मोदी सरकार ने 9 साल में 25 लाख करोड़ का लोन किया राइट-ऑफ, RTI से खुलासा
यह राशि यूपीए सरकार-1 और यूपीए सरकार-2 के संयुक्त कार्यकाल के दौरान बट्टे खाते में डाली गई राशि से लगभग 810% अधिक
नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष लगातार उद्योगपतियों के लिए काम करने का आरोप लगाता रहा है। अब सूचना के अधिकार (RTI) के तहत हुए एक एक खुलासे के बाद विपक्ष के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले और भी तीखे हो सकते हैं।
दरअसल सूरत के सामाजिक कार्यकर्ता संजय एझावा द्वारा दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नौ साल के कार्यकाल के दौरान एनडीए सरकार ने 25 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट-ऑफ किये हैं। इस जानकारी के बाद सोशल मीडिया में बहस और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
Free Press Journal ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मिली जानकारी पर आधारित जो रिपोर्ट प्रकशित की है उसके मुताबिक़ आरबीआई की जानकारी में केवल सांख्यिकीय जानकारी शामिल है और डिफॉल्टरों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है। इसे भारत के वित्तीय इतिहास में सामने आई सबसे अधिक बट्टे खाते में डाली गई राशि बताया गया है।
बड़ी बात यह है कि एनडीए-1 और एनडीए-2 द्वारा बट्टे खाते में डाली गई यह राशि यूपीए सरकार-1 और यूपीए सरकार-2 के संयुक्त कार्यकाल के दौरान बट्टे खाते में डाली गई राशि से लगभग 810% अधिक है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उद्योगपतियों द्वारा अपार धन विदेशों में ले जाया गया है, और इन ऋणों की वसूली के लिए सरकार के प्रयास सार्थक नहीं रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक़ यूपीए सरकार ने अपने 11 साल के कार्यकाल के दौरान सालाना औसतन 34,192 करोड़ रुपये माफ किए, जबकि एनडीए सरकार-1 और एनडीए सरकार-2 ने मिलकर सालाना औसतन 2.77 लाख करोड़ रुपये माफ किए। संक्षेप में, यूपीए सरकार द्वारा 11 वर्षों में बट्टे खाते में डाली गई राशि एनडीए सरकार द्वारा केवल 17 महीनों में बट्टे खाते में डाली गई राशि के बराबर है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2014- 2015 से 2022-2023 तक नौ साल की अवधि में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाले गए 25 लाख करोड़ रुपये की तुलना में केवल 2.5 लाख करोड़ (कुल का 10%) वसूल किया गया है। इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि भारत सरकार इन पर्याप्त मात्राओं को वापस पाने में अधिक प्रभावी क्यों नहीं रही है?