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मंत्रिमंडल नहीं भ्रष्टाचार की मित्रमंडली का विस्तार, क्या उलटा पड़ रहा BJP का हर दांव?

चुनाव से ठीक पहले कैबिनेट विस्तार को लेकर उठ रहे सवाल, अंदरखाने असंतोष और नसीहतों का दौर, कांग्रेस भी हमलावर

भोपाल (जोशहोश डेस्क) मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। चुनाव से तीन महीने पहले उम्मीदवार घोषित करने से उपजा असंतोष जहाँ लगातार बढ़ रहा है वहीं अब चुनाव से ठीक पहले कैबिनेट विस्तार को लेकर भी न सिर्फ भाजपा के अंदरखाने असंतोष और नसीहतों का दौर शुरू हो गया है बल्कि कांग्रेस भी हमलावर है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तमाम कयासों और संशय के बीच शनिवार को मंत्रिमंडल का विस्तार किया। राजेंद्र शुक्ला, गौरीशंकर बिसेन और राहुल लोधी को राज्यपाल मंगूभाई सी पटेल ने सादे समारोह में शपथ दिलाई। आचार संहिता लागू होने में अब दो महीने से भी कम वक़्त बचा है। ऐसे में इस विस्तार को भाजपा द्वारा क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को साधने की रणनीति बताया जा रहा है।

कांग्रेस ने शिवराज मंत्रिमंडल विस्तार पर तीखी प्रतिक्रया दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने मंत्रिमंडल विस्तार को भ्रष्टाचार की मित्रमंडली का विस्तार बताया है। साथ ही उन्होंने यह कहा कि विदाई के समय स्वागत गीत गाने वाली भाजपा सरकार अब विस्तार क्या पूरा मंत्रिमंडल भी बदल दे तो भी हार निश्चित है।

दूसरी ओर पार्टी के ही सीनियर लीडर्स इस विस्तार को अनुचित भी बताने लगे हैं। पूर्व मंत्री अजय बिश्नोई ने तो मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मेरी मुख्यमंत्री जी को सलाह है कि इस वक्त मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं करना चाहिए, चार को बना कर 14 को नाराज नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति मंत्री बनेगा वह मंत्री पद के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।

इधर सोशल मीडिया पर भी मंत्रिमंडल का विस्तार को लेकर सरकार की तीखी आलोचना हो रही है। कहा यह जा रहा है कि एक महीने के ये मंत्री जनता का कौन सा हित करेंगे ये तो किसी को नहीं मालूम लेकिन एक महीने में अपनी जेबें जरूर भर लेंगे। यदि बीजेपी के ये नेता इतने योग्य थे कि इनका मंत्री बनना बेहद जरूरी है, तो मुख्यमंत्री शिवराज ने इतने योग्य लोगों को अभी तक मंत्री क्यों नहीं बनाया गया।

कहा यह भी जा रहा है कि अगर कुछ चेहरों को मंत्री बनाकर कोई जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की हो रही है तो ये सियासी चाल भी जनता समझ रही है। सियासी पंडितों का तो यहाँ तक कहना है कि चुनाव से ठीक पहले मंत्रिमंडल का विस्तार सरकार और संगठन के लिए घातक ही साबित होगा और इससे सत्ता-संगठन दोनों स्तर पर असंतोष को ही बढ़ावा मिलेगा।

सियासी पंडतों के इस तर्क को इसलिए और बल मिल रहा है कि लम्बे मंथन के बाद भी शपथ लेने वाले विधायकों का नाम तय नहीं हो पा रहा था। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर पिछले एक हफ्ते से संशय की स्थिति बनी हुई थी और जिन नामों की चर्चा है उनके समर्थक बंगलों पर डेरा डाले थे लेकिन नाम तय होने का इंतज़ार बढ़ता ही जा रहा था।

वर्तमान संख्या के मुताबिक़ इस समय कैबिनेट में मंत्रियों के चार पद रिक्त थे। इन पदों के लिए पूर्व मंत्री और विधायक राजेंद्र शुक्ला और पूर्व मंत्री व विधायक गौरीशंकर बिसेन के नाम लगभग तय माने जा रहे थे। राहुल लोधी के साथ जालम सिंह पटेल का नाम भी सुर्ख़ियों में था लेकिन कैबिनेट बर्थ की रेस में राहुल लोधी बाज़ी मार गए। बड़ी बात यह है कि मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले नामों में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक किसी भी विधायक का नाम तक शामिल नहीं था।

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