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RTI : न नेतृत्व न जवाबदेही, 3 साल में 33% बढ़े पेंडिंग आवेदन

2016-17 की तुलना में 2019-2020 में अलग-अलग विभागों में पेंडिंग आरटीआई की संख्या में 33 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) 2005 में सरकार द्वारा सूचना का अधिकार लाया गया था। इसका उद्देश्य सरकार के कामों में पारदर्शिता लाना और जवाबदेही तय करना था। लेकिन पिछले कुछ सालों से सूचना के अधिकार में संकट गहरा रहा है। केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में लगातार पेंडिंग आरटीआई की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। इन आरटीआई आवेदनों को या तो निरस्त कर दिया जाता है या फिर उनका जवाब नहीं दिया जाता है। इससे विभागों में पेंडिंग आरटीआई की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

सूचना के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के अनुसार विभागों में पेंडिंग आरटीआई आवेदनों का मुख्य कारण नेताओं की इच्छाशक्ति में कमी है। पेंडिंग पड़े आवेदनों को हम सिर्फ सिस्टम की असफलता मान कर नहीं रह सकते।

केन्द्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2016-17 की तुलना में 2019-2020 में अलग-अलग विभागों में पेंडिंग आरटीआई की संख्या में 33 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। यदि आकड़ों की बात करें तो 2019-20 में 1.68 लाख आवेदनों में से 35,178 आवेदन पेंडिंग थे, वहीं 2016-17 में यह संख्या 1.12 लाख आवेदनों में 26,499 ही पेंडिंग थी।

क्रेडिट – factchecker.in

आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश बत्रा की मानें तो 2014 से सीआईसी में एक भी सूचना आयुक्त की नियुक्ति अदालतों द्वारा नहीं की गई है, चाहे वह सर्वोच्च न्यायालय हो या दिल्ली उच्च न्यायालय। जबकि बैकलॉग इतनी अधिक है कि आयोग को अपने कामों के दिनों में वृद्धि करने की आवश्यकता है।

आरटीआई निरस्त करने के मामले में सबसे आगे गृह मंत्रालय है। गृह मंत्रालय ने 2019-20 में 20.46 प्रतिशत आरटीआई निरस्त की हैं। उसके बाद वित्त मंत्रालय ने सबसे ज्यादा 12.48 प्रतिशत आरटीआई निरस्त की हैं। गृह मंत्रालय आरटीआई निरस्त करने के मामले में 2018-19 और 2017-18 में भी सबसे आगे था।

आरटीआई एक्टिविस्ट और नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टू इन्फाॅर्मेशन की सदस्य अंजली भारद्वाज के अनुसार लोग जिस जानकारी को पाने के लिए आरटीआई दायर करते हैं। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह जानकारी पहले से ही सबके लिए उपलब्ध करा दे। आरटीआई एक्ट के सेक्शन 4 के अनुसार सरकार को खुद-ब-खुद सरकार के कामकाज की जानकारी जनता के सामने रख देनी चाहिए। लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है।

एक्सेस टू इन्फाॅर्मेशन प्रोग्राम के प्रोग्राम हेड वेंकटेश नायक कहते हैं कि – प्रधानमंत्री ने आरटीआई अधिनियम की 10 वीं वर्षगांठ पर सुझाव दिया था कि आरटीआई का विश्लेषण यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाए कि क्या उन्हें लोगों के लिए सुलभ बनाया जा सकता है। आरटीआई निरस्त करने की बढ़ती संख्या और रक्षा मंत्रालय में लगने वाली आरटीआई में होती बढ़ोत्तरी का विश्लेषण किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।

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