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अंग्रेज भी लाए थे तीन काले कृषि कानून, तब भगत सिंह के चाचा-पिता ने हिला दी थी हुकूमत

किसान आंदोलन ने उस दौर की याद दिला दी जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमर शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह की अगुआई में पंजाब में किसान एकजुट हो गए थे।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) दिल्ली के सिंघु बाॅर्डर चल रहे किसान आंदोलन में एक बार फिर ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ की गूंज सुनाई दे रही है। इस गूंज ने इतिहास के उस दौर की याद दिला दी जब 1907 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमर शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह की अगुआई में पंजाब में किसान एकजुट हो गए थे।

संयोग की बात यह है कि उस समय भी किसान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लाए गए तीन कानूनों का ही विरोध कर थे। पंजाब की गली में ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के स्वर सुनाई देने लगे थे। यहां तक कि पूरा आंदोलन ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन के नाम से ही जाना गया। आंदोलन की आग इतनी फैली की ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने पड़े थे।

दरअसल 1907 में अंग्रेजों ने दोआब बारी एक्ट, पंजाब लैंड कॉलोनाइजेशन एक्ट और पंजाब लैंड एलियनेशन एक्ट नाम के तीन कानून बनाए थे। कहा यह गया कि इन कानूनों के माध्यम से नहर बनाकर कृषि का कायाकल्प किया जाएगा लेकिन विकास के नाम पर किसानों से कौड़ी के भाव जबरन जमीन ली जाने लगी। साथ ही साथ कई टैक्स भी किसानों पर लाद दिए गए। तब भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया मार्च 1907 को तत्कालीन पाकिस्तान के ल्यालपुर वर्तमान में फैसलाबाद में किसानों की बड़ी रैली के साथ आंदोलन का आगाज हुआ।

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बांके दयाल ने गाया पगडी संभाल जट्टा

तत्कालीन पाकिस्तान के ल्यालपुर में एक झांग स्याल नाम का साप्ताहिक अखबार प्रकाशित होता था। बांके दयाल उसके संपादक थे किसानों की रैली में बांके दयाल ने अजीत सिंह और किशन सिंह के साथ मिल ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ गीत गाया था। सरदारों के लिए पगड़ी बेहद गर्व का की बात थी ऐसे में ये गीत हर जुबान पर चढ़ गया और पंजाबियों की अस्मिता का प्रतीक बन गया। बाद में आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा’पड़ गया।

‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन के जनक अजीत सिंह ने योजनाबद्ध तरीके से इसकी अगुआई की। लाला लाजपत राय जैसे बड़े नेता भी आंदोलन में शामिल हो गए। अंग्रेजी हुकूमत से परेशान आम लोग भी साथ आते गए। इसका असर भी दिखा। ब्रिटिश हुकूमत ने लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को जेल भेज दिया लेकिन उसे किसानो के आगे झुकते हुए कानून में बदलाव करने पड़े।

इसके बाद आंदोलन के मुख्य चेहरे यानी अजीत सिंह को लगभग 40 सालों के लिए देश से निकाला दे दिया गया। इस दौरान अजीत सिंह ईरान,यूरोप और लैटिन अमेरिका में रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अजीत सिह इटली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से भी जुड़ गए और आजादी के लिए संघंर्ष करते रहे। वे आजादी मिलने से कुछ पहले ही भारत लौटे। अपनी मात्राभूमि को आजाद देखने के साथ ही यानी 15 अगस्त 1947 को उनका निधन हुआ।

पहले और अब का आंदोलन

ब्रिटिश हुकूमत के दौर में भी तीन कानूनों का विरोध इस आधार पर किया गया था कि ये कानून किसानों का जमीन से बेदखल कर देंगे। वर्तमान में भी किसानों को पूंजीवादी ताकतों के हाथ में खेती जाने का खौफ है। अच्छा यह है कि उस दौर के आंदोलन में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थीं लेकिन मोदी सरकार के कानूनों का विरोध किसान शांतिपूर्वक कर रहे हैं।

कांग्रेस ने भी याद दिलाया इतिहास

कांग्रेस ने भी अंग्रेजों और अब मोदी सरकार के तीनों कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन को इतिहास से जोड़ा है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्रा ने उस दौर के आंदोलन पर लिखे आर्टिकल को ट्वीट करते हुए लिखा-

इतिहास दोहरा रहा है 1906-07 किशनसिंह-अजीतसिंह (शहीद भगतसिंह के पिता-चाचा) ने अंग्रेजों के 3 काले कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन खड़ा किया था,जिन्हें वापस लेना पड़ा था,यदि ऐसा न होता तो जमीदार अपनी जमीन पर मज़दूर हो जाते! आज भी 3 काले कृषि कानून,सामने हैं “अंग्रेजों की जगह उनके नौकर”?

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