सरकार की एडवाइज़री के बाद भी यूक्रेन से क्यों नहीं आए बच्चे? जानिए वजहें
विद्यार्थियों का पक्ष रखने वाली पंकज मिश्रा की फेसबुक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल।
नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) रूस के हमले के बाद यूक्रेन में 15 हजार से ज्यादा भारतीय विद्यार्थी फंसे हुए हैं। यूक्रेन की सीमाओं के साथ वहां के शहरों में भारतीय विद्यार्थी बेहद विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा भारतीयों की सुरक्षित वापसी के लिए शुरू किये गए ऑपरेशन गंगा को भी देरी से उठाया गया कदम बताया जा रहा है। वहीं एक वर्ग यूक्रेन में फंसे विद्यार्थियों को ही दोषी बता यह सवाल कर रहा है कि जब सरकार ने एडवाइज़री जारी कर दी थी तो उस समय विद्यार्थी लौटकर क्यों नहीं आ गए?
इस सवाल के जवाब में व्यंग्यकार और खेलप्रेमी पंकज मिश्रा ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है, जो वायरल हो रही है। इस पोस्ट में एडवायजरी जारी होने के बाद भी न आने को लेकर विदयार्थियों का पक्ष रखा गया है। साथ ही यह सवाल उठाने वालों की संवेदनशीलता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े किये हैं। पढ़िए पंकज मिश्रा की FB पोस्ट-
कितनी आसानी से बोल दे रहे है कि इतना खर्च कर रहे तो टिकट नही ले सकते, या कि पहले क्यों नही चले आये, अभी तक क्यों रुके थे। वगैरह वगैरह …. .
तो बंधुओं कुछ तथ्य जान ले ,बच्चे इसलिए रुके थे क्योंकि बच्चों के पास न विदेश मंत्रालय है,न रक्षा मंत्रालय, न सच बताने वाले चैनलों का मालिकाना हक कि वह यह भांप लेते कि 23 फरवरी या फरवरी के आखिरी हफ्ते में कभी भी युद्ध हो जाएगा। यह काम सरकारों का है, वह इसी आकलन के लिए सत्ता में बैठी है। सरकार ऐसा करने में विफल रही।
दूसरा बच्चे इसलिए नही आये क्योंकि यूक्रेन का राष्ट्रपति खुद डिनायल mode में था और एक हफ्ते पहले तक बोल रहा था कि युद्ध नही होगा। अब वहां का मीडिया भी तो यही की तरह राष्ट्रवादी होगा जैसे हमारा जो चीन जैसी महाशक्ति का मजाक उड़ाता है, पिद्दी से चीनी सैनिक, स्मोकिंग से फेफड़ा गलाये बैठे है , बर्फ में गल जाएंगे, युद्ध का अनुभव नही है ….तो वहां भी यही सब नौटँकी चल रही थी, अब बच्चे किस पर विश्वास करते …मेडिकल कालेज भले न हो लेकिन भक्ति की पाठशाला तो जगह जगह खुली है। यानी बच्चों को निकट भविष्य की भयावह सच्चाई का कोई अनुमान नही था, उन्हें हो भी नही सकता था।
तीसरा बच्चे इसलिए नही आये क्योंकि वहां जो बच्चे हैं वह गरीब तो नही हैं मगर मिडिल क्लास के उस वर्ग से हैं जो अपना पेट काट कर,पूरी जमापूंजी और कर्ज वर्ज लेकर लाख रुपया महीना फीस तो भर सकता है लेकिन सवा लाख डेढ़ लाख नहीं …. मतलब फर्क इसी 25 – 50 हजार महीने के इंतजाम का है जो उनसे नही हो सकता औऱ ऐसे गार्जियन कलेजे पर पत्थर रख कर अपनी 18 साल की लड़की को उसके सुंदर भविष्य के सपने के साथ खारकीव, लविव और कियेव विदा करते हैं।
वहां से बच्चे सालों साल इंडिया सिर्फ इसलिए नही लौटते कि आने जाने में लाख रुपया लग जायेगा। तो जो प्राइवेट एयरलाइने आपदा में अवसर वाली पूंजीवादी मुहावरे को ऐन विपदा में लागू करती है और भक्त जन उसके साथ सुर में सुर मिलाते हैं, असल मे वह उन बच्चों को गाली दे रहे होते हैं अपने ही भाई बहनों की मजबूरी का मजाक उड़ा रहे होते हैं।
चौथा यह कि वे बच्चे इसलिए नही आ सके क्योंकि वहां की यूनिवर्सिटीज़ online क्लासेस नही शुरू कर रही थी, यह एम्बेसी की जिम्मेवारी थी कि सरकार या यूनिवर्सिटी से बात कर उन्हें इसके लिए राजी कर लेती, बच्चे इंडिया लौट कर online पढ़ाई करते रहते । सरकार के स्तर पर यदि यह मुद्दा उठाया गया होता तो चुटकियों में हल हो सकता था मगर परवाह हो तब न ….
पांचवां यह कि बच्चों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि जब हालत इतने खराब थे तो फिजिकल क्लासेस छोड़ के चले आते , कुछ दिन absent हो जाते तो इसका कारण यह है कि वहां एक क्लास miss करने पर heavy fine लगती है, 550 रु क्लास यानी एक दिन में अगर 6 period हुए तो डेली फाइन हुई 3300 रु |जब यह पता न हो कि युद्ध कब होगा कितने दिन क्लास छोड़ना पड़ेगा, तो फ़र्ज़ करें महीने दो महीने युद्ध न होता बस हालात तनावपूर्ण ही चलते रहते तो कई लाख की चपत पड़ जाती। क्या पता एडमिशन cancel हो जाते।
जमीनी मजबूरियों को जाने बिना हर देश को इंडिया सरीखा समझना जाहिलों का काम ही हो सकता है। जब इंडिया में अटल सरकार ने सालों इंडियन फोर्स को बॉर्डर पर युद्ध सन्नद्ध स्थितियों में रखा था और तब अगर पाकिस्तान में पढ़ रहे इंडियन बच्चे होते, वो लौट आते तब तो फाइन ही पचासों लाख हो जाता …लेकिन रबड़ की जबान है कुछ भी बक दो …..कैसा तो क्रूर समाज बन चुका है।
govt advisories का किस्सा फिर कभी ….
(पंकज मिश्रा की फेसबुक वॉल से साभार)