तीन राज्यों में BJP के CM, मोदी-शाह का निर्णय ऐतिहासिक या क्षेत्रीय क्षत्रपों का अंत?

स्थापित और चर्चित चेहरों को दरकिनार कर नए और गुमनाम चेहरों पर दांव, चर्चाओं का दौर जारी

नईदिल्ली (जोशहोश डेस्क) छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश और राजस्थान में लम्बे मंथन के बाद आखिरकार भाजपा ने मुख्यमंत्री के लिए नाम तय कर ही लिए। तीनों राज्यों में भाजपा ने स्थापित और चर्चित चेहरों को दरकिनार कर जिन नए और गुमनाम से चेहरों पर दांव खेला है उसे लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। एक ओर इन निर्णयों को ऐतिहासिक बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर इन निर्णयों को क्षेत्रीय क्षत्रपों का अंत करने वाला बताया जा रहा है।

जिस तरह से तीनों राज्यों में बेहद गोपनीय तरीके से आलाकमान से मिले नामों पर सर्वसम्मति से मुहर लगी, उसे भाजपा के आंतरिक अनुशासन का प्रमाण बताया जा रहा है। साथ ही तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री के नामों को भाजपा की सोशल इंजीनयरिंग की मिसाल के साथ विपक्ष के जातीय जनगणना के मुद्दे पर पलटवार भी बताया जा रहा है।

बड़ी बात यह है कि तीनों ही राज्यों में पार्टी के बड़े चेहरों को सीएम पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्हीं बड़े नामों के बीच पार्टी ने गुमनाम चेहरों को सत्ता सौंप दी और कहीं कोई विरोध की आवाज भी नहीं आई। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पार्टी पर पकड़ बताया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा में असंतोष और आंतरिक लोकतंत्र अब अंतिम साँसे ले रहा है।

दूसरी ओर मोदी शाह के इन फैसलों को राज्यों की सियासत को दिल्ली से नियंत्रित करने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि मोदी और शाह की जोड़ी बदलाव की राजनीति के नाम पर राज्यों के नेतृत्व को कमजोर कर खुद को ताकतवर बनाए रखने के फार्मूले पर काम कर रही है। कांग्रेस ने इन फैसलों को लेकर सवाल उठाया है साथ ही इन फैसलों को क्षेत्रीय क्षत्रपों का अंत करने वाला बताया है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने लिखा कि इन फैसलों की असलियत यह है कि यह भाजपा के क्षेत्रीय क्षत्रपों का अंत है। जो कोई भी PM मोदी के लिए चुनौती बन सकता है, उसको निपटाया जा रहा है और चुने हुए विधायक नहीं बल्कि दिल्ली में 2 लोगों का फ़ैसला ही थोपा जा रहा है। यह मुख्यमंत्री कठपुतलियों की तरह इनके इशारे पर चलेंगे और जब साहेब का मन आएगा इनमें से कोई भी कभी भी निकाल दिया जाएगा।

कहा यह भी जा रहा है कि सत्ता का केंद्रीकरण चमत्कारी तो लगता है और अनुशासन का आभास भी देता है पर न यह लोकतंत्र की सेहत के लिए भला है न पार्टी भविष्य के लिए। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा अब ABVP और RSS जैसे संगठनों के सामने नतमस्तक है। तीनों राज्यों के CM ने एबीवीपी एबीवीपी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की है और इन नेताओं की RSS से करीबी ही इन पदों के लिए निर्णायक साबित हुई।

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