भुखमरों की जमात में 94 से 101 वे स्थान पर हम, गिरना हमारा राष्ट्रीय चरित्र
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग पर पत्रकार राकेश अचल का हास्य-व्यंग्य
सारे जहां से अच्छा होने के बावजूद भुखमरी के मामले में भारत दुनिया में विश्व गुरू तो नहीं बन पाया लेकिन 101 वे नंबर पर जाकर जरूर खड़ा हो गया है। प्र्धानमंत्री नरेंद्र मोदी के अविश्वसनीय नेतृत्व में भारत पिछले एक साल में 94वे पायदान से खिसक कर 101वे स्थान पर आ गया है। गिरावट के मामले में पिछले साल में भारत की इस उपलब्धि के लिए अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को बधाई देते हैं।
भारत दरअसल अब कृषि प्रधान देश नहीं रहा। अब हमारा देश गिरावट पसंद देश है। पिछले सात साल में हम हर क्षेत्र में गिरे हैं ,और लगातार गिरते ही जा रहे हैं। गिरावट हमारी राजनीति की देन है। राजनीति गिरी तो हर क्षेत्र में हमें गिरना पड़ा। जीडीपी से लेकर जितने भी उपलब्धियों के क्षेत्र हो सकते हैं उसमें हम लगातार गिर रहे हैं। डालर के मुकाबले तो हमारा रुपया गिरने का आदी ही हो चुका है। खुशी के इंडेक्स में हम गिरे हुए हैं ही। ओलम्पिक के क्षेत्र में भी हम कभी विश्व गुरु नहीं बन पाए,हालांकि हमारा सपना विश्व गुरु बनने का है और रहेगा।
आज की दुनिया में गिरना बहुत कठिन काम है लेकिन हम हैं की कठिन काम करने में हमेशा आगे रहता है,अब भुखमरी के मामे में भी हमारे मुकाबले कोई ठहर ही नहीं पा रहा। हमने इस मामले में पूरे एक सैकड़ा देशों को मौक़ा दिया है। .हमारे यहां 101 का अंक बड़ा सौभाग्यशाली माना जाता है। इसलिए हम गिरकर 94 से 101 पर आ गए। हमारे यहां पंडित की दक्षिणा से लेकर नेग तक में 101 रुपए देने का चलन है। गिरावट के मामले में इसीलिए भारत ने ये 101 का अंक पसंद किया।
भारतीय दर्शन में गिरना कोई बुरी बात नहीं है. हमारे तो शायर तक भी कहते हैं कि-
गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में ,
वे लोग क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलें “
गिरावट के मामले में हमारी सरकार,हमारे नेता सिद्ध हस्त हैं। जब जिसका दांव लगता है तब एक-दूसरे की सरकारों को गिरा देते हैं हमारे नेता। चुनी हुई और जनादेश की सरकारें गिराने में हमारे नेताओं को बड़ा मजा आता है। हमारे अब्बा हुजूर कहते थे कि सामने वाले को गिराने के लिए खुद को पहले गिरना पड़ता है। हमारे अब्बा हुजूर की बात हमने तो नहीं मानी लेकिन हमारे नेताओं ने इस पर झकर अमल किया। वे पहले खुद गिरते हैं और फिर सामने वाले को गिराते हैं। गिराते वक्त कोई ऊंच-नीच नहीं देखता। देखना भी नहीं चाहिए। यदि आपने ऊंच-नीच का ख्याल रखा तो आप न खुद जिंदगी भर गिर सकते हैं और न सामने वाले को गिरा सकते हैं।
गिरना, फिसलना एक ललित कला है। इस कला में पारंगत होने के लिए अक्सर मुगलिया हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। गिरे हुए लोगों के लिए अलग से मार्गदर्शक मंडल बनाना पड़ता है। जो इशारे से नहीं गिरते उन्हें धक्का देकर गिरना पड़ता है। वैसे भी हर पुरानी चीज को गिराना आसान होता है,फिर चाहे वो कोई दीवार हो या नेता। अब देखिये न पुराने लालकृष्ण आडवाणी कितनी आसानी से गिरा दिए गए। पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से गिराने में कितनी देर लगी? नवजोत सिंह सिद्दू के दो-चार झटके में ही गिर गए कैप्टन।
गिरावट के लिए अकेले हमारे प्रधानमंत्री जी जिम्मेदार नहीं है। हम सब जिम्मेदार हैं। हमने राजनीति के अलावा साहित्य,कला,संगीत,पत्रकारिता धर्म सभी क्षेत्रों में गिरावट को प्राथमिकता दी है। एक तरह से हम सबके बीच प्रतिस्पर्द्धा चल रही है गिरने की। कौन,कितना गिर सकता है, ये कहना कठिन है। एक तरह से आप कह सकते हैं कि हम परम गिरे हुए लोग हैं। मुमकिन है कि आप इस सच को स्वीकार न करें,किन्तु मैं हमेशा सच के साथ खड़ा रहा हूँ और गर्व से कहता हूँ कि-‘ हम सब गिरे हुए लोग हैं। गिरना हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। जो गिरता नहीं,वो कभी ऊपर नहीं उठ सकता। लोग गिर-गिर कर ही पार्षद से प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे हैं।
गिरावट शर्म की नहीं गौरव की चीज है। हर किसी में हिम्मत नहीं होती गिरने की. गिरने में जोखिम ही जोखिम है। चोट भी लगती है। पांव भी मोचता है,टखने भी टूटते हैं लेकिन ऊपर उठने के लिए गिरना ही पड़ता है। जो नहीं गिरते वे हमारी तरह दूर खड़े टापते रहते हैं। गिरे हुए समाज में न गिरने वाले लोगों के लिए कोई जगह नहीं होती। जो कभी गिरा नहीं वो राष्ट्रभक्त हो ही नहीं सकता। इसलिए जब भी मौक़ा मिले नीचे गिरिये। नीचे गिर चुके लोगों से प्रेरणा लीजिये।
महात्मा गांधी नीचे गिरे बिना ऊपर नहीं उठे थे। उन्हें अंग्रेजों ने एक बार नहीं बल्कि बार-बार नीचे गिराया। कभी रेल से,कभी कार से,कभी तांगे से। पर गांधी जी की हिम्मत थी कि वे जितनी बार नीचे गिराए गए ,वे लगातार ऊपर उठते चले गए। गांधी खुद नीचे नहीं गिरे थे इसीलिए वे अपने आप ऊपर उठे और अब वे इतने ऊपर उठ चुके हैं कि कोई उनकी बराबरी नहीं कर पा रहा। न पंडित दीन दयाल और न पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तो अपने वीर सावरकर को ऊपर उठाने के लिए महात्मागांधी को ही नीचे गिराने में लगे हुए हैं। राजनाथ सिंह को कौन बताये कि नीचे गिरा आदमी आसानी से ऊपर नहीं उठता। उसे बहुत से पापड़ बेलना पड़ते हैं।
सहायता कार्यों से जुड़ी आयरलैंड की एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी का संगठन वेल्ट हंगर हिल्फ की ओर से संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को ‘चिंताजनक’ बताया गया है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई ) 2021 ने भारत को 116 देशों में से 101वां स्थान दिया है। 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर था।
भुखमरी की इस ताजा खबर के बाद हमें गिरावट के साथ ही भुखमरी से निबटने की भी कोशिश करना होगी। भुखमरी से हम तभी जीत पाएंगे जब हमारे देश के किसान खुश हों। वे आंदोलन के लिए सड़कों के बजाय अपने खेतों-खलिहानों में काम करें। हर हाथ को काम मिले। हमारे नौजवान आर्यन खान की तरह जेलों में न जाएँ बल्कि कल-कारखानों में काम करें। काम करने के लिए केवल राजनीति ही एकमात्र जनसेवा का केंद्र नहीं है। राजनीति में आजकल केवल टैनी ब्रांड लोग ही सम्मान पा सकते हैं,जो हर तरह से गिरे हुए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)