देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल का पतन देखकर हतप्रभ, पुरी साहब को क्या हो गया?
पुरी साहब निर्भीक पत्रकारिता के चैंपियन थे, समझना असंभव है कि बुढ़ापे में ऐसी क्या मजबूरी हो गई है...
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देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल का पतन देखकर हतप्रभ हूँ। समझौते करना, सवाल ना पूछना, एंकर्स का प्रवक्ताओं की तरह व्यवहार करना इन सब में कुछ नया नहीं है। लेकिन आजतक पर इस खबर का ट्रीटमेंट कुछ ऐसा है कि 200 रुपये और 500 रुपये में बिकने वाली कस्बाई पीत पत्रकारिता भी शर्मा जाये।
असली खबर ये है कि व्हाइट हाउस ने भारतीय लोकतंत्र की तारीफ नहीं की है बल्कि उसकी मौजूदा हालत पर चिंता जताई है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता का पूरा बयान है “ दिल्ली जाकर आप महसूस कर सकते हैं कि भारत में जीवंत लोकतंत्र है। मैं आशा करता हूँ कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने पर भी चर्चा होगी। अपनी चिंताएं साझा करने में हमें किसी के सामने संकोच नहीं करना चाहिए और खासकर मित्र देशों के साथ।“’
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अब ज़रा गौर कीजिये कि पत्रकारिता के `उच्चमत मानदंड’ स्थापित करने वाले चैनल ने इस खबर के साथ क्या किया है। खबर के केंद्र में एक पाकिस्तानी पत्रकार को रखा गया है, जिसने ये सवाल पूछा है ताकि इस मामले का इस्तेमाल करके पाकिस्तान= मुसलमान = कांग्रेस वाले बीजेपी के नैरेटिव को आगे बढ़ाया जा सके।
गरजते हुए वायस ओवर के साथ इस कहानी में मोदी की जय-जयकार है और `भारत में जीवंत लोकतंत्र है’ के बाद अमेरिका की तरफ से जो कुछ कहा गया वो सब गायब है। इसी मुद्दे पर आजतक और दूसरे तमाम चैनल डिबेट करवाएंगे और राहुल गांधी को भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक ठहराएंगे। ये सिलसिला रोज़ का है।
मुझे याद है अरूण पुरी साहब बरसो पहले न्यूज मीटिंग्स पर किस तरह संपादकों को डांट लगाते थे कि दोनों पक्षों की बाइट के बिना कोई स्टोरी नहीं चलेगी। पुरी साहब निर्भीक पत्रकारिता के चैंपियन थे। समझना असंभव है कि बुढ़ापे में ऐसी क्या मजबूरी हो गई कि पूरे जीवन में अर्जित की गई प्रतिष्ठा हर रोज़ नाली में बहा रहे हैं। ऐसे में ये कहना ज्यादती लगती है कि फेक न्यूज़ की फैक्टरी सिर्फ बीजेपी का आईटी सेल चला रहा है।
मैं अंबानी जी के मनी कंट्रोल डॉट कॉम के संपादकों को बधाई देता हूं, उन्होंने अपनी न्यूज़ स्टोरी में पूरी बाइट (लिंक पर क्लिक करें) लगाई है।
(लेखक और पत्रकार राकेश कायस्थ की फेसबुक वॉल से साभार)