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राजीव के इरादों से बना अरुणाचल…आओ तुम्हें बताता हूँ 56 का सीना क्या होता है?

यह 1986 था और भारत की गद्दी पर इस वक्त बिंदास बन्दा बैठा था नाम था राजीव गांधी

बात बहुत पुरानी नही हैं। चीन एक बार फिर आंख दिखा रहा था, 1962 गिना रहा था। उसे 1967 याद दिलाने की जरूरत थी। यह 1986 था और भारत की ऊंची गद्दी पर इस वक्त बिंदास बन्दा बैठा था।

नाम था राजीव गांधी..

सीमा पर दो कदम आगे, एक कदम पीछे होना चीन की नीति रही है। छल कपट, मीठी जुबान, सेना आगे बढाकर मानसिक दबाव डालना उसका तरीका रहा है। इसके पीछे सन 49 से ड्रेगन की एक ही मोटिव रहा है, – अक्साई चिन बचाना।

अक्साई चिन से गुजरता हाइवे, काशगर-जिनजियांग और बीजिंग को जोड़ने वाली गर्भनाल है। CPEC और पाकिस्तान जाने वाला कराकोरम हाइवे भी यहीं से निकला है। चाऊ ने 59 में यह प्रस्ताव दिया- नेफा तुम्हारा मान लेते है, अक्साई चिन हमारा मान लो।

नेहरू नरम थे, मगर प्रस्ताव ठुकरा दिया। विदेशमंत्री बाजपेयी को भी यही प्रस्ताव मिला, मगर कुछ गड़बड़ कर पाते कि सरकार चली गयी। दोबारा सरकार में आयी इंदिरा से चीन ने ये बात कहने की हिम्मत ही नही की।

पर अब इंदिरा नही थी। राजीव का दौर था। यही प्रस्ताव फिर आया। उन्होंने ठुकरा दिया गया, तो चीन ने नेफा में गतिविधियां बढ़ा दी। रोज उनका जमावड़ा सीमा पर आगे बढ़ आता, हमे पेट्रोलिंग से रोकता। राजीव ने देश से कहा- “न कोई घुसा है, न घुस आया है”

नही, ऐसा नही कहा। उन्होंने फोन उठाया।

पूर्वी कमान के मेजर जनरल जिमी ने आदेश का पालन करने के लिए खच्चर मांगे। सेनाध्यक्ष सुंदरजी से 1200 खच्चर मांगे। उस बन्दे के सेनापति से, जो भारत को कम्यूटर युग में ले जा रहा था, खच्चर मांगे गए।

चीनी सीमा पर दोनों पक्ष हैवी इक्विपमेंट्स और आर्टिलरी इस्तेमाल नही करते। यही आपसी समझौते हैं। तो खच्चर मांगे गए। खच्चर नही दिए गए। बिल्कुल नही दिए गए।

रशियन मेड हैवी लिफ्ट हेलीकाप्टर दिए गए। उसमे भरे बम, बंदूकें, बड़ी बड़ी गन्स, फौजी, राशन, फोर्टीफिकेशन के लिए समान, और उड़ चले तवांग से 90 किलोमीटर आगे उन पहाड़ियों में, जहां चीन हमे पेट्रोलिंग से रोकता था। फौजें अड़ा देता था। मिशन साफ था, उन पहाड़ियों पर कब्जा करना जो मैकमैहन लाइन के अनुसार हमारी थी। वी शैल टेक व्हाट वी क्लेम !!!

एयरलिफ्ट की तारीख 18 से 20 अक्टूबर। 1962 में चीनी हमले की तारीख। फिल्मी दुनिया मे इसे स्टाइल कहते हैं।

चीनी फ़ौज को इस स्टाइल की हिम्मत की उम्मीद नही थी। एकाएक बड़ा इलाका हाथ से निकल गया। बगैर एक भी कैजुअल्टी के भारत को जीत मिली, और चीन को मात।

चीन बौखलाया, कूटनीति गर्म होने लगी। चीनी नेताओं ने लाल लाल आंख दिखानी शुरू की। डिएस्केलेट करने को दबाव आया। राजीव मुस्कुराए। एक चुम्बन, पूर्व की ओर उछालकर कहा-उखाड़ लो।

और नेफा का नाम अरुणाचल हुआ। उगते सूर्य का प्रदेश। और अरुणाचल प्रदेश को भारत के पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया!! दूसरी मात!!

तो अब नेफा के लोग भारतवासी थे। विद फुल इंडियन पासपोर्ट। अपनी स्टेट गवरमेंट बनाकर भारत के संविधान की शपथ ले रहे थे।

और बोलो..

भारत के इस सैनिक ऑपरेशन को जनरल सुंदरजी की भूमिका वही थी, जो 71 में सैम मानेकशॉ की थी। जनरल जिम्मी ने वही काम किया थे, जो जनरल जैकब ने 71 में किया। इस देश की सेना में सैम, सुंदरजी, हमीद, शैतान सिंह, सोमनाथ शर्मा, अर्जन सिंह, जैकब और जगजीत सिंह अरोड़ा तब भी थे, औऱ आज भी हैं।

नही है तो देश की ऊंची कुर्सी पर इंदिरा जैसी ऊंची नाक, या राजीव जैसी दृढ़ मुस्कान। 56 इंच की पिलपिली छाती पर चीनी कालोनी बसा रहे हैं। नेता “कोई आया न-कोई घुसा” का राग अलाप रहे हैं। 1962 और 1959 के किस्से निकालकर नेहरू की अचकन में मुंह छुपाने की कोशिश कर रहे हैं।

ब्लडी कावर्ड पिपुल .. !!

किसी सरकार को जब चीन का डर सताए, तो पूरी कैबिनेट को बैठकर सन 86 के “ऑपरेशन फाल्कन” की कहानी सुननी चाहिये। इसलिए कि शौर्य गाथाओं को सुनने से दिल का डर घटता है, हिम्मत बंधती हैं।

पर क्या ये किस्से 56 इंच की पिलपिली छातियों में हिम्मत भर सकते है?? पता कीजिये, और यह किस्सा कॉपी कर इस सरकार के प्यादों और भक्तों तक भेजिये।

उन्हें बताइये की 56 इंच का सीना ऐसा होता है।

इसे लिखने वाले @RebornManisजी की जी भरके तारीफ़ कीजिये।

(मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद जाट के ट्विटर अकाउंट से साभार)

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