उमा भारती की सुनी जाती तो क्या आपदा से बच सकता था उत्तराखंड?
मंत्री रहते उमा भारती ने गंगा और सहायक नदियों पर हाइड्रोप्रोजेक्ट का विरोध किया गया था तो इन्हें आकार कैसे और किसकी सहमति से मिला यह बड़ा सवाल है?
भोपाल (जोशहोश डेस्क) देवभूमि उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने के बाद आई आपदा के बाद राहत और बचाव कार्य जारी है। इस आपदा को पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने चिंता के साथ चेतावनी भी बताया है। उमा भारती ने कहा है कि मंत्री रहते उन्होंने एक एफिडेविट तक दिया था जिसमें गंगा और उसकी सहायक नदियों पर हाइड्रोप्रोजेक्ट लगाए जाने का विरोध किया गया था।
उत्तराखंड में आई आपदा के बाद उमा भारती ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए। इन ट्वीट् में उमा ने आपदा पर दुख जताते हुए लिखा कि जब मैं मंत्री थी तो मैंने अपनी मंत्रालय की ओर से सरकार को दिए एफिडेविट में यह अनुरोध किया था कि हिमालय एक संवदेनशील स्थान है। ऐसे में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर पाॅवर प्रोजेक्ट नहीं बनने चाहिए। इससे उत्तराखंड की जो 12 % की क्षति होती है वह नैशनल ग्रीड से पूरी कर देनी चाहिये ।
गौरतलब है कि जब 2014 में मोदी सरकार बनी थी तब उमा भारती को जलसंसाधन मंत्री बनाया गया था। साथ ही उमा भारती के जलसंसाधन मंत्रालय ने बड़े जोर शोर से 20 हजार करोड़ का नमामि गंगे अभियान भी शुरू किया था। इसका उद्देश्य गंगा के प्रदूषण को समाप्त कर इसे पुनर्जीवित करना था।
अब उमा भारती के ट्वीट के बाद यह सवाल उठ रहा है कि जब मंत्री रहते उमा भारती ने गंगा और उसकी सहायक नदियों पर पाॅवर प्रोजेक्ट का विरोध किया था क्या उनकी इस सलाह को अनदेखा किया गया? हालांकि उमा भारती ने भी अपने ट्वीट में यह साफ नहीं किया है कि उनके इस एफिडेविट पर सरकार ने क्या कदम उठाए?
बीते छह सालों से केंद्र में भाजपा की सरकार है अगर मंत्री रहते उमाभारती ने इन प्रोजेक्ट का विरोध किया था तो इन्हें आकार कैसे और किसकी सहमति से मिला यह बड़ा सवाल है?
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