कॉर्पोरेट पर मेहरबानी, 6 महीने में 46 हज़ार करोड़ का लोन ‘माफ’
वित्त वर्ष 2021-22 के पहले छह महीनों में ही कॉर्पोरेट्स का 46382 करोड़ का लोन राइटऑफ, शीत सत्र के पहले दिन सरकार ने दी जानकारी।
नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) केंद्र की मोदी सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के शुरुआती छह महीने में ही कॉर्पोरेट्स का 46 हजार करोड़ से ज्यादा लोन राइट ऑफ किया है। यह जानकारी शीत सत्र के पहले दिन ही एक सवाल के जवाब में सरकार ने दी है। हालांकि रिजर्व बैंक के नियमों के का हवाला देते हुए सरकार ने उन कॉर्पोरेट्स का नाम उजागर नहीं किया जिनके लोन राइट ऑफ किए गए हैं।
लोकसभा में सांसद सुशील कुमार सिंह के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड के हवाले से जो लिखित जवाब दिया गया उसके मुताबिक सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के पहले छह महीनों में ही कॉर्पोरेट्स का 46382 करोड़ का लोन राइटऑफ किया है।
सोशल मीडिया पर भी सरकार का लिखित जवाब वायरल हो रहा है। साथ ही यह सवाल उठाया जा रहा है कि इस पैसे से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गांरटी क्यों नहीं दी जा सकती?
गौरतलब है कि बीते साल एक आरटीआई के एक जवाब से सामने आया था कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 7.95 लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया गया था। ये सारा कर्ज बैंकों की ओर से उद्योगपतियों को दिया गया था। आरटीआई के मुताबिक 2015 से 2019 के बीच 7,94,354 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए गए हैं।
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच सरकारी बैंकों ने 1,58,994 करोड़ के कर्ज माफ किए थे । इसके अलावा निजी क्षेत्र के बैंकों ने 41, 391 करोड़ रुपये और विदेशी बैंकों का 19,945 करोड़ कर्ज माफ किया गया था। जबकि एनडीए के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2015-2019) के दौरान ही सरकारी बैंकों ने 6,24,370 करोड़ के कर्ज माफ किए थे जबकि इस दौरान निजी क्षेत्र के बैंकों ने 1,51,989 और विदेशी बैंकों ने 17,995 करोड़ के कर्ज माफ किए थे।
राइट-ऑफ बनाम वेव-ऑफ: तकनीकी रूप से इनके बीच का फर्क यह है कि जो लोन वसूला नहीं जा पा रहा हो, उसे ‘राइट-ऑफ’ कर दिया जाता है। इसे बैलेंस शीट सही करने के मकसद से किया जाता है। तकनीकी रूप से राइट-ऑफ करने से लोन की वसूली प्रक्रिया रुकती नहीं है, पर व्यावहारिक स्थिति वही होती है जो लोन वेव-ऑफ यानी माफ करने की हालत में होती है। दोनों ही स्थितियों में पैसा कर्ज देने वाले के हाथ से निकल जाता है। बस, राइट-ऑफ करने की स्थिति में कभी पैसा लौटने की उम्मीद बनी रहती है।