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पुलिस नहीं ये सरकार का क्रूर चेहरा, सुशासन के ढोल की खुली पोल

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का सीधी की घटना के संदर्भ में आलेख

दिल्ली में जाकर मध्यप्रदेश में सुशासन का ढोल पीटने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के सुशासन के दावों की कलई सीधी पुलिस ने खोल दी। कलई उतरती है तो सुशासन का चेहरा स्याह नजर आने ही लगता है। पिछले कुछ दिनों से सुशासन के नाम पर प्रदेश की सरकार ने भादंस को बलायेताक रखकर बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल शुरू किया तो सीधी पुलिस सरकार से भी दो कदम आगे निकल गयी और उसने सरकारी पार्टी के विधायक के इशारे पर शहर के रंगकर्मियों समेत एक-दो पत्रकारों को ही अधनंगा कर डाला।

किसी भी सूबे में पुलिस ,सरकार का ही चेहरा होती है। यदि किसी सूबे में कानून और व्यवस्था की स्थिति अच्छी होती है तो पुलिस की पीठ थपथपाई जाती है। और यदि खराब होती है तो पुलिस को ही तांसा जाता है। यानि पुलिस ही है जो सरकार बनकर जनता के बीच मौजूद रहती है, सीधी पुलिस ने बता दिया है कि सरकार का चेहरा कैसा है ? सीधी से पहले बघेलखण्ड के रीवा में भी पुलिस का बर्बर और शर्मनाक चेहरा सामने आ चुका है जहाँ एक ढोंगी बाबा के खिलाफ सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज करने में पुलिस ने 19 घंटे तक टालमटोल की।

सीधी ही या रीवा सब जगह पुलिस की चाल,चरित्र और चेहरा एक जैसा है, ठीक मध्यप्रदेश की सरकार की तरह जो संविधान के बनाये गए कानूनों के सहारे नहीं बल्कि बुलडोजर संहिता के सहारे आतंक पैदा कर अपना इकबाल बढ़ाने में लगी हुई है। सरकार ने न रीवा में दोषी पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कार्रवाई की और न सीधी में .रीवा में एसपी बलात्कारी बाबा को विधायकों की तरह अंगरक्षक मुहैया करता रहा, उसके हर कार्यक्रम में इलाके के थानेदार को तैनात करता रहा,लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं,क्योंकि वो भापुसे का हिस्सा है।

राकेश अचल

सरकार को पता है कि रीवा के एसपी ने बाबा के आपराधिक चरित्र की पुष्टि करना तो दूर उसे रंगे हाथों पकडे जाने के बाद छोड़ने के लिए आपने मातहतों पर दबाब डाला, उन्हें बाबा से माफी मांगने के लिए मजबूर करने की कोशिश की,लेकिन सरकार की बुलडोजर संहिता लागू हुई बाबा के लिए राजनिवास का कमरा आरक्षित कराने वाले किसी रसूखदार आदमी के खिलाफ।

सीधी में भी यही हुआ। रंगकर्मियों के खिलाफ स्थानीय नेताओं के इशारे पर मुकदमे लादे गए,उन्हें गिरफ्तार किया गया और उनका पक्ष लेने पर स्थानीय पत्रकार को मय केमरामेन के न सिर्फ गिरफ्तार किया गया बल्कि थाने के हमाम में अधनंगा भी किया गया,और थाना प्रभारी को सजा क्या मिली,केवल लाइन हाजिर होने की। सरकार में साहस नहीं कि वो अपनी ही नाकारा और लगातार बर्बर हो रही पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करे। सीधी पुलिस पत्रकार को पत्रकार नहीं मान रही ,न माने लेकिन अधनंगे किये गए लोग कम से कम इंसान तो हैं। उनके साथ पाशविक व्यवहार करने का प्रावधान कौन सी भारतीय दंड संहिता में लिखा है ?

पुलिस की बर्बरता दरअसल सरकार के मुखिया की बर्बरता का अक्श मात्र है। सरकार के मुखिया सरकार को क़ानून के जरिये नहीं बल्कि बुलडोजर के जरिये चलाना चाहते हैं। वे अदालतों से ऊपर उठ चुके हैं। उनका आदेश अदालतों के आदेश से बड़ा है। लगता है कि बुलडोजर संहिता लागू कर सरकार के मुखिया अदालतों का काम हल्का करना चाहते हैं। दरअसल ये बर्बरता सरकार का ही नहीं बल्कि उस राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करती है जो तालिबानी तौर-तरीकों की हामी है। जिसकी अपनी फ़ौज कभी लव जिहाद के नाम पर तो कभी’ वेलेंटाइन डे’ के विरोध के नाम पर पुलिस का काम खुद करने के लिए तैनात की जा चुकी है। जो कभी फिल्मों के सेट तोड़ती है तो कभी अभिनेताओं को ठोकती है।

मेरे तमाम काबिल मित्रों को जब भी मध्य्प्रदेश पुलिस की कमान मिली वे बेचारे मध्यप्रदेश पुलिस को कभी ब्रिटेन की पुलिस बनाने का सपना देखते रहे और कभी अमेरिका की पुलिस जैसा बनाने के सपने, लेकिन पुलिस बन गयी आदिम युग की पुलिस .पुलिस प्रमुखों के चाहने से पुलिस के चेहरे,चाल,चरित्र में तब्दीली आना होती तो कभी की आ चुकी होती, तब्दीली तो सरकार के चाहने से आती है जो कुछ ही महीने में आ गयी। सरकार पुलिस को बर्बर बनाना चाहती थी सो बन गयी। जिस सरकार को आदिम क़ानून चाहिए उसका काम आधुनिक और मानवीय आधार पर काम करने वाली पुलिस से कैसे चलेगा ?

लोकनिंदा के बाद सरकार ने सीधी पुलिस के बर्बर अधिकारी को लाइन अटैच किया,अरे भाई उसके खिलाफ मानवाधिकारों के हनन का मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया, उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की,उसे हवालात में क्यों नहीं रखा? उसे बचने की कोशिश क्यों की जा रही है? इस मामले में आप मान भी लीजिये की बर्बरता के शिकार बने लोग न असली पत्रकार हैं और न असली रंगकर्मी ,लेकिन असली इंसान तो हैं, क्या पुलिस को सरकार ने ये अधिकार दे दिए हैं कि वो थाने में आने वाले हर आरोपी के साथ ऐसी ही बर्बरता का व्यवहार करे जैसा सीधी पुलिस ने किया? क्या शांति भंग की धारा 151 के आरोपी को अधनंगा कर हालात में रखने का कोई परवाना नए पुलिस महानिदेशक ने हाल ही में जारी किया है ?

दुनिया जानती है कि इस समय भारत में क्या हालत हैं ,सीधी जैसी घटनाओं के खिलाफ कोई संगठन सड़क पर आकर विरोध नहीं कर सकता, हम जैसे रोजन्दार लेखक भले ही कितने ही गाल बजा लें। समाज आतंक के साये में है, उसकी प्रतिरोध की क्षमता कुंद हो गयी है, लेकिन ये तूफ़ान के पहले का सन्नाटा है। जब अति हो जाएगी तो फिर सुशासन का दावा करने वालों को अराजकता का ही सामना करना पड़ेगा।

वक्त है कि जब सरकार अपनी भूल को सुधर ले,क़ानून और व्यवस्था सुधरने के लिए भारतीय दंड संहिता के अनुसार चले और कार्रवाई करने में छोटा-बड़ा न देखे,दोषी चाहे भापुसे का अफसर हो या कोई अदना सा थानेदार। पुलिस राजनीति का खिलौना नहीं है, उसका गठन जनता की सुरक्षा के लिए किया गया है ,ये सत्य यदि सरकार भूलकर खुद पुलिस को अपने हाथ का खिलौना बनाएगी तो राम राज नहीं आने वाला। त्रिलोक के स्वामी राम अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर से बाहर नहीं निकलेंगे। क्या पता पुलिस उन्हें भी अपने हमाम में ले जाये।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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