क्यों खुश नहीं है द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी से MP के आदिवासी?
कहा जा रहा है कि आदिवासी समुदाय को प्रतिनिधत्व तो दिया गया लेकिन इसमें मध्यप्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी वर्ग गौंड और भील-भिलाला की अनदेखी की गई।
Ashok Chaturvedi
भोपाल (जोशहोश डेस्क) अगर कोई बड़ा सियासी उलटफेर न हुआ तो एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। अभी तक चुनावी समीकरण पूरी तरह उनके पक्ष में हैं। महिला और आदिवासी होने के कारण ही उनकी उम्मीदवारी का पुरजोर स्वागत किया जा रहा है, वहीं मध्य प्रदेश के आदिवासियों में द्रौपदी मुर्मू के नाम को लेकर नाराज़गी भी दिखाई दे रही है।
देश में आदिवासियों की आबादी 12 करोड़ से ज्यादा है। आदिवासियों की सबसे ज्यादा संख्या मध्यप्रदेश में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मप्र की कुल जनसंख्या की लगभग 22 प्रतिशत आबादी आदिवासी है। अगर 2011 की जनगणना को ही आधार आधार मानें तो मध्यप्रदेश में 43 आदिवासी समूह हैं और इनमें गौंड और भील-भिलाला आदिवासी समूह की जनसंख्या सबसे ज्यादा है।
द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी हैं। उनकी उम्मीदवारी के बाद यह कहा अजा रहा है कि देश के शीर्ष पद के लिए आदिवासी समुदाय को प्रतिनिधत्व तो दिया गया लेकिन इसमें मध्यप्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी वर्ग गौंड और भील-भिलाला की अनदेखी की गई है। द्रौपदी मुर्मू जिस आदिवासी वर्ग संथाल से आती हैं उसकी आबादी गौंड और भील-भिलाला की संख्या की तुलना में आधी भी नहीं है।
दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति पद पर आदिवासी द्रौपदी मुर्मू के आसीन होने से आदिवासी समुदाय का भला होने की बात निरर्थक है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि कुछ इसी तरह की बातें उस समय भी की गई थीं जब है दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति चुने गए थे लेकिन बीते 5 सालों में दलितों के उत्पीड़न की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई न ही दलितों के सामजिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव दिखा।