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झारखंड: राजनीतिक पारा गर्म, सरकार की स्थिरता पर उठ रहे सवाल?

झामुमो और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को अंदर और बाहर की कई चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है।

दीपक हेतमसरिया (जोशहोश, रांची) इस साल सर्दियां खत्म होने के बाद मार्च के महीने में ही अचानक गर्मी बढ़ने लगी। झारखंड की राजधानी रांची को खुशनुमा मौसम के लिए जाना जाता है लेकिन यहां भी समय से पहले ही जून के महीने वाली लू के गर्म झोंके चलने लगे हैं और मौसम से ज्यादा गर्मी झारखंड के राजनीतिक तापमान में दिख रही है।

विधानसभा का बजट सत्र हाल ही में खत्म हुआ है। झामुमो और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को अंदर और बाहर की कई चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है। दिसंबर 2019 में बनी हेमंत सोरेन सरकार के असमय पतन को लेकर कई बार कयास लग चुके हैं। गत वर्ष कांग्रेस के ही एक विधायक अनूप सिंह ने सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाकर पुलिस में मामला दर्ज किया था।

फिलहाल झारखंड से राज्यसभा की दो सीटें खाली होने वाली हैं। मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल खत्म होने के बाद दोनों सीटों पर जून-जुलाई में चुनाव होंगे। इन दोनों सीटों को लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के विभिन्न विधायकों के बीच दांवपेंच का असर झारखंड के राजनीतिक माहौल पर दिख रहा है।

दिसंबर 2019 में झारखंड की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में झामुमो को 30 सीटों पर सफलता मिली थी। कांग्रेस को 17 सीटों पर जीत हासिल हुई। इस तरह हेमंत सोरेन के नेतृत्व में आसानी से सरकार बन गई। लेकिन कांग्रेस में मंत्री पदों को लेकर घमासान हरदम बना रहा। दूसरी ओर, झामुमो में पार्टी के भीतर किसकी बात सुनी जाएगी, इसे लेकर खींचतान जारी है।

हर दिन साफ दिखता है कि झामुमो और कांग्रेस, दोनों पार्टिंयों में अंदरखाने उथल-पुथल मची है। गुरुवार को कांग्रेस के चार विधायकों इरफान अंसारी, राजेंश कच्छप, विक्सन कांगाड़ी और उमाशंकर अकेला ने बैठक की। उन्होंने कांग्रेस कोटे के चारों मंत्रियों पर नाकामी का आरोप लगाया। कहा कि झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रभारी आरपीएन सिंह ने ढाई साल बाद मंत्रियों के काम की समीक्षा करने की घोषणा की थी। आशय यह है कि वर्तमान चारों कांग्रेस मंत्रियों को बदलकर नए लोगों का मंत्री बनाया जाए।

दूसरी ओर शुक्रवार को बोरियो विधानसभा क्षेत्र के झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने प्रेस कांफ्रेस करके अपनी ही सरकार पर आदिवासी हितों की अनदेखी का आरोप लगाया। हेंब्रम ने कहा कि स्थानीय निवासी और नियोजन नीति नहीं बनाए जाने के कारण बाहरी लोगों का झारखंड में बोलबाला होता जा रहा है। इससे आने वाले समय में झारखंड के मूलवासी और आदिवासियों को अल्पसंख्यक होना पड़ेगा।

झामुमो की ही एक प्रमुख विधायक सीता सोरेन का गत दिनों झारखंड के राज्यपाल से मिलना भी कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे गया। पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की असमय मौत के बाद शिबू सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन ने राजनीति में कदम रखा। वह दूसरी बार जामा से विधायक बनी हैं। लेकिन उनकी कई गतिविधियों को पार्टी लाइन से भिन्न समझा जाता है।

फिलहाल कांग्रेस और झामुमो दोनों की कैंप के विधायकों की असंतुष्ट गतिविधियों ने झारखंड सरकार की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर दिया है। लेकिन इसे प्रेशर पाॅलिटिक्स के बतौर ही देखा जा रहा है। राज्य के बोर्ड निगमों के पदों को भरने, मंत्री पदों में फेरबदल करने और राज्यसभा चुनाव में मनचाहा प्रत्याशी खड़ा करने के साथ ही जिलों के प्रमुख्स पदों पर अपने चहेते अफसरों की नियुक्ति जैसे मामलों में अपनी चलाने की चिंता हावी दिखती है। वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद लगभग 15 वर्षों तक झारखंड को राजनीतिक अस्थिरता से गुजरना पड़ा। संभव है कि राज्य का मौजूदा नेतृत्व इन असंतृष्टों को साथ लेकर राजनीतिक तापमान को ठंडा करने में कामयाब हो जाए।

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