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ग्राउंड रिपोर्ट: खरगोन में क्यों भड़की हिंसा? अब कैसे हैं हालात ?

वरिष्ठ पत्रकार बृजेश राजपूत की हिंसा से प्रभावित खरगोन में आँखों देखी

दृश्य एक – खरगोन के काजीपुरा में पैंसठ साल की बुजुर्ग कांता का मकान। पूरी उमर इस दो कमरे के मकान में रहते गुजर गयी मगर ये नहीं सोचा था कि इस घर से कभी उनको जान बचाकर भागना पड़ेगा। पूरा घर अंदर बाहर जला हुआ है। दरवाजे खिड़कियों की चौखटें कोयला बन गयीं है। कांता अम्मा के पास शरीर के कपड़ों के अलावा कुछ नहीं बचा। वो भतीजी के घर पांच दिनों से रह रही हैं।

दृश्य दो – खरगोन के संजय नगर में कुछ मकान एक लाइन से जले हैं। ऐसे ही एक मकान के सामने अपने जले हुये आटो के सामने खडे मिले अमित बंडोले। उनका आशियाना और आबोदाना दोनों जल गये। लोन लेकर आटो चलाते थे जिससे घर चलता था मगर अब जला घर और फुंका आटो देखकर रोते हैं। अंदर उनकी मां कांता बाई हैं जो आंखों में आंसू भरकर सफेद दीवालों पर जलने से लगी कालिख को मिटाने की असफल कोशिश में जुटी हैं।

दृश्य तीन – संजय नगर के कुछ दीवारों पर ये मकान बेचना है कि इबारत कोयले से लिखी है। दरवाजे पर आंखों में आंसू भरकर खडी हैं संतोषी चौहान। थोडी देर पहले ही कलेक्टर अनुग्रहा पी घर आकर कंधे पर हाथ रखकर भरोसा दिलाकर गयीं हैंं। मगर घबराहट और बैचेनी कम नहीं हो रही। घर के पीछे की दीवाल तोड़कर उपद्रवी सब कुछ ले गये। बच रह गया है तो गहरा दुख दर्द।

दृश्य चार – खरगोन के जिला अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड के बेड नंबर दस पर महरूबी लेटी हैं जिनके चेहरे पर उपद्रवियों ने तलवार मारकर घाव किया है गाल से लेकर जबड़ा तक कट गया है बोलना मुश्किल हो रहा है। डॉक्टर कहते हैं इंदौर जाओ इलाज कराने मगर पैसा नहीं है तो उनके बाजू वाले बेड नंबर ग्यारह पर गौशाला के सुरेंद्र ठाकुर जिनके सर पर चार टांके लगे हैं। गर्दन पर पत्थरों के घाव हैं। चार दिन बाद घर से निकल कर अस्पताल आये हैं। दोनों कहते हैं जाने कौन लोग आये थे हमला करने।

बृजेश राजपूत

निमाड़ के सबसे संपन्न इलाके खरगोन में रामनवमी की शाम जो उपद्रव पथराव और आगजनी हुयी उसके निशान शहर की छह से आठ बस्तियों में बिखरे पड़े हैं। ये बस्तियां वहीं हैं जहां पर हिन्दु मुस्लिम आबादी मिल जुलकर सालों से रह रहीं थीं। मगर जाने क्यों और कबसे ऐसी नफरत पल रही थी जो इस तरह सामने आयी कि एक दूसरे की आबादी से घिरे लोग और कही बसने की सोचने लगे हैं। ये तात्कालिक दौर भी हो सकता है बाद में लोग वहीं भले रह जाये मगर ऐसा हुआ क्यों।

क्यों प्रशासन ये नहीं समझ पाया कि खरगोन बारूद के ढेर पर बैठा है। घटना की शुरुआत तालाब चौक से होती है जहां पर मसजिद के सामने के मैदान पर कई डीजे इकट्ठे होकर रामनवमी के जुलूस का माहौल बनाते है। तीन बजे निकलने वाला जुलूस दो तीन घंटे देरी से शुरू होता है और तीस सौ मीटर दूर जाने के बाद ही पथराव के बाद तो शहर कही गलियों में पथराव और आगजनी शुरू हो जाती हैं। उपद्रवियों को काबू करने की कोशिश में एसपी और थानेदार घायल होते हैं और इसके बाद शहर की संवेदनशील गलियां दो से तीन घंटे तक पत्थरबाजों ओर उपद्रवियों के कब्जे में आ जाती है।

किसी भी मोहल्ले में निकलिये लोगों के मोबाइल उस दिन की हिंसा के वीडियो से भरे पड़े हैं और उन वीडियो पर उनकी अपनी कहानी। कोई कहता है पडोसी थे तो कोई बताता है बाहर से लोग आये शहर में बवाल करने। मगर किसी बड़े जिले के मुख्यालय में ही इतना बड़ा बवाल बताता है कि प्रशासन बड़ी चूक कर गया।

सांप्रदायिक हिंसा में शहर के जलने के बाद अतिक्रमण के नाम पर आप चाहे पत्थरबाजों के मकान गिरा लो या दुकान मगर विश्वास भरोसे की वो दीवार तो गिर ही गयी जो सालों में दो संप्रदाय के लोगों के बीच बन पायी थी। जिला प्रशासन की गंभीर चूक को भोपाल में बैठे नेता मंत्री अब कितनी भी ताल ठोंक कर बताये कि हम पत्थरबाजों को मिटा देंगे नेस्तनाबूद कर देंगे तबाह कर देंगे मगर इन फिल्मी डायलाग से बहुत कुछ हासिल नहीं होगा। बड़े पैमाने पर की गयी गिरफ्तारियां में भी पुलिस प्रशासन की ज्यादतियों की कहानियां सुनने को मिल रहीं है।

सरकार के सामने उपद्रवियों पर सख्ती से ज्यादा खतरनाक चुनौती मोबाइल के सहारे सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा जहर है इससे वक्त चलते नहीं निपटा गया तो हर शहर में भारत पाकिस्तान बनाने की तैयारी दोनों तरफ से हो रही है ये खरगोन की गलियों में घूमने से समझ में आ गया है।

(ग्राउंड रिपोर्ट एबीपी न्यूज़ से साभार)

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