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चंबल के गांधी डॉ सुब्बाराव को अंतिम विदाई, जौरा में जुटे दिग्गज

डॉ एसएन सुब्बाराव की पार्थिव देह जौरा के गांधी सेवा आश्रम परिसर में अंतिम दर्शनों के लिए रखी गई है। उनका अंतिम संस्कार आश्रम परिसर में शाम 4 बजे होगा।

मुरैना (जोशहोश डेस्क) प्रख्यात गांधीवादी डॉ एसएन सुब्बाराव की पार्थिव देह जौरा के गांधी सेवा आश्रम परिसर में अंतिम दर्शनों के लिए रखी गई है। उनका अंतिम संस्कार आश्रम परिसर में शाम 4 बजे होगा। अंतिम संस्कार में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ समेत अन्य नेता बुद्धिजीवी शामिल हो रहे हैं। चंबल की धरती को डकैतों के आतंक से मुक्ति दिलाने वाले 92 वर्षीय डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बुधवार सुंबह 4:00 बजे जयपुर के अस्पताल में अंतिम सांस ली थी।

बीती शाम काे डॉ. सुब्बाराव की पार्थिव देह मुरैना जिले के जाैरा स्थित गांधी सेवाआश्रम पहुँची। इस आश्रम की नींव डॉ. सुब्बाराव ने रखी थी, जो अब जरूरतमंदों से लेकर कुपोषित बच्चों के हित में काम कर रहा है। सुब्बाराव का पूरा जीवन समाजसेवा काे समर्पित रहा है। ग्वालियर चंबल संभाल में डा सुब्बा राव साथियाें के बीच ‘भाईजी’ के नाम से प्रसिद्ध थे। राष्ट्रीय युवा योजना के संस्थापक एसएन सुब्बाराव के अंतिम संस्कार में शामिल होने बड़ी संख्या में नेताओं एवं समाजसेवी कार्यकर्ताओं का जाैरा पहुंचने का सिलसिला जारी है।

डॉ. सुब्बाराव गांधीवादी विचारों को स्थापित करने 1954 में चंबल पहुंचे थे। डॉ सुब्बाराव चंबल घाटी में दस्यू उल्मूलन के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इस दौरान सुब्बाराव दस्युओं के संपर्क में रहकर उन्हें शांति का पाठ पढ़ाते रहे। करीब18 साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई जब उन्होंने 14 अप्रैल 1972 काे गांधीसेवा आश्रम जाैरा में 654 डकैताें का समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण एवं उनकी पत्नी प्रभादेवी के सामने सामूहिकआत्मसमर्पण कराया। इनमें से 450 डकैताें ने जाैरा के आश्रम में, जबकि 100 डकैताें ने राजस्थान के धाैलपुर में गांधीजी की तस्वीर के सामने हथियार डालकर समर्पण किया था। डॉ सुब्बाराव से प्रेरित होकर मोहर सिंह और माधो सिह जैसे डाकुओं ने भी हथियार डाल दिए थे। चंबल के डकैतों से सामूहिक आत्मसमर्पण कराने के बाद सुब्बाराव देश भर में चर्चा में आ गए थे।

एसएन सुब्बाराव का जन्म 7 फरवरी 1929 को बेंगलुरु में हुआ था। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर महज 13 साल की उम्र में सुब्बाराव ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किये जाने पर उन्होंने अंग्रेजों के सामने ही दीवार पर इंग्लिश में भारत छोड़ो लिख दिया था। जीवन पर्यन्त गांधीवादी मूल्यों के प्रचार करने वाले सुब्बाराव को 18 भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने विदेशों तक में युवाओं को गांधीवाद और अहिंसा को लेकर मार्गदर्शन दिया। दिल्ली में वे कई वर्षो तक गाँधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख भी रहे।

महात्मा गांधी के भारत छोडो आंदोलन के सहभागी रहे डॉ सुब्बाराव को पद्मश्री से नवाजा गया था। इसके अलावा उन्हें 1995 में राष्टीय युवा परियोजना का राष्टीय युवा पुरस्कार भी मिला। वहीं साल 2002 में उन्हें विश्व मानवाधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार व 2003 का राजीव गांधी राष्टीय सद्भावना पुरस्कार, 2003 के ही राष्टीय संप्रदाय सद्भावना समेत अन्य कई सम्मानों से नवाजा गया।

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