विकास या विनाश: देहरादून में फोरलेन के लिए कटेंगे 2200 पेड़, 70% वन क्षेत्र पहले ही खत्म
देहरादून में फोरलेन के लिए काटे जा रहे 2200 पेड़, विरोध में पर्यावरण प्रेमियों ने खोला मोर्चा।
देहरादून (जोशहोश डेस्क) देवभूमि उत्तराखंड की हरियाली लगातार कम होती जा रही है। उत्तराखंड में क्लाइमेट चेंज के कारण बार-बार भूस्खलन, बाढ़, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाएं सामने आ ही रही हैं। इसके अलावा कम सर्दी, अत्यधिक गर्मी जैसे कारक कृषि क्षेत्रों, भूजल और झरनों को भी प्रभावित कर रहे हैं। इससे सबक लेने के बजाय अब भी सरकारें विकास की आड़ में विनाश की पटकथा खुद ही लिख रही हैं।
वर्ष 2000 में अस्थाई राजधानी बाने के बाद देहरादून भी हरियाली के संकट से जूझ रहा है। संकट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी बनने से अबतक देहरादून घाटी ने अपना 70% वन क्षेत्र खो दिया है।। ऐसे में भी यहाँ फोरलेन बनाने के लिए दो हजार से ज्यादा हरे भरे पेड़ों को काटा जा रहा है जिसका विरोध शुरू हो गया है।
दरअसल जोगीवाला से सहस्त्रधारा के बीच फोरलेन बनाने के लिए सहस्त्रधारा रोड पर 2200 पेड़ काटने की तैयारी है। इन 2200 पेड़ों को काटकर बनाए जाने वाले फोरलेन के लिए 77 करोड़ रुपए स्वीकृत हो चुके हैं। काटे जाने वाले पेड़ों को भी चिन्हित कर लिया गया है।
देहरादून में सहस्त्रधारा के 2200 पेड़ों को काटे जाने के विरोध में पर्यावरण प्रेमियों ने मोर्चा भी खोल दिया है। ‘द अर्थ एंड क्लाइमेट इनिशिएटिव’ की डॉ आंचल शर्मा ने इसके खिलाफ पिटीशन भी दायर की है। आगामी 26 सितंबर को पेड़ काटे जाने के विरोध में महिलाएं चिपको आंदोलन की शुरुआत भी करेंगी।
सोशल मीडिया पर #SaveSahastradharaTrees अभियान चलाया जा रहा है। असलीभारत.कॉम के फाउंडर मेंबर अजीत सिंह ने इस अभियान के तहत लिखा-
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और उत्तराखंड में सक्रिय वैभव वालिया ने भी इन पेड़ों को बचाने मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को पत्र लिखा है-
इस फोरलेन के बनने से देहरादून से मसूरी पहुंचना भले ही आसान हो जाए लेकिन यह देहरादून के पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होगा इसमें कोई संदेह नहीं। उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद साल 2000 में देहरादून को राज्य की अस्थाई राजधानी बनाया गया था। तभी से जनसंख्या में वृद्धि और लगातार हो रहे निर्माण कार्यों के कारण दून घाटी का पर्यावरण संतुलन प्रभावित हो रहा है। इससे दून घाटी की प्राकृतिक सुंदरता भी खतरे में आ गई है। बीते 20 साल में देहरादून में कंक्रीट कवर 600% बढ़ा है जो बड़े पर्यावरणीय खतरे का संकेत है।