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2 सप्ताह में महाराष्ट्र-कर्नाटक से मुक्त कराए 250 से ज्यादा बंधुआ मजदूर

मध्यप्रदेश सरकार की उदासीनता से महाराष्ट्र-कर्नाटक में बंधुआ मजदूरी को मजबूर प्रदेश के आदिवासी।

बड़वानी (जोशहोश डेस्क) एक ओर प्रदेश सरकार आदिवासियों को लुभाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वहीं सरकार की उदासीनता के कारण महाराष्ट्र-कर्नाटक के ठेकेदार और शक्कर फैक्ट्रियों के मालिक प्रदेश के आदिवासियों को बंधुआ मजदूर बना रहे हैं। जागृत आदिवासी दलित संगठन ने बीते 2 सप्ताह में महाराष्ट्र और कर्नाटक में 250 से ज्यादा आदिवासी मजदूरों को ठेकेदारों से मुक्त कराया है।

गहराते कृषि संकट, बेरोजगारी और महंगाई के कारण प्रदेश के आदिवासियों को महाराष्ट्र और कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बन कर काम करना पड़ रहा है। शक्कर कारखानों के ठेकेदार क़र्ज़ की आड़ में आदिवासियों को बंधुआ मज़दूर बना रहे हैं। गन्ने के खेतों में इन आदिवासी परिवारों से 16 से 20 घंटों तक काम कराया जा रहा है। इस दौरान महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के बलात्कार तक के मामले सामने आ रहे हैं।

मजदूरों की शिकायत के बाद 12 फरवरी तक जागृत आदिवासी दलित संगठन तथा बेलगावी और पुणे के सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास और बड़वानी पुलिस के सहयोग से लगभग 250 मजदूर ग्राम शिवनी, उबड़गड़, कंडरा, सेमली, बोरखेड़ी में अपने घर लौट गए हैं। हालाँकि मजदूरों की शिकायत के बाद भी ठेकेदारों पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो पाई है।

18 जनवरी से लगातार आदिवासी बाहुल्य पाटी ब्लॉक के थाने में कर्नाटक और महाराष्ट्र में फसे मजदूरों और उनके परिजन द्वारा शिकायते की गई थी। इन मजदूरों से बिना कोई हिसाब दिये काम करवाया जा रहा था। हिसाब मांगने पर या घर वापसी की बात पर उन्हें धमकाया तक जा रहा है। ठेकेदारों के हौसले यहाँ तक बुलंद हैं कि बेलगावी (कर्नाटक) के ‘निरानी शुगर्स’ नामक फ़ेक्ट्री में हिसाब करने गए तीन मजदूर को न सिर्फ बंधक बनाया गया बल्कि प्रशासन की सख्ती के भी 6 दिन बाद छोड़ा गया।

यौन शोषण की शिकायत पर एक्शन नहीं

बेलगावी में ग्राम सेमलकोट (जिला खरगोन) के मजदूरों से न सिर्फ बंधुआ मजदूरी करवाया गया, बल्कि 3 महिलाओं और 3 नाबालिग लड़कियों का ठेकेदारों द्वारा कई बार यौन शोषण एवं बलात्कार भी किया गया। किसी तरह अपनी जान बचा कर लौटे मजदूरों की शिकायतों पर हफ्तों तक खरगोन पुलिस द्वारा एफ़आईआर नहीं दर्ज की गई है। आखिरकार, जब मामला दर्ज किया गया, तो बंधुआ मजदूरी एवं अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत धाराएँ नहीं लगाई गई। इसी तरह बड़वानी लौट चुके सभी मजदूरों द्वारा उनकी बकाया मजदूरी दिलवाने कार्यवाही करने, एवं उनसे बेगारी करवाने वाले ठेकेदारों एवं फ़ैक्टरी मालिकों पर कार्यवाही की मांग शासन प्रशासन से की जा रही है, जिस पर शासन प्रशासन मौन एवं निष्क्रिय है ।

ज़िम्मेदारी तय लेकिन पालन नहीं

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। आयोग द्वारा सभी जिलों के जिला कलेक्टर तथा राज्य सरकारों को बंधुआ मजदूरी में फंसे हुए मजदूरों को छुड़ाने तथा उनके पुनर्वास के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश दिये है। शासन-प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करने का दायितव है कि किसी मजदूर के साथ अत्याचार निवारण अधिनियम, पोसको अधिनियम, अंतरराजीय प्रवासी कामगार अधिनियम, बाल मजदूरी अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता के तहत किसी भी प्रकार का अपराध न हुआ हो – मजदूरों के साथ अत्याचार तथा अपराध प्रतीत होने पर, शासन-प्रशासन कार्यवाही करने बाध्य है। इसके बावजूद, मजदूरों द्वारा की गई शिकायतों पर मध्य प्रदेश शासन एवं जिलों के प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। शासन-प्रशासन की इस निष्क्रियता का फायदा उठाते हुए, अवैध ठेकेदार एवं फैक्टरी मालिकों द्वारा आदिवासियों का हिंसक शोषण जारी है।

सरकार की कथनी करनी में फर्क

जागृत आदिवासी दलित संगठन के मुताबिक मध्य प्रदेश में आदिवासियों को लुभाने के लिए बिरसा मुंडा, टंटिया भील, भीमा नायक जैसे योद्धाओं के सम्मान में ज़ोर शोर से कार्यक्रम हो रहे हैं। भोपाल में हाल ही में बिरसा जयंती कार्यक्रम में आदिम जाति कल्याण विभाग के 23 करोड़ रुपए फूंके गए। वहीं दूसरी ओर, इन योद्धाओं के वंशज वही अन्याय और शोषण से अभी भी जूझ रहे है, हजारों की संख्या में बंधुआ मजदूर बन रहे हैं, कर्ज़ और कुपोषण में झुलस रहे हैं।

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