मंहगाई से जूझना कठिन है, रोजगार के नए अवसर पैदा करना उससे भी ज्यादा कठिन है, लेकिन किसी रास्ते का,स्टेशन का शहर का या इमारत का नाम बदलना आसान है। हमारी सरकार इसीलिए सबसे आसान काम सबसे पहले करती है और सबसे कठिन कामों को हाथ भी नहीं लगाती। कठिन काम केवल बजरंगबली कर सकते हैं, ‘कौन सो काज कठिन जग माहीं ?’
चौतरफा दबाब के बावजूद केंद्र सरकार सचमुच मंहगाई से नहीं जूझ पा रही.आखिर जूझे भी तो कैसे? उसे कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है। जेडीयू से जूझना पड़ रहा है ,और तो और नितिन गडकरी से जूझना पड़ रहा है, ऐसे में सरकार कोई कठिन काम कर ही नहीं सकती थी। इसीलिए सरकार ने राजपथ का नाम बदलने का सबसे आसान काम हाथ में लिया है। इक्कीसवीं सदी में लोग अब राजपथ को ‘कर्तव्यपथ’ के नाम से जानेगे। राजपथ वैसे बुरा नाम नहीं था,स्वदेशी था, देश में राजकाज के संचालन के केंद्रों तक पहुँचने की और इंगित करता था लेकिन सरकार को जो पसंद नहीं होता उसे फौरन बदल दिया जाता है।
सरकार ने इससे पहले भोपाल के हबीबगंज का ,बिहार में मुगलसराय का उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का नाम बदला है,लेकिन देश की तस्वीर नहीं बदली। नाम बदलने में क्या लगता है? देश की तस्वीर बदलने में बहुत कुछ लगता है। बहुत कुछ भाजपा के पास है नहीं। जो था भी उसे विधायकों की खरीद-फरोख्त में खर्च कर दिया गया। ऐसे में नाम ही जो आसानी से बदला जा सकता है। कल 07 सितम्बर को नई दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल के विशेष सत्र में इस बारे में प्रस्ताव लाया जाएगा। नेताजी स्टेच्यू (पुराने इंडिया गेट) से राष्ट्रपति भवन तक का पूरा मार्ग अब ‘कर्तव्यपथ’ के नाम से जाना जाएगा। इंडिया गेट का नाम भले ही बदल गया, भले ही यहां से अमर जवान ज्योति हटा दी गयी लेकिन लोग आज भी इंडिया गेट को इंडिया गेट ही कहते हैं और पता नहीं कब तक कहेंगे?
दिल्ली की सरकार राजपथ को मिटाकर कर्तव्यपथ बना रही है और हमारे ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में स्मार्ट सिटी परियोजना वाले 300 करोड़ रूपये खर्च कर राजपथ का निर्माण कर रहे हैं,क्योंकि इस रास्ते पर महाराज का महल है और इस रास्ते का कोई सुंदर सा नाम नहीं था। नाम बदलने से न इलाहाबाद का स्वभाव बदला और न मुगल सराय का,न हबीबगंज का। नाम बदलने से कुछ बदलता भी नहीं है। लोग वल्दियत बदल रहे हैं ,लेकिन सियासत तो नहीं बदल रही। सियासत बदलने के लिए जो उपक्रम होना चाहिए वे भी 07 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा पर निकल रही है।
भाजपा की तरह कांग्रेस की हिम्मत को दाद देना पड़ेगी की तमाम टूट-फूट के बाद भी कांग्रेस के नेता पार्टी को जोड़ने के बजाय देश को जोड़ने की मुहिम पर निकल रहे हैं। कांग्रेस भी जब-जब पार्टी में कोई भारी संकट आता है अपना नाम बदल लेती है,लेकिन मौजूदा संकट इतना गंभीर नहीं है कि उसे अपना नाम बदलना पड़े। जो लोग कांग्रेस के मौजूदा स्वरूप से खुश नहीं है,वे खुद अपना पाला ही नहीं बल्कि सियासी वल्दियत भी बदल रहे हैं। ये अद्ल-बदल चलती रहती है। .ब्रिटेन ने अपना प्रधानमंत्री ही बदल लिया। हम ये कठिन काम आसानी से नहीं कर सकते।
प्रधानमंत्री बदलना आसान काम नहीं है। प्रधानमंत्री बदलने के लिए बहुत कस-बल लगाना पड़ता है। भाजपा को प्रधानमंत्री बदलने में दस साल लगे थे। अब कांग्रेस को भी देश का प्रधानमंत्री बदलने में कम से कम दस साल तो लगेंगे। अभी दो साल और बाक़ी हैं। इन दो साल में प्रधानमंत्री बदलने के लिए कांग्रेस सहित तमाम दलों को अपने आपको बदलना पडेगा। कुछ बदल भी रहे हैं ,जो नहीं बदल रहे हैं उनका राम ही मालिक है।
मालिक तो उत्तर प्रदेश का भी कोई नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नहीं बदल रहे। वे अभी तक बुलडोजर से बाहर नहीं निकल पाए हैं। उनके लखनऊ में एक होटल में आग लगी तो उन्होंने होटल के ऊपर बुलडोजर चलने का आदेश दे दिया। अब तक बुलडोजर अपराधियों के घरों पर चलते थे (एक टैनी मिश्रा अपवाद हैं) बुलडोजर ,मिश्रा जी को पहचानता है इसलिए उनके घर की तरफ देखता भी नहीं है आँख उठाकर। आँखें जाने का डर जो है।
बहरहाल बात राजपथ को कर्तव्यपथ बनाने की चल रही है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए,क्योंकि हम अंग्रेजो का दिया नाम नहीं बदल रहे,हिन्दुस्तानियों का दिया नाम बदल रहे हैं। अंग्रेजों के राज में राजपथ को ‘ किंग्स वे ‘ कहा जाता था। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस ‘ किंग्स वे ‘ को राजपथ बनाया था लेकिन नेहरू के दिए इस नाम को मोदी न बदलें ऐसे कैसे हो सकता है?.वो तो गनीमत है कि दिल्ली का नाम नेहरू जी ने नहीं रखा वरना उसे भी कब का बदल दिया गया होता। केंद्र सरकार को लगे हाथ रफी मार्ग का नाम भी बदलकर भाजपा कि किसी बड़े नेता कि नाम पर रख देना चाहिए। ये रफी कुछ खटकता सा है।
कुछ नाम ही नहीं संस्थाएं भी खटकती हैं। मिसाल कि तौर पर कांग्रेस को संघ खटकता है तो संघ को मुसलमानों के मदरसे। यूपी कि बाद एमपी में मदरसों का सर्वे कर उनके पर काटने की तैयारी चल रही है। मध्यप्रदेश में कोई पांच हजार मदरसे हैं। इनमें से आधे से अधिक मान्यता प्राप्त नहीं हैं। कितनी शर्म की बात है कि भाजपा प्रदेश में 18 माह कि कमलनाथ शासन को छोड़कर 18 साल से सत्ता में है और मदरसों को नहीं नाथ पायी। मै तो कहता हूँ कि मध्य प्रदेश सरकार को अपने सूबे कि मदरसों का सर्वे करने से बेहतर उनके ऊपर बुलडोजर चलवा देना चाहिए क्योंकि यहीं पढ़ने वालों ने भाजपा को स्थानीय निकाय चुनावों में नीचा दिखाया और यहां पढ़े लोग ही भविष्य में फिर से भाजपा को नीचे दिखा सकते हैं।
इतिहास गवाह है कि नाम बदलने का काम बहुत पुराना है। मुगलों को नाम बदलने में बड़ा मजा आता था। वे जो शहर जीतते थे या जहाँ रात्रि विश्राम करते थे, उस शहर या जगह का नाम बदल देते थे। किसी ने कलकत्ता को अली नगर किया तो किसी ने प्रयाग को अलाहबाद कर दिया। काशी,मथुरा और अयोध्या का नाम वे बदल नहीं पाए और ये अच्छा ही हुआ। अन्यथा हमारी सरकार को ये कवायद फिर करना पड़ती। नाम बदलने में भाजपा ने मुगलों को पीछे छोड़ दिया है। बहरहाल दिल्ली वालों को राजपथ छीने जाने और कर्तव्यपथ मिलने की बहुत-बहुत बधाइयां।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)