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न तिलस्म न करिश्मा, यूपी चुनाव पर यूक्रेन इफेक्ट के मायने?

वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल का उत्तरप्रदेश चुनाव पर यूक्रेन संकट के प्रभाव का विश्लेषण।

रूस-यूक्रेन के युद्ध की सुर्खियों ने उत्तरप्रदेश के चुनाव की चर्चा को चंडूखाने में धकेल दिया। 7×24 मीडिया पर यूक्रेन की तबाही और उसके ऊपर चील्ह की भाँति मड़राते रूस के युद्धक विमान हैं। यूक्रेन में फँसे विलखते भारतीय छात्रों की कातर तस्वीरेंं और दिल चीरने वाले जीवंत दृश्य हैं। इसी के साथ-साथ भारत सरकार के ‘आपरेशन गंगा’ का करिश्माई डंका है जिसे सरकारी प्रचार तंत्र इतने जोर से बजा रहा है ताकि उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए 7 मार्च को होने वाले आखिरी चरण का मतदान झनझना जाए।

उत्तरप्रदेश के पाँचवे चरण के मतदान के बाद आदित्यनाथ योगी का एक दिलचस्प बयान पढ़ने को मिला। वह यह कि वे अपने पड़ोसी नेपाल की सीमा सील करने जा रहे हैं क्योंकि उन्हें अंदेशा है कि छुटभैया नेता चुनाव बाद नेपाल भाग जाएंगे और बड़के नेताओं ने पहले से ही विदेशी फ्लाइट बुक करा रखी है। यह राजनीतिक तंज नहीं बल्कि योगी की हनक है जो विपक्ष के हर सामने वाले नेता में तस्कर और गैंगेस्टर की छवि देखते हैं तथा अपरोक्ष दावा करते हैं कि ऐसे ही तत्वों का नाश करने के लिए आदित्यनाथ योगी का उत्तरप्रदेश की देवभूमि में अवतरण हुआ है।

बहरहाल 7 मार्च को आखिरी चरण के मतदान के तीन दिन बाद परिणाम यह बता देंगे कि योगी की हनक कायम रहेगी या फिर उत्तरप्रदेश से होकर केन्द्र की सरकार के लिए जो हाइवे जाता ह उसपर साइकिल सवारों की नाकाबंदी होगी।

जयराम शुक्ल

अभी यह स्पष्ट है कि ‘कुछ भी स्पष्ट नहीं’ सरकार किसकी बनने जा रही है। 2017 में भाजपा के पक्ष में चलने वाली लहर और बहर साफ दिखने लगी थी। सपा अखिलेश- मुलायम-शिवपाल-रामगोपाल-आजम-अमर सिंह-साधना के सिविल वार में फँसी थी। 2014 के लोकसभा के रिजल्ट में बहनजी की हाथी को अन्डा (शून्य सीट) मिली थी सो तब से वे अचेत थीं। चुनाव से ज्यादा उन्हें अपने साम्राज्य और मिल्कियत की चिन्ता थी। प्रशांत किशोर के निर्देशन पर जिन खाटों पर बैठकर राहुल गांधी ने कांग्रेस की खाटपंचायत का ड्रामा रचा था वे सभी खाटेंं खड़ी हो चुकी थीं।

2017 का यूपी चुनाव का चुनाव हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की रौ पर लड़ा गया तथा भाजपा ने 325 सीटों के साथ लगभग 40 प्रतिशत मतों के साथ विजय हाँसिल की तथा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक ऐसे मठाधीश को बैठा दिया जो विधानसभा का सदस्य तक न था। अब लाख टके का सवाल यह कि क्या इस बार भी ऐसी स्थिति बन पड़ेगी ? साफ जवाब है बिल्कुल नहीं। राममंदिर निर्माण और बनारस के कायाकल्प के बाद भी भाजपा के लिए पिछली मर्तबा जैसा वातावरण नहीं बन पाया। यदि आत्मविश्वास प्रबल होता तो अमित शाह जैसे चग्गघड़ नेता आखिरी समय तक चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी की इतनी लल्लो-चप्पों नहीं करते।

पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अखिलेश और जयंत चौधरी की जोड़ी पूरे चुनाव में शोले के जय-बीरू की तरह छायी रही। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में 26 प्रतिशत सीटें हैं। पिछले चुनाव में इस क्षेत्र के प्रभावशाली जाट एकमुश्त भाजपा की ओर गए थे। चुनाव में कैराना का हिन्दू पलायन और मुजफ्फरनगर का दंगे की छाया थी। जाट मुसलमान आमने-सामने थे। इस बार किसान आंदोलन ने जाट और मुसलमानों की खाई को पाटने का काम किया है। केन्द्र द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के मजबूरी भरे निर्णय से किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत का किसानों के बीच रसूख बढ़ा है। टिकैत जी पूरे चुनाव यही दोहराते रहे कि जिन्होंने किसानों को तंग किया उन्हें हराइए।

पश्चिम उत्तरप्रदेश जो कि भाजपा का मजबूत किला बन चुका था इस चुनाव के आते-आते तक उसमें दरारें और छेंद साफ दिखने लगे हैं। कहते हैं कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाट और मुसलमान यदि एक हुए तो इस लामबंदी की काट कोई तिलस्मी ही रच सकता है। इस चुनाव में न कोई तिलस्म दिख रहा न ही करिश्मा।

प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव प्रचार सधे पाँव चला। 2017 की भाँति अमित शाह ने भी खुद को नहीं होमा..। तमाम प्रचार के बावजूद योगी को अपने घर की सीट ही लड़ने के लिए चुननी पड़ी। कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश के मूड की अकुलाहट तो भाजपा में दिखी ही।

उत्तरप्रदेश का पूर्वांचल जहाँ कुल 403 में से 33 प्रतिशत सीटें हैं हमेशा से रणक्षेत्र रहा है। यहाँँ दलों के नेता और गैंगों के गैंगस्टर दोनों एक जैसे ही भिड़ते हैं। धनबल, धरमबल, जनबल, जातिबल जितने भी प्रकार के बल हैं सभी के सब पूर्वांचल की लड़ाई में काम आते हैं। अतीक अहमद, अफजल अंसारी जैसे गैंगस्टर जेल में हैं तो उनके पट्ठे चुनाव मैदान में। धरमनगरी चित्रकूट की आसपास की सीटों से कुख्यात दस्यु सरगना ददुवा के बेटे और परिजन लड़ रहे हैं। वोट के लिए डकैतों का फरमान तो सुनने को नहीं मिला पर पूरे चुनाव के समय एक अग्यात भय तो रहा ही।

पूर्वांचल में जातिवाद का रंग जरूरत से ज्यादा गाढ़ा है इसलिए यहाँ सपा और बसपा का वर्चस्व वर्षों से आ रहा है। नरेन्द्र मोदीजी के बनारस से चुनाव लड़ने के बाद भाजपा को जमीन विस्तारित करने का अवसर मिला। लेकिन रास्ता साफ बिल्कुल नहीं। पूर्वांचल का अपराध और राजनीति दोनों जातिपाँति से बिधे हैं। चुनाव शुरू होते ही एक सूची सोशल मीडिया में तैर गई कि योगी सरकार ने कितने ब्राह्मण गैंगेस्टरों का मुठभेड़ करवाया और कितने ठाकुर गैंगेस्टर योगीराज में महफूज हैं। यह इसलिए मायने रखता हैं कि इन गैंगेस्टरों का भी एक बड़ा जनाधार हुआ करता था, लोग इनके लिए भी मरने-मिटने तैय्यार रहते थे।

योगी जिस गोरखपुर से चुनाव लड़ रहे हैं वहां की जमीन ब्राह्मण और ठाकुर गैंगेस्टरों की बैटलफील्ड हुआ करती थी। राजनीति अब भी इसी जातीय धुरी में घूमती है। चुनाव पर्चा भरने के दिन यदि योगी कहें कि मुझे गर्व है कि मैं उस क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ जिसमें भगवान राम जन्में थे तो इसका अपना राजनीतिक अर्थ तो निकलता ही है।

उत्तरप्रदेश में भाजपा के पक्ष में जो बात है वह है मोदी का नाम। सब जानते हैं कि केन्द्र को सबल बनाने का रास्ता यूपी से निकलता है। 25 करोड़ की आबादी वाले उत्तरप्रदेश के 15 करोड़ मतदाता 80 लोकसभा सदस्य चुनते हैं। मतदाता जानता है कि यदि उत्तरप्रदेश में भाजपा का खेल बिगड़ा तो अगले चुनाव में मोदी के लिए बड़ी मुश्किल होगी। साफ बात यह है कि यहाँ का मतदाता योगी से नाराज है मोदी से नहीं। अभी उसके सामने मोदी जैसे नेतृत्व का विकल्प नहीं।

यह बात योगी के पक्ष में जाती है क्योंकि उन्हें न चाहते हुए भी मतदाता मोदी के लिए भाजपा को वोट कर सकते हैं। पर्यवेक्षकों ने एक बात और गौर की है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव को न तो मोदी ने, न ही अमित शाह ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया उत्तरप्रदेश में जो कुछ हुआ उसका श्रेय खुले मुँह योगी को ही दिया है। यानी कि भाजपा यदि यूपी गँवाती है तो उसका ठीकरा योगी के सिर फूटना तय है।

और यदि भाजपा फिर से लौटती है तो देखिएगा हमारा मीडिया किस तरह मोदी के वैश्विक नेतृत्व और उक्रेन संकट से आपरेशन गंगा के मार्फत लाए गए भारतीय छात्रों की कहानियों को उत्तरप्रदेश से जोड़कर खबरों की छौंक बघार लगाता है। और हाँ.. कांग्रेस और प्रियंका वाड्रा तो जिक्र से ही छूट गईं। प्रियंका का दम दिखेगा, पिछले के मुकाबले सीटें बढ़ेगी और सबसे बड़ी बात उत्तरप्रदेश का चुनाव आने वाले चुनावों में महिलाओं की भागीदारी का पुख्ता आधार बनेगा।

भाजपा के आईटी सेल ने जिस तरह प्रियंका को अपने निशाने पर रखा, मोदी, शाह ने अपने भाषणों में गाँधी परिवार पर हमले बोले उससे अंदाज लगा सकते हैं कि इस बार उत्तरप्रदेश में कांग्रेस शिफर नहीं रहेगी..। यदि जमीन गवाएंगी तो मायावती गँवाएंगी क्योंकि उनके वोट की जाति अब ‘लाभार्थी’ प्रजाति में बदल चुकी है। उसका मत वहीं जाएगा जहाँ से उनके जीने -खाने के लिए रसद आने लगी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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