भोपाल (जोशहोश डेस्क) केंद्र सरकार नवोदय स्कूलों की पहचान बदलने जा रही है। नवोदय स्कूलों को अब सैनिक स्कूलों में बदला जाएगा। इसमें मध्यप्रदेश के भोपाल समेत सीहोर और कटनी के स्कूल भी शामिल हैं। नवोदय विद्यालयों में इस चौकाने वाले बदलाव का आदेश जारी होते ही व्यापक विरोध भी शुरू हो गया है। नवोदय विद्यालय के पूर्व छात्रों के संगठन ने ही इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है।
बताया जा रहा है कि नवोदय विद्यालयों के नाम से जवाहर शब्द भी हटाया जाएगा और नवोदय में पढ़ रहे विद्यार्थियों को नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) की परीक्षा में भी शामिल होना पड़ेगा।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की नवोदय शिक्षा समिति ने 4 मार्च को एक पत्र जारी किया है। इसके मुताबिक़ भोपाल, सीहोर, कटनी (मप्र), रायपुर (छग) और बालासोर (उड़ीसा) के जवाहर नवोदय विद्यालयों को परंपरागत सैनिक स्कूलों के पैटर्न पर बदला जाएगा।
अगले ही दिन 5 मार्च को एक और पत्र इसी आशय का जारी हुआ है जिसमें नालंदा, समस्तीपुर(बिहार), रांची, कोडमा (झारखंड), पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) के नाम भी हैं। इस से पहले केंद्र सरकार ने अपने बजट में नए सैनिक स्कूल खोलने का ऐलान किया था। 26 फरवरी को रक्षा मंत्रालय ने नवोदय विद्यालय समिति के डिप्टी कमिश्नर को इस संबध में पत्र भी भेजा गया था।
नवोदय विद्यालय के पूर्व छात्रों के संगठन All India JNV Alumni एसोसिएशन ने इन स्कूलों के स्वरूप को बदलने और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम हटाने की इस क़वायद का विरोध किया है। पूर्व छात्रों का कहना है कि अगर सरकार को सैनिक स्कूल ही बनाने हैं तो अलग से बनाये। नवोदय विद्यालय की पहचान मिटाना अनुचित है।
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जवाहर नवोदय विदयालयों की स्थापना की थी और पीवी नरसिंहराव की सरकार में इन स्कूलों का देश भर में विस्तार हुआ था।
आदेश का विरोध में नवोदय विद्यालय के पूर्व छात्र गिरीश चतुर्वेदी ने फेसबुक पर लिखा
भारत में जब ग्रामीण परिवेश के बच्चे CBSE के स्कूल्स में नहीं पढ़ पाते थे या जिन माता-पिता के पास अपने होनहार बच्चों को पढ़ने के लिये या कम्पटीशन का माहौल देने के लिए पैसे नहीं होते थे तब स्व.राजीव गांधी जी ने 1986 में देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय की स्थापना की थी.. ये बोर्डिंग स्कूल्स थे जो सैनिक स्कूल्स और महंगे बोर्डिंग पब्लिक स्कूल्स का ग्रामीण संस्करण थे। मुझे याद है उस समय अविभाजित मुरैना जिला था और पूरे श्योपुर से मैं अकेला सेलेक्ट हुआ था मुरैना जिले में 4th रैंक थी.. मेरे बैच में 34 लोग थे और आज लगभग 30 अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। 24 घंटे टीचर्स की निगरानी में रहना, सुबह जल्दी उठकर पीटी और व्यायाम, दिनभर क्लास और शाम को खेलकूद जीवन का हिस्सा थे। वाद विवाद प्रतियोगिताएं और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते ही रहते थे जिनसे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। इस स्कूल के ज्यादातर लोग लगभग सारे कॉम्पटीशन्स में सेलेक्ट होते रहे हैं। आज किस प्राइवेट स्कूल में नॉमिनल फीस में इतनी सुविधाएं उपलब्ध है? क्या वाकई परेशानी “जवाहर” से है? या हम शनैः शनैः प्राइवेटाइजेशन की ओर जा रहे हैं? क्या ग्रामीण भारत अब केवल IT सेल्स से ही ज्ञान प्राप्त करेगा?
गर्व है मुझे.. कि मैं नवोदयन हूँ।
वहीं नवोदय के एक पूर्व छात्र धारा पांडेय ने लिखा
JNV को बदलने की क्या ज़रूरत है? सैनिक schools की ज़रूरत है तो और बना दीजिये। नवोदय विद्यालय का concept इतना प्यारा है कि अब मैं सोचती हूँ तो गर्व होता है कि मुझे मौका मिला वहाँ पढ़ने का।
सियासी विरोध भी तय
पूर्व छात्रों के अलावा राजनीतिक दलों द्वारा भी इस आदेश का विरोध किया जा सकता है। जिस तरह स्कूलों में बदलाव और इसके नाम से जवाहर शब्द हटाने की बात सामने आ रही है उसे देखते हुए इसका सियासी विरोध भी तय माना जा रहा है।