वीवा जोशी क्यों हैं हीरो मध्यप्रदेश कीं !
शारीरिक और मानसिक विकलांग बच्चों की जिंदगी में आशा की किरण बनकर दाखिल हुई हैं भोपाल की वीवा जोशी (VivaJoshi)। जो निरंतर 12 सालों से सामान्य बच्चों से अलग असहाय बच्चों को खुशियां दे रही हैं और उनकी जिंदगी को संवारने का प्रयास कर रही हैं।
चित्रांशी-विकास शर्मा
भोपाल. सामान्य बच्चों से अलग बच्चों की दुनिया कैसी होती है। यह एक मां ही बेहतर समझ सकती है। वो खुद को अपने बच्चे से ज्यादा असहाय समझती है। ऐसे में शारीरिक और मानसिक विकलांग बच्चों की जिंदगी में आशा की किरण बनकर दाखिल हुई हैं भोपाल की वीवा जोशी (VivaJoshi)। जो निरंतर 12 सालों से सामान्य बच्चों से अलग असहाय बच्चों को खुशियां दे रही हैं और उनकी जिंदगी को संवारने का प्रयास कर रही हैं। आइए, जानते हैं जोशहोश की स्पेशल सीरीज मध्यप्रदेश के हीरोज में भोपाल की हीरो वीवा जोशी की कहानी…
बचपन में ही मां का आंचल छिन गया
वीवा जोशी की मां टीचर थी और जब वे महज 11 साल की थी तब उनकी मां का निधन हो गया। अभी चार साल और जिंदगी आगे बढ़ी ही थी कि बीएचईएल में कार्यरत पिता भी चल बसे। वीवा के एक भाई भी हैं विवेक शुक्ला जो बीएचईएल में टीचर हैं। इसके बाद 1998 में वीवा की शादी हो गई। पति दीपेश जोशी वकील हैं, जो वीवा के इस स्कूल को चलाने में काफी मदद करते हैं। वीवा एक बेटे की मां भी हैं। बेटे अथर्व जोशी 19 साल के हैं, जो विदेश में रहकर लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं।
भोपाल से ताल्लुख रखने वाली वीवा जोशी ने कारमेल कॉन्वेंट भेल से स्कूली शिक्षा पूरी की। इसके बाद बीएसएसएस कॉलेज, भोपाल से बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक किया। उन्होंने भारतनाट्यम नृत्य की शिक्षा भी ली। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.एड (हिंदी) और मानसिक रूप से मंद लोगों के लिए D.Ed विशेष शिक्षक की डिग्री भी हासिल की। इसी बीच वीवा को जीवन में अपना नया मिशन मिल गया था। प्रसिद्ध प्रोफेसर विभा कृष्ण मूर्ति के मार्गदर्शन में, उन्होंने आत्मकेंद्रित के बारे में सब कुछ समझा और विषय में अपना डिप्लोमा पूरा किया। अगला कदम एक समावेशी स्कूल शुरू करना था, जिसमें विकलांग, आत्मकेंद्रित और सामान्य बच्चे थे, सभी एक ही छत के नीचे। आयाम – स्कूल फॉर ऑल’ एक साधारण अवधारणा पर आधारित था, वे कहती हैं कि जब ऐसे बच्चे हमारे सिखाने के तरीके को नहीं सीख सकते, तो हमें उनके सीखने के तरीके को सिखाना चाहिए ’।
हर महीने लगभग 2 लाख रुपए का खर्च आता है…
वीवा भोपाल में पिछले 12 वर्षों से “आयाम इंक्लूजन स्कूल” चला रही हैं। उनका उद्देश्य शारीरिक और मानसिक विकलांगता पर विशेष ध्यान देने के साथ एक संयुक्त स्कूल चलाना है, जहां सामान्य बच्चों के साथ विशेष बच्चे भी पढ़ाई कर सके। वर्तमान में इंक्लूजन स्कूल में लगभग 105 बच्चे हैं, जिसमें से 65 बच्चे दिव्यांग हैं और 40 बच्चे सामान्य हैं। उनका उद्देश्य है कि इस स्कूल में समावेशी शिक्षा हो और असहाय बच्चों को मुख्यधारा के छात्रों से जोड़ना है ताकि वे सुखद महसूस कर सकें। यह शिक्षा केवल उनके लिए ही नहीं है, बल्कि उनके समग्र विकास के लिए भी है। वीवा फिलहाल ऐसे पिछड़े परिवार के बच्चों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं जो कमजोर समुदाय से हैं और जो स्कूली शिक्षा प्राप्त करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता चाह कर भी वित्तीय स्थिति के कारण, स्कूल में उन्हें पढ़ा नहीं पाते। ऐसे बच्चों के आयाम इंक्लूजन स्कूल एक आशा की किरण बनकर मौजूद है। वीवा काउंसलिंग भी करती हैं और उन्हें पेंटिंग्स का भी शौक है। इस काम से जो आमदनी होती है। इसे वे स्कूल पर खर्च कर देती हैं। फिलहाल इस स्कूल को चलाने में हर महीने लगभग 2 लाख रुपए का खर्च आता है।
फोरम ऑफ़ सोशल जस्टिस के निदेशक ने हाल ही में आयाम का दौरा किया और इसे अपने विभाग के तहत पंजीकृत किया, ताकि स्कूल अधिक से अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचे। 2015 में इस पंजीकरण के तहत, चिरायु ने अपने स्कूल के प्रत्येक बच्चे का समग्र स्वास्थ्य परीक्षण किया, उनके पहचान पत्र बनाए और उनके व्यक्तिगत बैंक खाते खोले। यह पूछे जाने पर कि एक अलग बच्चे का इलाज कैसे किया जाए, विवा ने कहा, यह सरल है, उसकी शक्तियों को प्रोत्साहित करें, उसकी विचित्रताओं का जश्न मनाएं और उसकी कमजोरियों को सुधारें, जिस तरह से आप किसी सामान्य बच्चे के साथ करते हैं।
इस स्कूल में जाएंगे तो यहां बच्चों के चेहरे पर थिरकती आशाएं, होंठो पर मचलती मुस्कान कहती है कि भगवान इंसानी सूरत में ही मदद के लिए किसी न किसी को भेज ही देते हैं। ऐसे में मज़बूर बच्चों को जब अनुभवी वीवा का साथ मिला तो मानों जुडी ज़िंदगियों के लिए लक्ष्य नियत हो गए। वीवा ने जोशहोश टीम से बातचीत में कहा कि भारत में शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को अभी भी हीन भावना से देखा जाता है, लोग सिर्फ बाते करते हैं। सामान्य बच्चों को उनके साथ खेलने या पढ़ने से मना करते हैं। उन्हें बेचारा समझकर मदद करते हैं। दिल से कोई अपनाना नहीं चाहता।
समाज को सोच बदलनी होगी…
वीवा जोशी का सुखी, समृद्ध परिवार के साथ जीवन चल रहा था, लेकिन समाज के लिए कुछ न कर पाने की टीस थी। अचानक एक मज़बूर मां से मिली प्रेरणा ने वीवा को नई सोच दी, जो कि उन बच्चों के समीप तक ले गई जो सामान्य बच्चों से अलग थे। यही से शुरू हुआ माधुरी आयाम वेलफेयर सोसायटी के बैनर तले संचालित आयाम इन्क्लूजन स्कूल का। सफर वीवा जोशी का और उनकी 12 सालों की एक अनोखी सोच का। इन्क्लूजन के कॉन्सेप्ट को भोपाल में लाने का श्रेय भी वीवा को जाता है। इससे पहले ऐसे स्कूल का संचालन मेट्रो सिटी में हुआ करता था। सकरात्मक सोच के साथ स्कूल की स्थापना आसान कार्य नहीं था, लेकिन उससे भी अधिक था कठिन परिस्थियों से जूझते हुए उसका सतत संचालन। विभा कृष्णमूर्ति सेंटर उम्मीद मुंबई से ऑटिज्म में कोर्स करने के बाद वीवा ने आयाम के लिए शुरुआती टारगेट 25 बच्चो का रखा। कहते है ना कि विश्वास इतना जल्दी भी हासिल नहीं होता। शुरुआत तो हुई लेकिन सिर्फ एक स्पेशल बच्चे के दाखिले के साथ।
भोपाल के रोहित नगर के एक छोटे से किराए के घर से पहला इन्क्लूजन स्कूल शुरू हुआ। खुद वीवा जोशी के परिवार वालों को उनके दृढ संकल्प का अहसास न था, संशय था कि वीवा आने वाली तकलीफो से कही टूट न जाए। सफर था खुद को साबित करने का और लक्ष्य बच्चों के जीवन को रोशन करने का तो कठिनाइयां भला कहां ठहरती।
सरकार से कोई मदद नहीं…
वीवा के स्कूल में सिर्फ स्पेशल बच्चों लिए ही नहीं, बल्कि उन बच्चों को भी दाखिला देना तय किया गया जो सामान्य हैं, लेकिन जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर है। अब स्कूल में स्पेशल और सामान्य बच्चे साथ पढ़ते हैं। यह बात कई अभिभावकों को पसंद नहीं आई। कई बार वीवा को विरोध का सामना भी करना पड़ा। लेकिन सोच को लेकर किसी भी तरह का समझौता करना उन्हें गवारा न था। फिर सोच और मेहनत रंग लाने लगी। उम्मीद फाउंडेशन मुंबई ने मध्यप्रदेश के स्पेशल बच्चों को आयाम के हवाले कर दिया। सिर्फ भोपाल ही नहीं, बल्कि करेली, रायसेन सीहोर, नरसिंहपुर जिलों सहित आसपास के क्षेत्रों से बच्चे आयाम आने लगे। सामान्य बच्चों की दूरी अब भी बरक़रार थी, तो वीवा ने खुद बस्ती बस्ती जाकर उन बच्चो को आयाम से जोड़ा जो शिक्षा से महरूम थे। इस ख़ास स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ हंसते खेलते जीवन का पाठ भी पढ़ते हैं। जीवन के मूल्यों और संस्कार से पोषित करने का काम भी यहां प्राथमिकता से किया जाता है।
स्कूल को लेकर अभिभावकों का सोचने का नज़रिया बदला, लेकिन कई ऐसे पहलू हैं जो कायम हैं। वीवा अपने स्कूल का विस्तार करना चाहती हैं, लेकिन जगह को लेकर एक बड़ी चिंता कायम है। वह आज भी स्कूल से जुड़ा पूरा खर्च खुद ही उठाती है, जिसमें उनके पति आर्थिक रूप से मदद देते हैं। इसके अतिरिक्त वीवा को सरकार या अन्य किसी बड़े संस्थान से कोई मदद नहीं मिल सकी है। वीवा जोशी का आत्मविश्वास बढ़ा है तो लक्ष्य को लेकर दिल में सूकून भी है। यहां मस्ती में सरोबार इन बच्चों की हंसी खुद ब खुद बयां करती हैं कि मानो उनकी ज़िंदगी को नए मायने मिल गए हों।