Kisan Andolan : किसान आंदोलन का विकराल रूप देख बढ़ रही ‘भाजपा’ की चिंता

किसान आंदोलन (Kisan Andolan) लंबा खिंचने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चिंता बढ़ने लगी है।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) किसान आंदोलन (Kisan Andolan) लंबा खिंचने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चिंता बढ़ने लगी है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अप्रैल में पंचायत चुनाव कराने है। इस स्थित ने भाजपा नेताओं के माथे पर लकीर खींच दी है। अब कुछ नेता कहने लगे हैं इसका हल निकाल इस आंदोलन को खत्म किया जाना चाहिए।

इस आंदोलन (Kisan Andolan) का प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा है। वहां पर इन दिनों होने वाली महापंचायतों में भी भाजपा के खिलाफ महौल बनाने का प्रयास तेज है। उसकी कमान खुद रालोद के जंयत चौधरी ने संभाल रखी है। अभी फिलहाल किसान आंदोलन का कोई हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। दोनों पक्ष किसान और सरकार अपने-अपने कदम रोके हुए हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव में लड़ने वाले नेताओं की चिंता बढ़ गई है। वह सोच रहे हैं गांवों में इसका कहीं उल्टा असर न पड़ जाए। इसी कारण वह खमोश हैं।

उधर भाकियू के अध्यक्ष नरेश टिकैत मुजफ्फरनगर की महापंचायत में चौधरी अजीत सिंह के पक्ष में बयान देते हुए कहा कि था अजित सिंह को लोकसभा चुनाव में हराना हमारी भूल थी। हम झूठ नहीं बोलते हम दोषी हैं। टिकैत ने कहा इस परिवार ने हमेशा किसानों के सम्मान की लड़ाई लड़ी है, आगे से ऐसी गलती ना करियो। इस बयान के बाद भाजपा को लगता है पश्चिम में उनका जाट वोट कुछ खिसक सकता है। इसका असर पंचायत चुनाव के साथ होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पड़ने के असार दिख रहे हैं।

भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि खाप पंचायतों की एकजुटता के अलावा जयंत का ज्यादा सक्रिय होना अभी हाल में होने वाले पंचायत चुनावों में असर डालेगा। सरकार को चाहिए इस आंदोलन (Kisan Andolan) का हल निकाल इसे खत्म करे। वरना इसका असर पंचायत चुनाव के अलावा आने वाले विधानसभा में दिखेगा।
पश्चिमी यूपी में करीब 20 सीटों पर जाट समुदाय हार-जीत तय करते हैं। करीब 17 लोकसभा क्षेत्र पश्चिम में हैं, ऐसे में इस वोट को सहेजना भी बड़ी जिम्मेंदारी है। हालांकि भाजपा जाट वोटों को किसी भी कीमत पर खिसकने नहीं देना चाहती है। इस मुश्किल से निपटने के लिए उसने अपने नेताओं को लगाया है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बड़े नेताओं से कहा गया है कि इस कानून को लेकर भ्रम भी दूर करने की कोशिश करें। प्रदेश सरकार के मंत्री भी संवाद के माध्यम से किसानों को समझाने का प्रयास करेंगे।

वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेशक रतनमणिलाल कहते हैं किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का असर पंचायत चुनाव पर पड़ेगा। पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा चर्चा भी इसी आंदोलन की हो रही है। चुनाव में भी इसकी चर्चा होगी। भाजपा क्या इस चर्चा को अपने प्रतिकूल जाने से किस हद तक रोक पाती है यह देखना होगा। हालांकि भाजपा ने 26 जनवरी के पहले भाजपा नेताओं के समूह किसानों के बीच कानून का हानि लाभ बता रहे थे। भाजपा इसे लेकर सचेत है। भाजपा जानती है कि यह आंदोलन सिर्फ पंचायत चुनाव पर ही नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव में भी असर डाल सकता है। इससे निपटने के लिए भाजपा ने अपनी टीम तैयार कर रखी है।

भाकियू के प्रदेश उपाध्यक्ष हरनाम सिंह कहते हैं कि, “भारतीय किसान यूनियन एक अराजनैतिक संगठन है। पंचायत चुनाव चाहे जो हारे जीते हमें इससे मतलब नहीं है। जिस प्रकार से लोकसभा चुनाव में किसानों ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई थी। उसी प्रकार से किसान अपना लाभ-हानि देखते हुए निर्णय लेंगे।”

भाजपा प्रवक्ता हरीश चन्द्र श्रीवास्तव कहते हैं कि, “किसान आंदोलन को कुछ राजनीतिक दल गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार किसानों को प्रति सकारात्मक है। बातचीत के लिए दरवाजे खुले हैं। इसका असर किसी भी चुनाव में पड़ने वाला नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता पूरी प्रतिबद्धता के साथ लगे हुए हैं।”

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