नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) एक ऐतिहासिक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High court) ने कहा कि “राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर असहमति व्यक्त करना हमारे संवैधानिक उदार लोकतंत्र की पहचान है और इसी चीज को संवैधानिक रूप से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित किया गया है।” कोर्ट ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति पर दायर एक प्राथमिकी को खारिज करते हुए की। दरअसल व्यक्ति ने कहा था कि “उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य को जंगल राज में बदल दिया है, जिसमें कोई कानून और व्यवस्था नहीं है।”
यशवंत सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ यह टिप्पणी की थी। सिंह द्वारा दायर एक रिट याचिका को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट (Allahabad High court) ने कहा कि एफआईआर में जिन दो धाराओं के तहत अपराध लगाए गए हैं, इसमें दूर तक वह अपराध नजर नहीं आ रहा है।
यह भी पढ़ें : ओवैसी की पार्टी नगरीय निकाय के जरिए मप्र में कर सकती है एंट्री
यह एफआईआर 2 अगस्त, 2020 को कानपुर देहात जिले के भोगनीपुर पुलिस स्टेशन में सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम की धारा 500 (मानहानि) और 66-डी (कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी करने के अपराध) के तहत दर्ज की गई थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि सिंह ने अपने ट्वीट में अपहरण, फिरौती और हत्या जैसी विभिन्न घटनाओं का जिक्र किया। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के समक्ष एफआईआर को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि राज्य के मामलों पर टिप्पणी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत परिकल्पित उसके संवैधानिक अधिकार के भीतर है।
वकील ने कहा, “असहमति अपराध नहीं है। राज्य सरकार के खिलाफ अपने असंतोष को व्यक्त करने से रोकने के लिए याचिकाकर्ता के साथ जबरदस्ती करने के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसलिए, उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।” हालांकि, कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, राज्य के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील के प्रस्तुतीकरण का विरोध किया। न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा, “हम, एफआईआर में लगाए गए आरोपों के संबंध में उपरोक्त प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद, धारा 66-डी के तहत कोई अपराध नहीं हैं।”
(इस खबर के इनपुट आईएएनएस से लिए गए हैं।)