नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। राज्य में कांग्रेस की प्रचंड जीत के बाद अब हार जीत के कारणों का गुणा-भाग लगाया जा रहा है। एक ओर कांग्रेस की जीत का श्रेय स्थानीय मुद्दों पर मुखरता के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर भाजपा की हार का कारण पार्टी आलाकमान के जल्दबाज़ी में लिए गए अपरिपक्व फैसलों को भी माना जा रहा है।
सियासी पंडितों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जमीनी हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ कर जो फ़ैसले लिए वो भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर भारी पड़े। भाजपा आलाकमान ने कर्नाटक में गुजरात के फार्मूले को दोहराकर जीत की संभावनायें तलाशी और यहीं आलाकमान बड़ी चूक कर गया।
आलाकमान ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को उनके मज़बूत जनाधार के बाद भी साइडलाइन कर मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। नेतृत्व परिवर्तन के इस फार्मूले के चलते मुख्यमंत्री बने बसवराज बोम्मई न सत्ता पर नियंत्रण स्थापित कर सके और न ही संगठन से उनका सामंजस्य हो पाया। जबकि येदियुरप्पा को हटाए जाने से भाजपा का सबसे बड़ा वोटर लिंगायत समाज जरूर नाराज हो गया। इस नाराजगी को भांपने में भी आलाकमान से चूक हो गई। आलाकमान को मज़बूरी में येदियुरप्पा को फिर से अपना चेहरा तो बनाना पड़ा लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और बोम्मई सरकार के खिलाफ जनता में माहौल बन चुका था।
यही नहीं भाजपा आलाकमान ने सरकार के खिलाफ एंटी इनकम से निपटने गुजरात की तर्ज़ पर विधायकों और मंत्रियों के थोकबंद टिकट काटने का फार्मूला कर्नाटक में भी लागू कर दिया। इससे राज्य के बड़े भाजपा नेता प्रभावित हुए और चुनाव से ठीक पहले दलबदल का सिलसिला शुरू हो गया। आलाकमान ने क़रीब 75 नए चेहरे चुनाव में उतारे लेकिन परिणाम अपेक्षित नहीं मिला। वहीं जगदीश शेट्टार को छोड़ भाजपा से कांग्रेस में गए अन्य नेताओं ने पार्टी की जीत को और बड़ा बनाने में भूमिका निभाई।
भाजपा आलाकमान स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देने की बजाए राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ने की भूल भी कर बैठा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने रणनीति के तहत चुनाव को पूरी तरह नरेंद्र मोदी के चेहरे पर केंद्रित कर डबल इंजन सरकार को प्रमुखता दी। इस फ़ॉर्मूले को भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने जनता के सामने तो रखा गया लेकिन जनता ने इसे पूरी तरह नकार दिया। कांग्रेस द्वारा करप्शन और स्थानीय मुद्दों को जिस तरह उठाया गया उसका आलाकमान के पास कोई ठोस जवाब नहीं दिखा।
भाजपा आलाकमान ने प्रचार के दौरान भी हिजाब, टीपू सुल्तान जैसे मुद्दों को ख़ूब उछाला। प्रचार के अंतिम दौर में बजरंग बली और फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह का आक्रामक प्रचार किया उसका नकारात्मक असर ही दिखाई दिया। आलाकमान ने प्रचार में असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा सरमा और योगी आदित्यनाथ को प्रमुखता देकर जिस तरह आक्रामक बयानबाज़ी से ध्रुवीकरण की कोशिश की वह भी उसके पक्ष में नहीं गई।
कुल मिलाकर नेतृत्व में बदलाव और पीएम मोदी के चेहरे के साथ चुनावी फतह का भारतीय जनता पार्टी का परंपरागत फार्मूला कर्नाटक में पूरी तरह फेल हो गया। ऐसे में चुनावी हार का कारण स्थानीय नेतृत्व से कहीं ज़्यादा आलाकमान को माना जा रहा है। साथ ही यह कहा जा रहा है कि भाजपा आलाकमान को यह समझना होगा कि हर राज्य को गुजरात के फार्मूले से नहीं जीता जा सकता।