भारतीय राजनीति में उच्च कोटि की नीचता का प्रारंभ कहां से हुआ, ये आप ही तय करें?
देश के प्रधानमंत्रियों के दृष्टिकोण को लेकर राकेश कायस्थ की फेसबुक पोस्ट
Ashok Chaturvedi
आपने अगर 2014 के बाद होश नहीं संभाला है और थोड़ा-बहुत पढ़ते लिखते हैं, तो आसानी से समझ सकते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्रियों का रूख खुद से पहले वाली सरकारों के प्रति क्या रहा था।
बात नेहरू से शुरू करते हैं। नेहरू 17 साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। क्या आप एक भी ऐसा बयान ढूंढ सकते हैं, जब नेहरू ने कहा कि अंग्रेजों ने हमें 190 साल में इतना लूटा कि कुछ बचा ही नहीं मैं क्या करूं।
नेहरू कालीन भारत इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग का था, नाम बदलने का नहीं। साइंस एंड टेक्नोल़ॉजी जैसे मंत्रालय उन्होंने खुद अपने पास रखे थे और इसी दौरान इसरो और बार्क जैसे कई अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संगठन बने। जिनती संस्थाएं, बिल्डिंगें, कंपिनियां और इमारतें बनीं, उस समय के संसाधनों का हिसाब करेंगे और उन सबको देखेंगे तो सबकुछ आपको अकल्पनीय लगेगा। लेकिन क्या नेहरू ने कभी ये दावा किया कि मैं समकालीन शासनाध्यक्षों से बेहतर हूं?
यू ट्यूब पर वीडियो मिल जाएंगे। 15 अगस्त जैसे मौकों पर अपने भाषण में आप नेहरू को यही कहते सुनेंगे कि हमने कोशिश की है लेकिन बहुत सारा काम बाकी है, हमें संतोष है कि हम ठीक रास्ते पर हैं। इससे ज्यादा कोई दावा नेहरू ने नहीं किया।
इमरजेंसी का इतिहास सबको पता है। उसके बाद जनता सरकार आई। रामलीला मैदान पर एक बड़ी रैली हुई जहां जनता पार्टी के ज्यादातर प्रमुख नेता मौजूद थे। जनसंघ से आये और देसाई सरकार में विदेश मंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण सुनिये– इमरजेंसी के दौरान ज्यादतियां हुईं लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि बदले की भावना से कोई कार्रवाई ना हो। इस बयान पर अमल भले ही एक अलग सवाल हो लेकिन एक बड़े नेता का सार्वजनिक बयान राजनीति के स्तर को दर्शाता है।
वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। सरकार ने खूब काम किया सड़कें बनाई, औने-पौने में कंपनियां बेंची, पेंशन खत्म करने और निजीकरण की प्रक्रिया तेज करने जैसे कदम उठाये और लगा कि देश में फीलगुड है लेकिन वो चुनाव हार गये। मनमोहन सिंह सरकार में आये और दस साल तक प्रधानमंत्री रहे।
मनमोहन सिंह ने दस साल तक सरकार चलाई। ऐसे बयान ढूंढकर दिखाइये जब उन्होंने पिछली सरकारों को कोसा हो। तो मोराल ऑफ द स्टोरी क्या है? जिनको अपना काम आता है, वो दूसरों की कमियां नहीं बताते, अपने कारनामों की ढींग भी नहीं हांकते क्योंकि काम बोलता है। उच्च कोटि की नीचता का प्रारंभ भारतीय राजनीति में कहां से हुआ ये आप खुद तय कर लीजिये।