भोपाल (जोशहोश डेस्क) भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक नियुक्त किया है। इस नियुक्ति के बाद गुटबाज़ी से जूझ रही भाजपा में ग्वालियर चंबल के समीकरण फिर सुर्ख़ियों में हैं। साथ ही कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुनावी भूमिका पर सियासत गर्म हो गई है।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बीजेपी की हालत कमजोर बताई जा रही है। सिंधिया की मौजूदगी से उपजी गुटबाज़ी के चलते अभी तक के तमाम सर्वे और ओपिनियन पोल में प्रदेश में भाजपा का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन ग्वालियर-चंबल में ही दिख रहा है। जबकि इस क्षेत्र के दिग्गज भाजपा की राजनीति के बड़े चेहरे हैं।ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी को सिंधिया की कमजोर होती पकड़ से जोड़कर देखा जा रहा है। जबकि सिंधिया बीते कुछ समय से मोदी-शाह के ज्यादा करीब नज़र आये थे।
मध्यप्रदेश चुनाव के लिए भाजपा के इस बड़े घटनाक्रम को वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल ने भी पार्टी नेतृत्व के भरोसे से जोड़ा है। उन्होंने लिखा-
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल होने के तीन साल बाद भी पार्टी नेतृत्व का भरोसा नहीं जीत पाए। मप्र विधानसभा चुनाव के प्रबंधन के लिए भाजपा ने सिंधिया के बजाय केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर भरोसा कर संयोजक बनाया है। जानकार कहते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया गर्म तवे पर भी बैठ जाएं तो भी भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा का यकीन नहीं दिला सकते। भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि जो व्यक्ति पांच दशक कांग्रेस में रहकर कांग्रेस का नहीं हुआ वो तीन साल में भाजपा का कैसे हो सकता है ? जाहिर है कि नरेंद्र सिंह तोमर को दी गई जिम्मेदारी से सिंधिया और उनके समर्थकों में घोर निराशा है। समर्थकों को अब अपने टिकटों की चिंता सताने लगी है। सिंधिया को 230 में से कम से कम 30 टिकट चाहिए, लेकिन ये आसान काम नहीं है। सिंधिया के समर्थक ग्वालियर चंबल के अलावा मालवा, विंध्य और महाकौशल में भी है।
प्रदेश भाजपा में सिंधिया के लिए बड़ी समस्या उनके खिलाफ अहम मौकों पर भाजपा के पुराने नेताओं का एकजुट हो जाना भी माना जाता है। हालाँकि सिंधिया ने ज़मीन से लेकर पार्टी के शीर्ष स्तर तक ख़ुद को साबित करने के लिए अपने व्यक्तित्व को भी पूरी तरह से बदल दिया है फिर भी उनको लेकर पार्टी ख़ासकर कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता नज़र नहीं आ रही है यहाँ तक कि अब तो सिंधिया के ख़ास समर्थक भी उनसे छिटकते दिखाई दे रहे हैं।
ऐसे में सिंधिया के सामने विधानसभा चुनाव किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। नगरीय निकाय के चुनावों में इसकी बानगी दिखाई भी दी थी था जब सिंधिया तमाम प्रयासों के बाद भी ग्वालियर में महापौर का टिकट अपने पसंदीदा उम्मीदवार को नहीं दिला पाए थे। यहाँ उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नरेंद्र सिंह तोमर ने ही पेश की थी। अब नरेन्द्र सिंह तोमर जब चुनाव अभियान समिति के संचालक बन गए हैं तो ऐसे में सिंधिया के सामने अपने समर्थकों को टिकट दिलाना आसान नहीं होगा।
सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि इस बार बड़ी संख्या में सिंधिया-समर्थक विधायक और मंत्रियों के टिकट संकट में हैं। तोमर के पॉवरफुल होने के बाद यह भी तय माना जा रहा कि सिंधिया अपने समर्थकों के लिए इतने टिकट शायद ही फ़ाइनल करा सकें जिससे चुनाव परिणामों के बाद वह वे ख़ुद को निर्णायक स्थिति में खड़ा कर सकें। वहीं ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस जिस तरह से बढ़त बना रही है उससे सिंधिया अब दोहरी मुश्किल में नज़र आ रहे हैं।