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अंतर-धर्म विवाह : मध्यप्रदेश को पक्षकार बनाने की मिली अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतर-धर्म विवाह के कारण होने वाले धर्मातरण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश को पक्षकार बनाने की एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को अनुमति दे दी है।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतर-धर्म विवाह के कारण होने वाले धर्मातरण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश को पक्षकार बनाने की एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को अनुमति दे दी है।
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यन के साथ प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने देश में इन कानूनों के इस्तेमाल से बड़ी संख्या में मुसलमानों को उत्पीड़ित किए जाने संबंधी आरोप के आधार पर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद को भी पक्षकार बनने की अनुमति दे दी।

मुस्लिम निकाय का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एजाज मकबूल ने पीठ के समक्ष दलील दी कि देश के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुषों को इन कानूनों के तहत परेशान किया जा रहा है।

सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने शीर्ष अदालत से इस मामले में हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को पक्षकार बनाने का आग्रह किया। सिंह ने कहा कि इन राज्यों ने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तर्ज पर कानून बनाए हैं।

पिछले महीने शीर्ष अदालत ने उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के विवादास्पद कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसका उद्देश्य अंतर्जातीय विवाह के कारण धार्मिक रूपांतरण को विनियमित करना था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इन कानूनों को रोकने से इनकार कर दिया था और मामले में राज्य सरकारों से जवाब मांगा था।

अधिवक्ता विशाल ठाकरे, गैरसरकारी संगठन सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस और अन्य ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

विवादास्पद यूपी अध्यादेश न केवल अंतर-विवाह विवाहों से जुड़ा हुआ है, बल्कि सभी धार्मिक रूपांतरणों और ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं का पालन निर्धारित करता है, जो किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने की इच्छा रखते हैं।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपने आवेदन में मुस्लिम युवाओं के मौलिक अधिकारों का मुद्दा उठाया है, जिन्हें कथित तौर पर अध्यादेश का इस्तेमाल करके निशाना बनाया जा रहा है।

इस खबर के इनपुट आईएएनएस से लिए गए हैं

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