गोली से मार दिए गए लेकिन आज तक मरे क्यों नहीं, गांधी तुम प्रासंगिक क्यों हो?
गांधी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जहाँ अन्याय, अत्याचार होता है किसी न किसी रूप में खड़े दिखाई देते हैं।
ये लेख मुझे एक दिन पहले लिखना चाहिए था। नहीं लिखा क्योंकि बात तो आज करना थी। आज महात्मा गांधी का जन्मदिवस है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ ही असंख्य लोग भी आज दो अक्टूबर को जन्में होंगे, उन सभी का स्मरण करना सम्भव नहीं है। किसी को स्मरण करने के लिए उसका प्रासंगिक होना बहुत जरूरी है। महात्मा गांधी की प्रासंगिकता ही उनके स्मरण की वजह है।
महात्मा गांधी की जीवनी देश के बच्चे-बच्चे ने पढ़ी है। जो पढ़ नहीं सकते, उन्होंने भी महात्मा गाँधी की जीवनी को सुना है। भारत में रहने वाला हर आदमी महात्मा गाँधी को जानता जरूर है, मानता भले ही न हो,क्योंकि मान्यताएं बनतीं और बिगड़ती रहतीं हैं। महात्मा गाँधी इस देश और दुनिया में 153 साल बाद भी याद किये जा रहे हैं। यही उनकी प्रासंगिकता है। अब सवाल ये है कि गांधी प्रासंगिक आखिर क्यों हैं ? वे पिस्तौल की गोली से मार दिए गए,लेकिन वे आज तक मरे क्यों नहीं हैं?
आजादी के 75 साल बाद भी देश के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को जिम्मेदार मानने वालों की एक पूरी पीढ़ी देश में मौजूद है। जो आज भी पानी पी-पीकर महत्मा गाँधी को कोसती है। उन्हें उनके सत्य के प्रयोंगों के लिए लांछित करती है,लेकिन उनका नाम मिटाने में नाकाम रहती है। देश में बड़ी से बड़ी प्रतिमाएं बनाकर, नयी इमारतें और मंदिर बनाकर भी महात्मा गाँधी का कद छोटा नहीं हो पाता। आखिर ऐसा क्या है महात्मा गाँधी में, जो गांधी को मरने नहीं देता?
गांधी को मारने की जितनी कोशिशें की जाती हैं, गांधी उतने ही मुखर हो जाते हैं। गांधी केवल राहुल गांधी परिवार की जरूरत नहीं हैं, वे हर भारतीय की जरूरत हैं। गांधी का बताया और बनाया गया रास्ता हर भारतीय को शक्ति देता है। भटकने से बचाता है, क्योंकि गांधी अब मजबूरी का नहीं बल्कि मजबूती का नाम बन चुका है। जहाँ किसी को कोई कमजोरी अनुभव होती है, उसे फौरन गांधी याद आते हैं। गांधी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जहाँ अन्याय, अत्याचार होता है किसी न किसी रूप में खड़े दिखाई देते हैं। आजकल वे ईरान में हैं। वहां की महिलाओं के साथ हैं।
पिछल एक दशक से दुर्दशा की शिकार कांग्रेस को भी गांधी की उतनी ही जरूरत है जितनी की सत्तारूढ़ भाजपा को। पिछले आठ साल में भाजपा और उसके मातृ संगठन ने गांधी पर न जाने कितने प्रहार किये लेकिन गांधी मरे नहीं। गांधी का नाम लेकर सियासत करने वाली कांग्रेस के साथ भी यही बीती। कांग्रेस जब अंतिम साँसें गिनने लगी तो उसे गांधी मार्ग पर चलकर देश जोड़ने के लिए सड़क पर आना पड़ा। कांग्रेस के सामने कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं। यदि कांग्रेस गांधी के बताये रास्ते पर चलकर देश की जनता को आंदोलित करने का अभियान शुरू न करती तो खुद तो खत्म होती ही साथ ही जनता की प्रतिकार शक्ति को भी खत्म कर देती।
गांधी ‘विचार’ है,गांधी ‘वाद’ है, गांधी ‘अपवाद’ भी है। देश में विचारों की कमी नहीं है। संघ का अलग विचार है। वामपंथ का अलग विचार है और गांधी का अलग विचार है। इस देश ने तमाम विचारों को खारिज करते हुए हमेशा गांधी के विचार का साथ दिया। आज की सत्ता भी गांधी के अनुयायियों के पीछे पड़ी है किन्तु गाँधी के पीछे पड़ने का साहस नहीं जुटा पा रही ,क्योंकि गांधी इस देश की पहचान हैं। देश की भौगोलिक सीमाओं के बाहर भारत को गांधी के देश के रूप में जाना जाता है आप कोई भी रंग और टोपी लगा लीजिये लेकिन गांधी को अदृश्य नहीं कर सकते।
दक्षिण अफ्रिका हो या अमेरिका सबने गांधी को मान्यता दी है। आज दुनिया के तमाम देशों में गांधी की जितनी प्रतिमाएं हैं उतनी किसी भारतीय जन नायक की नहीं हैं। किसी और नायक या खलनायक की प्रतिमा देश के बाहर लगाने से किसी ने किसी को रोका तो नहीं है? किन्तु प्रतिमा की स्थापना के लिए ऐसा व्यक्तित्व तो होना चाहिए, जो सर्वग्राही हो। कभी-कभी गांधी को लेकर मैं भी उलझ जाता हूँ लेकिन ये उलझन क्षणिक होती है। आपको भी कभी-कभी ये लग सकता है कि गांधी के बारे में भाजपा या संघ के लोग जो कहते हैं वो ठीक ही कहते हैं, लेकिन कुछ ही देर में हकीकत आपकी समझ में आ जाती है और आप अपने गांधी के पीछे खड़े हो जाते हैं, भाजपा या संघ के गांधी के पीछे नहीं।
हाल ही में इमामों के इमाम ने भारत को एक नए गांधी भेंट किये। नए गांधी का नाम भी मोहन है, यदि मुमकिन होता तो हमारी सरकार पुराने राष्ट्रपिता की प्रतिमाओं को हटाकर नए राष्ट्रपिता की प्रतिमाएं स्थापित कर देती किन्तु ऐसा न हुआ है और न होगा। राष्ट्रपिता की उपाधि किसी विश्व विद्यालय से नहीं मिलती। किस विदेशी संस्था के पास भी ऐसी कोई उपाधि नहीं है। होती तो अब तक महात्मा बनने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त आपके सामने होती। ये उपाधि जन नायकों की और से ही आयी है और इसे जनता ने शिरोधार्य किया है।
महात्मा गाँधी कभी अमेरिका नहीं गए, वे शायद ईरान भी नहीं गए लेकिन इन देशों में भी गांधी के बताये रास्ते पर चलकर लोगों ने बहुत कुछ पाया। अमेरिका के पास मार्टिन लूथर किंग जूनियर गांधी की ही परछाई थे। ईरान में भी आज हिजाब के खिलाफ कपड़ों की होली जलाने वाली महिलाओं में गांधी का ही अक्श है। सत्ता शीर्ष से सड़क पर आयी कांग्रेस को गांधी ही सहारा दे रहे हैं। मौजूदा सरकार ने भले ही सबको छोड़ दिया हो, गरिया लिया हो किन्तु गांधी को कोई हाथ भी नहीं लगा सका क्योंकि गांधी आज भी हर अँधेरे मोड़ पर उजाले की गारंटी हैं।
गांधी केवल अधनंगे फकीर को ही नहीं कहते। गांधी बिना कलफ के कपड़े पहनने वाले और झोला लटकने वाले को भी नहीं कहते, बल्कि गांधी हर उस व्यक्ति को कहा जा सकता है। जो वक्त- जरूरत अपने आपको सत्य की कसौटी पर कसने का माद्दा रखता है। मुझे तो राष्ट्रीय स्वयं सेवकों में भी गांधी छिपे दिखाई देते हैं। संघियों का सेवाभाव और सादगी गांधी से ही प्रेरित है। उन्हें हाफ पेण्ट तो न जाने किसने पहना दिया था। स्वयं सेवकों ने हाफ पेण्ट त्याग दिया है किन्तु सादगी नहीं त्यागी। गांधी के विरोधी होते हुए भी ,वे गांधी की सादगी को ओढ़ने के लिए विवश हैं। ऐसे गांधी को उनके जन्मदिन पर स्मरण कर मै तो अभिभूत होता हूँ, आपकी आप जाने।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)