भोपाल (जोशहोश डेस्क) गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों के बाद अब मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनावों को लेकर गहमा-गहमी बढ़ गई है। राज्य में दोनों ही दल गुजरात और हिमाचल के नतीजों के आधार पर चुनावी जमावट करते दिख रहे हैं। एक ओर जहां सत्ताधारी भाजपा में गुजरात विजय के बाद संशय का माहौल है वहीं हिमाचल की जीत ने कांग्रेस को मध्यप्रदेश में विजयी मंत्र सा दे दिया है।
हिमाचल और मध्यप्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों में इस बार काफी समानता भी दिखाई दे रही है। ऐसे में हिमाचल की जीत मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए सत्ता सिंहासन की राह बनाती नजर आ रही है। हिमाचल में जीत से मध्यप्रदेश में कांग्रेस क्यो उत्साहित है इसके कारण भी साफ हैं।
आइए जानते हुए कुछ ऐसे ही सियासी फैक्टर जो हिमाचल और मध्यप्रदेश की सियासी परिस्थितियों में समानता रखते हैं-
पीएम मोदी का आकर्षण
भाजपा के लिए किसी भी चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा होता है। जब बात आम चुनाव के बजाय विधानसभा चुनाव की होती है तो मोदी का चेहरा राज्य में उनकी स्वीकार्यता के अनुरूप असर डालता है। गुजरात चुनाव में मोदी के चेहरे के सहारे जीती भाजपा को हिमाचल में हार का सामना करना पड़ा तो इसका कारण यह है कि हिमाचल से पीएम मोदी गुजरात जैसी लोकप्रियता नहीं रखते। कमोबेश यही हालात मध्यप्रदेश में हैं। मध्यप्रदेश में भी मोदी बड़ा फैक्टर तो हैं लेकिन उनका आकर्षण इतना नहीं कि वो विधानसभा चुनाव में गुजरात की तर्ज पर भाजपा को जीत दिला सकें। ऐसे में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास एक अच्छा अवसर बनता दिख रहा है।
भाजपा की अंदरुनी खींचतान
हिमाचल प्रदेश में शायद यह पहली बार था कि जब गुटबाजी को लेकर कांग्रेस से ज्यादा चर्चा भाजपा की रही। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के खेमे में बंटी पार्टी पूरे चुनाव में बिखरी हुई दिखी। टिकट बंटवारे के बाद यह खेमेबाजी सार्वजनिक हो गई और बड़ी संख्या में भाजपा के बागी उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से मामला मतदान से पहले ही पलटता नजर आने लगा। टिकट बंटवारे को लेकर अंसतोष यहाँ तक दिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं बागियों को फोन कर मनाते दिखे। मध्यप्रदेश में भी भाजपा की कुछ ऐसी ही स्थिति दिख रही है। पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के दलबदल से पार्टी में कई नेता भी हाशिये पर हैं, जिनकी नाराजगी भी सामने आती रहती है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतत्व में एकजुट दिख रही है। हाल ही में मध्यप्रदेश से गुजरी भारत जोड़ो यात्रा में भी कांग्रेस ने एकजुटता का संदेश बखूबी दिया है। कांग्रेस आलाकमान भी कमलनाथ को विधानसभा चुनाव में चेहरा घोषित कर फ्री हैंड दे चुका सा लगता है। कमलनाथ की रणनीतियों की दम पर ही पहली बार कांग्रेस गुटबाजी से दूर चुनावी राह पर सधे कदमों से आगे बढ़ रही है।
बदलाव पर संशय
साल 2003 के बाद यह पहली बार है जब भाजपा विधानसभा चुनाव में अपने चेहरे को लेकर स्पष्ट नहीं है। गुजरात में जीत और हिमाचल में हार के बाद मध्यप्रदेश में भी सत्ता और संगठन में बदलाव की खबरें सरगर्म हैं। कमोबेश यही हालात हिमाचल प्रदेश में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने थे। गुजरात में मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल के बदले जाने के बाद जयराम ठाकुर कभी भी निश्चिन्त नहीं दिखे। संगठन के साथ सत्ता में भी उनकी पकड़ लगातार कमजोर होती चली गई। वहीं भाजपा भी एंटी इन्कम्बेंसी की रिपोर्ट मिलने के बाद जयराम ठाकुर को लेकर अपनी राय नहीं बना सकी। अब मध्यप्रदेश में भी ऐसे ही हालात हैं। भाजपा आलाकमान के पास राज्य में एंटीइन्कमबेंसी की रिपोर्ट तो है लेकिन बदलाव पर निर्णय लेना उसके लिए आसान नहीं दिख रहा। यह असमंजस कांग्रेस के लिए शुभ संकेत हो सकता है।
चुनावी मूमेंटम
हिमाचल प्रदेश में उपचुनावों में कांग्रेस को मिली जीत के बाद से ही राज्य के सियासी समीरकण भाजपा के हाथ से खिसकते दिखने लगे थे। उपचुनावों में जीत से उत्साहित कांग्रेस ने परिवर्तन का नारा देकर भाजपा को उसके राष्टीय अध्यक्ष के राज्य में ही सत्ता से बाहर कर दिया। मध्यप्रदेश में भी फिलहाल तो चुनावी मूमेंटम कांग्रेस के पक्ष में है। सत्ता का सेमीफाइनल कहे गए स्थानीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस को खासी सफलता मिली है। पांच नगर निगमों को उसने भाजपा से छीना, वहीं बुरहानपुर और उज्जैन में कांग्रेस जीतते जीतते मामूली अंतर से हारी। जबलपुर और ग्वालियर मेयर चुनाव में दशकों बाद जीत से कांग्रेस विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साह से लबरेज़ है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी अपेक्षा से कहीं ज्यादा सफलता मध्यप्रदेश में मिली है, जिसने प्रदेश में कांग्रेस का माहौल बना दिया है।
लोकल मुद्दों को प्राथमिकता
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूरा चुनाव स्थानीय मुद्दों को लेकर लड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर भाजपा ने चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों पर ले जाने की कोशिश तो की लेकिन कांग्रेस का स्थानीय मुद्दों पर अडिग रहना ही उसकी सफलता का बड़ा कारण माना जा रहा है। हिमाचल नतीजों के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी प्राथमिकता से लोकल मुद्दों को लेकर सरकार को घेर रहे हैं।
बीते दिनों में लगभग रोज ही कमलनाथ प्रदेश के किसी एक मुद्दे को प्रमुखता से सामने रख रहे हैं। इसमें कर्जमाफी, गौशाला निर्माण, बंद की गई सरकारी कर्मचारियों की पेंशन, पुलिस को साप्ताहिक अवकाश जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिसका सीधा असर मध्यप्रदेश की जनता से है।
आप का असर
गुजरात चुनाव में भाजपा की जीत का अहम कारण मानी जा रही आम आदम पार्टी की स्थिति भी मध्यप्रदेश में हिमाचल प्रदेश की तरह ही है। हिमाचल की तरही ही मध्यप्रदेश में आप का जमीन पर वजूद नहीं है। सिंगरौली में मेयर का चुनाव जरूर आप ने जीता है लेकिन संगठनात्मक रूप से आप का शहरी क्षेत्रों में है न ग्रामीण इलाकों में। ऐसे में हिमाचल की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी सीधा मुकाबला कांग्रेस और सत्ताधारी भाजपा के बीच होना है। अगर चुनाव भाजपा और कांग्रेस में ही होता है तो यह कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक पक्ष ही माना जाएगा।