सरदार सरोवर: 1600 किसानों की फर्जी रजिस्ट्री से करोड़ों का महाघोटाला
राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह और नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने किया महाघोटाले का खुलासा।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) नर्मदा घाटी परियोजना अंतर्गत सरदार सरोवर बांध में 1600 गरीब किसानों की फर्जी रजिस्ट्री से करोड़ों रूपयों के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह और नर्मदा बचाओ आंदोलन की सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने संयुक्त प्रेस वार्ता में इस पूरे मामले का खुलासा किया है।
दिग्विजय सिंह ने इसे नर्मदा घाटी का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि अधिकारियों, कर्मचारियों और दलालों ने सरदार सरोवर बांध में 1600 गरीब किसानों की फर्जी रजिस्ट्री करा इस महाघोटाले को अंजाम दिया है। दिग्विजय सिंह ने जिलेवार फ़र्ज़ी रजिस्ट्रियां की जानकारी भी सामने रखी।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेघा पाटकर ने बताया कि 2005 से डूब प्रभावित किसानों को वैकल्पिक खेती लायक जमीन नर्मदा ट्रिब्यूनल और पुनर्वास नीति तथा सर्वोच्च अदालत के फैसलों के आधार पर दी जानी थी। जमीन नही दे पाने पर 5 एकड़ सिंचित जमीन खरीदने के लिये 5.58 लाख रूपये का अनुदान घोषित हुआ तो उसमें सैकड़ों फर्जी रजिस्ट्रियां पेश करके राशि निकाली जाने लगी।
मेघा पाटकर ने बताया कि इस फर्ज़ीवाड़े को देखते हुए 2007 में नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई थी। तब मुख्य न्यायाधीश के आदेश से न्यायाधीश श्रवणशंकर झा की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार जांच आयोग गठित किया। इस आयोग के समक्ष चार मुद्दों पर चले कार्य में भ्रष्टाचार की जांच सम्मिलित रही, जिस पर 7 साल के कार्यकाल में हजारों लोगों से सुनवाई की। स्थल निरीक्षण तथा बड़े पैमाने पर कागजातों की खोज के साथ, याचिकाकर्ता तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की गवाही प्रस्तुत की गई।
जनवरी 2016 में प्रस्तुत हुए झा आयोग की रिपोर्ट में सभी मुद्दों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई। इस रिपोर्ट पर मप्र शासन ने उच्च न्यायालय में सुनवाई एवं कार्यवाही का विरोध किया। सर्वोच्च अदालत नेे जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत उच्च न्यायालय को 900 से अधिक पन्नों की रिपोर्ट और संलग्नक कागजातों को विधान मंडल के समक्ष रखने पर मजबूर किया। जुलाई 2016 से यह रिपोर्ट विधान मंडल के पटल पर रखी गई। न कभी इस पर बहस हुई। न कोई कार्यवाही की रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश की गई। सर्वोच्च अदालत ने मुद्दों पर राज्य शासन से कार्यवाही की अपेक्षा की थी। वह आज तक पूरी नहीं की गई है।
झा आयोग के निष्कर्ष
1- झा आयोग के समक्ष सरदार सरोवर पुनर्वास के कई मुद्दे जांच के लिये सम्मिलित रहे। हर मुद्दे पर गहरी जांच हुई करीबन 10 हजार लोगों की सुनवाई की और 7 सालों के बाद जनवरी 2016 में रिपोर्ट पेश किया।
2- पहला मुद्दा था, वैकल्पिक जमीन खरीदने के लिये दी गई 5.58 लाख रूपये अनुदान देने से जो भ्रष्टाचार हुआ था उसमें हुई फर्जी रजिस्ट्रियों में कुल 1589 रजिस्ट्रियां फर्जी साबित हुई। इसमें विस्थापित फंसायें गये, अधिकारियों और दलालों की सांठ-गांठ से बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। दलालों, कुछ अधिकारियों के नाम भी रिपोर्ट में दिये गये है। कोई कार्यवाही नहीं होने से आज भी 1589 प्रकरणों में जमीन के मूल मालिकों का कब्जा होते हुए भी, नामांतरण फर्जी रूप से विस्थापितों के नाम हुआ है। इससे सैकड़ों मूल मालिक हैरान है चूंकि उन्हें उनके मालिकाना हक एक प्रकार से छीने जाने से किसानी योजना के लाभ या ऋण नहीं मिला है। इस संबंधी कुछ किसानों की शिकायतें दाखिल करने के बावजूद संबंधित अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे है। सभी 1589 फर्जी रजिस्ट्रियों पर एक साथ रद्द करने की कार्यवाही जरूरी है।
3- जिन 200 दलालों की सूची झा आयोग ने रिपोर्ट में घोषित की है उन पर सख्त कार्यवाही के लिये शासन से जांच की जरूरत नही समझी है जबकि तत्काल कार्यवाही होना चाहिए।
4- रजिस्ट्रियां पूर्णतः फर्जी होते हुए भी की गई, जिसमें राजस्व विभाग, रजिस्ट्रार कार्यालय एवं नर्मदा सरदार सरोवर पुनर्वास कार्यालय के कर्मचारी/अधिकारी सम्मिलित होने की हकीकत झा आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है।
5- मकान के लिये भू-खण्ड आवंटन में प्रक्रिया भू-राजस्व संहिता के तहत होते हुए भी आधी अधूरी होने से आवंटित भू-खण्डों में परिवर्तन भी भ्रष्टाचार का आधार बन गया। भू-खण्ड आवंटन की कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण तरिके से उल्लंघन होने से सारे अधिकारी इन अनियमित्ताएं एवं भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार है। इस निष्कर्ष के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई और विस्थापितों को काफी कुछ भुगतना पड़ा है।
6- आजीविका अनुदान के भुगतान संबंधी सही रिकोर्ड नही रखा गया। जिससे अनुदान आजीविका संबंधी साधन खरीदी पर ही खर्च होना साबित हो सकता था। इस वास्तविकता को भ्रष्टाचार ही कहकर आयोग ने निष्कर्ष निकाला। हजारो परिवारों को आजीविका अनुदान का भुगतान हुआ है। लेकिन उसमें पाई गई अनियमितता संबंधी कोई कार्यवाही, किसी को दोषी भी न करार करते हुए, टाली गई है। न ही जांच आगे बढ़ाई गई है, न ही गलत भुगतान या उससे दलालों ने निकाला गया हिस्सा वसूला गया। शासकीय तिजोरी पर यह डाका होते हुए भी किसी को दोषी करार नही किया गया।
7- म.प्र. की 83 पुनर्वास स्थलों पर निर्माण की, सुविधा-संरचनाओं की जांच में पूर्व में ऑडिटर से होकर 40 इंजीनियर्स और अन्य कर्मचारी प्रथम निलंबित और आखिर सेवा से हटाये गये थे जिसमें भ्रष्टाचारी साबित हुआ था। झा आयोग ने इस मुद्दे पर तकनीकी जांच होते हुए मैनिट भोपाल और आई.आई.टी. मुम्बई को कार्य सौंप दिया। मैनिट भोपाल की टीम ने एक-एक बसाहट में पहुंचकर जांच की, विस्तृत रिपोर्ट में पानी, बिजली, सड़क, पुलिया जैसी हर सुविधा के निर्माण कार्य में हुई तमाम अनियमितताओं का ब्योरा दिया था। उसमें कई सारी धांधलियां जिनमें आर्थिक मुनाफा कमाने की साजिश पायी गई थी। पुनर्वास स्थलों को चुनने से लेकर बिजली सप्लाई के लिये ट्रांसफार्मर खरीदने में भ्रष्टाचार साबित हुआ है। इन सभी मुददों पर छोटे कर्मचारी ही नही ऊँचे स्तर पर बैठे अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध नजर आती है। बसाहटों का निर्माण कार्य आज तक पूरा नही कराया गया है। भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि सुविधा-संरचना निर्माण में गुणवत्ता कम होकर विस्थापितों को ही भुगतना पड़ा है। जो आज भी पीड़ित है।
8- मैनिट/आई.आई.टी. की विस्तृत जांच रिपोर्ट में आये कई निष्कर्ष और आरोपों को एन.व्ही.डी.ए. ने श्री खरे (संयुक्त संचालक) ने आपत्ति उठाकर या पूर्णतः नकारकर एक चुनौती दी लेकिन इसमें भी सच झूंठ की तलाश नहीं हुई, न ही कोई कार्यवाही हुई।
झा आयोग की रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य-
• कमीशन ने अपनी 144 पन्नों की रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी थी।
• माननीय सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के अनुरूप विस्थापितों का पुनर्वास नही किया गया।
• पुनर्वास नीति की मंशा के अनुरूप हितग्राहियों को जमीन के बदले जमीन नही दी गई।
• जो जमीनें लैंड पूल में रखी गई थी, उनमें या तो कब्जा था या बंजर थी।
• पुनर्वास अधिकारियों ने जमीन के बदले जमीन देने में कोई रूचि नही दिखाई।
• एन.व्ही.डी.ए. और राजस्व का अमला सिर्फ मुआवजा बांटना चाह रहा था।
• अधिकारियों ने दलालों के साथ मिलकर जमीनों की कीमतें बढ़ने का प्रचार किया।
• पुनर्वास नीति का मनमर्जी से मुआवजा बांटने में उपयोग किया।
• आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 1590 रजिस्ट्री फर्जी पाई।
• आयोग ने 561 रजिस्ट्री गैरहस्तांतरित पाई, सिर्फ कागजों पर लिखा पढ़ी हुई।
• आयोग ने 12 पटवारी की भूमिका संदिग्ध पाई।
• आयोग ने पाया कि मुआवजा पाने वाले आदिवासी किसान आज फटेहाल मजदूर बन गये है।
• आयोग ने दलाली करने वाले लोगों की सूची रिपोर्ट में सौंपी।
• आयोग ने 16 सितम्बर 2003 को जारी भूमि संबंधी निर्देशों का उल्लेख किया है।
• आयोग ने कहा है कि जमीन के बदले जमीन देने के निर्देश सिर्फ कागजों पर ही नजर आये।
• आयोग के अनुसार मुआवजा दिये जाते समय जमीन की बाजार मूल्य भी संशोधित नहीं की गई।
• मुआवजा दिये जाते समय 24 घंटे के भीतर दूसरी किस्त दिये जाने के निर्देश थे।
• मुआवजा देते समय किसानों से कहा गया कि जमीन नहीं खरीदेंगे तो दूसरी किस्त नहीं मिलेगी।