य ,गरीबी ,कुपोषण जैसे मुद्दों को जानती ही नहीं है। इस पीढ़ी को सिर्फ और सिर्फ ये सिखाया जा रहा है कि ये अहिन्दू है और ये हिन्दू।

देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जाना होता तो आजादी की लड़ाई जीतने के बाद ही बना दिया गया होता लेकिन नहीं बनाया गया क्योंकि इसकी जरूरत नहीं थी। आज भी इसकी कोई जरूरत नहीं है। ये देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यही इस राष्ट्र की खूबसूरती है। धर्म के आधार पर बने देशों में क्या हो रहा है ये आज सबके सामने है। हमारे पड़ौस में नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र था,अब नहीं है। दूर कम्बोडिया में कभी हिन्दू धर्म की पताकाएं फहराती थीं लेकिन आज नहीं है लेकिन ये सब राष्ट्र अपने-अपने देश को खुशहाल बनाने के लिए यत्न कर रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए नहीं ,लेकिन हमारी कोशिश भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की है इसके लिए हम एक या दस ताजमहल तोड़ सकते हैं। अतीत के मंदिरों पर बनी मस्जिदें गिरा सकते हैं। हमें जनादेश इसी के लिए मिला है।

आजाद भारत में जितने नए बाँध बने वे हिन्दू राष्ट्र का नारा देकर नहीं बनाये गए। ये तो अब हो रहा है। एक से एक बड़ी मूर्तियां बनाकर देश को मजबूत बनाया जा रहा है। देश की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त का अनाज बांटने के बजाय उसे आत्मनिर्भर बनाने की फ़िक्र किसी को नहीं है सब देश को एक ऐसा हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जिसमें भूख हो,कुपोषण हो घृणा हो लेकिन राष्ट्र हिन्दू हो। मैं और मेरे जैसे करोड़ों लोग जिस राष्ट्र में रह रहे हैं वो ही गर्व का विषय है। हमें अब कोई नया हिन्दू या मुसलमान राष्ट्र नहीं चाहिए। क्या हिन्दू राष्ट्र बनाने वाले देश में पिछले 75 साल में भारत में जन्में 25 करोड़ मुसलमानों को हवाई जहाज में बैठकर देश के बाहर फेंक आने की हिम्मत रखते हैं ?

दुनिया में जिस देश की धरती पर जो जन्म लेता है उसे उस देश की नागरिकता प्रकृति से मिल जाती है। संविधान से मिल जाती है। उसे हिन्दू,मुसलमान,ईसाई या सिख या किसी और धर्म का होने की वजह से न तो देश निकाला दिया जाता है और न उसके प्रति घृणा का भाव रखा जाता है,लेकिन भारत एक अकेला देश है जो देश में आजादी के बाद पैदा हुए मुसलमानों को पांच सौ साल पहले भारत पर राज कर चुके मुगलों की प्रताड़ना के लिए जिम्मेदार मानकर देश से भगा देना चाहते हैं? पहले अपने संविधान से पूछ लीजिये, क्या वो इसकी इजाजत देता है? अगर नहीं तो कृपा कर मुसलमान-मुसलमान चिल्लाना बंद कीजिये। ताज महल की ईंट से ईंट बजाने की चालें मत चलिए। आप न दूसरा ताजमहल बना पाएंगे और न दूसरा जम्मू-कश्मीर। आप केवल और केवल बिगाड़ना जानते हैं और कुछ नहीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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