अंडमान-निकोबार कमान के नए CNC अजय सिंह का MP कनेक्शन, पूर्व मंत्री के दामाद-सांसद के रिश्तेदार
लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह ने 1 जून को अंडमान एंड निकोबार कमांड (सीआईएनसीएएन) के 16वें कमांडर-इन-चीफ के रूप में कार्यभार संभाला।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह को अंडमान निकोबार कमान के कमांडर इन चीफ (CNC) बनाए जाने से मध्यप्रदेश में भी खुशी की लहर है। लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह का मध्यप्रदेश से बेहद करीबी नाता है। वे मध्यप्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री कर्नल अजय नारायण मुश्रान के दामाद और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के रिश्तेदार हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह ने 1 जून को अंडमान एंड निकोबार कमांड (सीआईएनसीएएन) के 16वें कमांडर-इन-चीफ के रूप में कार्यभार संभाला। कारगिल युद्ध से लेकर सियाचिन ऑपरेशन जैसे कई मिशनों पर जांबाजी दिखा चुके लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह का सेना से रिश्ता 150 साल से भी पुराना है।अजय सिंह इससे पहले सेना मुख्यालय में डीजी, मिलिट्री ट्रेनिंग के पद पर तैनात थे। अजय सिंह ने दिसंबर 1983 में 81 आर्मर्ड रेजिमेंट में कमीशन प्रदान किया गया था, जो उनके दिवंगत पिता द्वारा खड़ी की गई रेजिमेंट है।
लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह के परदादा रिसालदार मेजर राज सिंह अहलावत 1901 में ब्रिटिश सेना की स्किनरहॉर्स रेजीमेंट में शामिल थे और उन्होंने तीसरे अफगान युद्ध में हिस्सा भी लिया था। वही उनके दादा, ब्रिगेडियर (कर्नल) कदम सिंह अहलावत 1936 में सेना की पूना हॉर्स रेजीमेंट में शामिल हुए थे। लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह के पिता ब्रिगेडियर एनपी सिंह ने 1973 में 81 आर्मर्ड रेजीमेंट की स्थापना की थी। उस वक्त इस रेजीमेंट को डेक्कन हॉर्स कहा जाता था।
जनरल ऑफिसर जनरल अजय सिंह को सेना की सभी छह भौगोलिक कमानों के साथ-साथ सेना प्रशिक्षण कमान में विभिन्न नियुक्तियों को निभाने का अवसर मिला है। वह आर्मर्ड कोर सेंटर एंड स्कूल में टैंक गनरी एंड टैक्टिक्स के इंस्ट्रक्टर थे और उन्होंने सेना मुख्यालय, एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय (आईडीएस) के साथ-साथ अंगोला में सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में संयुक्त राष्ट्र के साथ महत्वपूर्ण भूमिकाओं में अपनी सेवाएं प्रदान की।
लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह ने कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में उग्रवाद विरोधी अभियानों के लिए स्वेच्छा से कार्यकाल भी चुना, जहां वे सीमा पर एक माउंटेन डिवीज़न में तैनात थे। लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह ने 16 से अधिक वर्षों की सेवा में बतौर एक मेजर, जनरल ऑफिसर ने सियाचिन ग्लेशियर पर स्वेच्छिक तैनाती चाही और उन्हें मराठा लाइट इन्फैंट्री की एक बटालियन में तैनात किया गया था, जहां उन्होंने ऑपरेशन विजय (कारगिल) और मेघदूत (सियाचिन ग्लेशियर) के दौरान एक राइफल कंपनी की कमान संभाली और वीरता के लिए सेना प्रमुख की प्रशस्ति प्राप्त की।