“हीरो मध्यप्रदेश के” धर्मेंद्र शाह जिन्होंने आज़ाद किए 20,000 तोते
आज जोशहोश (Joshhosh) की सीरीज “हीरो मध्यप्रदेश के” में हम रूबरू कराएंगे ऐसे शख्स से जो सालों से एक मिशन में जुटा हुआ है। ऐसे मिशन में जो बंद पिंजरे में कैद पंछियों को खुला आसमान देने का काम करता है। भोपाल के धर्मेंद्र शाह और उनका मिशन पंख। पेशे से धर्मेंद्र एक व्यवसायी हैं, बीते 22 साल से तोतों को पिंजरों से मुक्ति दिलाने के काम में लगे हैं। वे इसके लिए मिशन पंख चला रहे हैं। धर्मेंद्र का मानना है कि भगवान् ने हर प्राणी को एक खास मकसद से बनाया है और जिस भी प्राणी का जो काम है वह वही करते हुए सुंदर भी लगता है। अपने इन्हीं विचारों को आगे बढ़ते हुए धर्मेंद्र शाह ने अब तक 20 हजार से भी ज्यादा तोतों को पिंजरे से आज़ादी दिलाई है और इस काम को करते हुए वह 36 से भी ज्यादा वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं।
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भोपाल को पिंजरा मुक्त बना चुके धर्मेंद्र बताते हैं कि इस काम को करने की प्रेरणा उन्हें अपनी माँ से मिली। जिन्होंने तोतों को पिंजरा मुक्त करने की पहल की थी। धर्मेंद्र बताते हैं कि बचपन में वह अपनी मां के साथ जिस मोहल्ले में रहते थे, वहां अक्स़र बहेलियों की आवाजाही बनी रहती थी। बहेलियों के हाथ में पिंजरें के अंदर बंद पक्षी हुआ करते थे, जिन्हें देखने के बाद मेरी मां मुझसे यह कहती थीं कि जाओ और इसके हाथ में जितने भी पिंजरे हैं सारे खरीद लाओ। बहेलिये से सारे पक्षी खरीदकर मां उन्हें वापस आसमान में उड़ा दिया करती थीं और कहती थी कि ये पंछी हैं। ये पिंजरे में कैद नहीं बल्कि खुले आसमान में उड़ते हुए अच्छे लगते हैं। मैं तभी से मां के विचारों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूं। मिशन पंख कोई प्रोजेक्ट नहीं हैं बल्कि यह एक विचार है।
धर्मेंद्र ने केवल भोपाल को पिंजरा मुक्त नहीं किया बल्कि मध्यप्रदेश के सबसे बड़े पशु बाज़ार जुमेराती को भी पिंजरा मुक्त बनाया, जहाँ कभी वह अपनी माँ के साथ रहा करते थे। धर्मेंद्र बताते हैं कि जुमेराती बाज़ार को जब हमने मीडिया और प्रशासन की मदद से पिंजरा मुक्त किया, तो इससे बहुत से व्यपारिकों के व्यापार भी प्रभावित हुए। जिसके बाद मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, मुझे धमकी भरे फ़ोन आते तो कभी जान से तक मारने की धमकी दी जाती। इन सब के बावजूद मैंने अपने नेक इरादों को ज़रा भी नहीं हिलने दिया। धर्मेंद्र कहते हैं कि आने वाले समय में मिशन पंख की ताकत और बढ़ने वाली है, जब उनके 3 बेटे सिपाही के रूप में उनके साथ जुड़ जाएंगे। अब तक धर्मेंद्र की इस मुहीम में देश भर से करीब 15 हज़ार वॉलेंटिर्स जुड़ चुके हैं। बेटों की मदद के साथ ही धर्मेंद्र को अपनी धर्मपत्नी का भी भरपूर सहयोग मिलता है। पत्नी जयश्री घर के सभी ज़िम्मेदारीयां निभाने के अलावा धर्मेंद्र के फ़ूड बिज़नेस में भी हाथ बटाती हैं।
धर्मेंद्र बताते हैं कि घरों में 95 प्रतिशत तोते या जानवर बच्चों की जिद के कारण आते हैं। बड़ों को तो तोतों की तकलीफ बता कर समझाया जा सकता है, लेकिन बच्चों को नहीं। इसलिए धर्मेंद्र ने बच्चों को समझाने के लिए कॉमिक, किताबों और कविताओं का सहारा लिया। अब तक धर्मेंद्र 3 किताब लिख चुके हैं। इनमें से 1 किताब जिसका नाम पंख है वह तो अमेज़न और सेंट्रल इंडिया की बेस्टसेलर किताबों में से एक है। धर्नेंद्र ने बताया कि इन किताबों को पड़ने के बाद कई बच्चों ने अपने घरों में कैद तोतों को आजाद किया। 20 हज़ार तोतों को आजाद करने के बाद अब धर्मेंद्र अपने नए काम में जुट गए हैं। धर्मेंद्र कहते हैं कि वह अब विलुप्त होते कंठी तोते पर काम कर रहे हैं। कंठी तोते की नस्ल एकदम खत्म होने वाली है। अगर हम नहीं चेते तो 2-4 सालों में हमे कंठी तोते देखने को नहीं मिलेंगे, जैसे गौरेया खत्म होती गई वैसे ही यह प्रजाति भी विलुप्त हो जाएगी। धर्मेन्द्र की मानें तो एक साल से पिंजरे में कैद पक्षी उड़ना भूल जाते हैं। ऐसे में फौरन आज़ादी से इन्हें खतरा हो सकता है। इसलिये पहले उन्हें बड़े पिंजरे में रखकर उनकी जीवनशैली बदली जाती है, फिर हम तोतों को उनके झुंड के साथ उड़ाते हैं और रोज जाकर देखते भी हैं कि वह तोता ठीक है कि नहीं।
बेजुबान पक्षियों का दर्द उसे पालने वाला परिवार भी नहीं जानता। इसी वजह से 40 से 45 साल जीने वाला तोता कुछ ही साल में ज़िन्दगी को अलविदा बोल देता है। अगर आपको भी कभी अपने आस पास ऐसे पिंजरे दिखें, जिसमे कैद पक्षी आस्मां में अपनी उड़ान के खवाब देखता हो, तो उसकी आज़ादी के लिए कोई कदम जरूर उठायें या फिर पंख संस्था को उस पिंजरे के बारे में बताएं। अपनी इस अनोखी मुहीम को साकार रूप से चलने वाले धर्मेंद्र शाह को जोशोहोश सलाम करता है।