सरकार ने माना, 1857 की क्रांति में सिंधिया ने दिया था अंग्रेजों का साथ

डॉ. राकेश पाठक की हाल ही में प्रकाशित किताब 'सिंधिया और 1857' में खुलासा होने पर वेबसाइट से हटाया पेज

भोपाल (जोशहोश डेस्क) भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम सन 1857 की क्रांति के समय ‘ग्वालियर के तत्कालीन सिंधिया महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया था। अपना भविष्य बचाने के लिए सिंधिया ने अंग्रेजों से हाथ मिलाया और बगावत को दबाने में ब्रिटिश फौज का साथ दिया। सिंधिया के अंग्रेजों के साथ आने से ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत हुई और क्रांति का दमन हो गया।’

यह तथ्य भारत सरकार ने लिखित रूप से स्वीकार किया है। सरकार द्वारा इस तथ्य को स्वीकार किये जाने का खुलासा वरिष्ठ पत्रकार,कवि और लेखक डॉ. राकेश पाठक की हाल ही में प्रकाशित किताब ‘सिंधिया और 1857’ में हुआ है लेकिन जैसे ही डॉ. पाठक की किताब चर्चा में आई वैसे ही सरकार की वेबसाइट से संबंधित पेज हटवा दिया गया है।

डॉ. पाठक की किताब में उल्लेख है कि स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव संबंधी भारत सरकार की वेबसाइट पर उपरोक्त तथ्य दर्ज़ हैं। संभवतः यह पहली बार है कि भारत सरकार ने क्रांति के समय अंग्रेजों का साथ देने वाली सिंधिया की भूमिका को अधिकृत रूप से स्वीकार किया है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इस सरकार में जयाजीराव के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री हैं।

डॉ. पाठक ने किताब में उस समय के घटनाक्रम का प्रमाणिक दस्तावेजों के आधार पर सिलसिलेवार विश्लेषण किया है। किताब सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित हुई है।

किताब के मुताबिक सरकार की वेबसाइट पर लिखा है कि…

” 1857 की पहली क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। विद्रोह मेरठ शहर (उत्तर प्रदेश) से मई 1857 से आरंभ हुआ यह शीघ्र ही देश के अन्य भागों जैसे दिल्ली और आगरा तक फैल गया। यह विद्रोह ग्वालियर पहुँचा और ग्वालियर छावनी ने जून 1857 में विद्रोह किया। ग्वालियर के जागीरदार मानसिंह और ग्वालियर के दूसरे जागीरदार, राघोगढ़ के राजा ने विद्रोहियों का पता ना बताकर उनका साथ दिया। लेकिन महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने ब्रिटिश फौजों से हाथ मिलाया और उन्हें इस बग़ावत को दबाने के लिए हर तरह से मदद की। वह संकट के समय ग्वालियर से भाग निकले जिससे ब्रिटिश सैन्य बलों को ग्वालियर पर आक्रमण करने और उस पर कब्ज़ा करने में सहायता मिली। यह वही आक्रमण था जिसमें झाँसी की रानी युद्ध के दौरान लड़ते हुए मारी गईं जिससे आखिरकार क्रांति का दमन हो गया।”

डॉ. पाठक ने अपनी किताब में भारत सरकार की वेबसाइट की लिंक (amritmahotsav.nic.in/district-reops…) भी दी है।

गत 29 अक्टूबर को डॉ.पाठक की किताब का भोपाल में विमोचन हुआ। इसके बाद सरकार की इस वेबसाइट के बारे में चर्चा शुरू हो गई। इसके बाद वेबसाइट से पेज हटवा दिया गया है। अब इस लिंक को लिंक ओपन करने पर Page Not Found लिखा दिख रहा है। ज़ाहिर है कि किताब के चर्चा में आने के बाद इसे हटवा दिया गया है।

इसके बाद भी भारत सरकार की एक अन्य वेबसाइट पर सिंधिया की भूमिका के बारे में सामग्री मौजूद है। भारत सरकार की वेबसाइट INDIAN CULTURE पर सन 1857 के विद्रोह के समय अंग्रेजों के मित्र सिंधिया की भूमिका के बारे लिखा है कि जब क्रांतिकारी ग्वालियर पहुंचे तो तत्कालीन महाराजा जयाजीराव सिंधिया ग्वालियर से भाग गए। बाद में अंग्रेजों के साथ युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गईं।

दूसरी ओर 1857 की क्रांति में सिंधिया की भूमिका का खुलासा होने के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से दो टूक सवाल पूछा है। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने डॉ. राकेश पाठक की किताब ‘सिंधिया और 1857’ का हवाला देते हुए पूछा कि मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी अपनी ही सरकार द्वारा उनके पूर्वजों पर की गई इस उद्घोषणा के बारे में अब क्या कहेंगे?

https://x.com/SupriyaShrinate/status/1719247731577806987?s=20

सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भोपाल में डॉ. राकेश पाठक जी ने अपनी पुस्तक ‘सिंधिया और 1857’ की प्रति भेंट की-

▪️1857 की क्रांति में जहां एक तरफ़ झाँसी की रानी के ग्वालियर में बलिदान की कथा प्रेरित करती है वहीं ग्वालियर के सिंधिया राजवंश और तत्कालीन महाराजा जयाजीराव सिंधिया की भूमिका शर्मसार करती है।

▪️अपनी किताब के पहले ही कुछ पन्नों में डॉ पाठक ने भारत सरकार की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को मनाने वाली अधिकृत वेबसाइट के कुछ अंश का उल्लेख किया है जिसमें मोदी सरकार ने महाराजा जयाजीराव सिंधिया की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए बड़े सवालिया निशान खड़े किए हैं।

▪️उत्सुक हूँ जानने के लिए कि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी अपनी ही सरकार द्वारा उनके पूर्वजों पर की गई इस उद्घोषणा के बारे में अब क्या कहेंगे?

▪️यहाँ पर
•किताब में अंकित वेबसाइट पर दिये हुए अंग्रेज़ी अंश का हिन्दी अनुवाद
•AmritMahotsav वेबसाइट का लिंक
•वेबसाइट पर जो लिखा है उसका स्क्रीन शॉट लगा रही हूँ

“1857 की पहली क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। विद्रोह मेरठ शहर (उत्तर प्रदेश) से मई 1857 से आरंभ हुआ यह शीघ्र ही देश के अन्य भागों जैसे दिल्ली और आगरा तक फैल गया। यह विद्रोह ग्वालियर पहुँचा और ग्वालियर छावनी ने जून 1857 में विद्रोह किया। ग्वालियर के जागीरदार मानसिंह और ग्वालियर के दूसरे जागीरदार, राघोगढ़ के राजा ने विद्रोहियों का पता ना बताकर उनका साथ दिया। लेकिन महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने ब्रिटिश फौजों से हाथ मिलाया और उन्हें इस बग़ावत को दबाने के लिए हर तरह से मदद की। वह संकट के समय ग्वालियर से भाग निकले जिससे ब्रिटिश सैन्य बलों को ग्वालियर पर आक्रमण करने और उस पर कब्ज़ा करने में सहायता मिली। यह वही आक्रमण था जिसमें झाँसी की रानी युद्ध ke दौरान लड़ते हुए मारी गईं जिससे आखिरकार क्रांति का दमन हो गया”

गौरतलब है कि वरिष्ठ पत्रकार, कवि और लेखक डॉ. राकेश पाठक की किताब ‘सिंधिया और 1857’ का विमोचन हाल ही में भोपाल में हुआ था। डॉ. राकेश पाठक ने अपनी इस पुस्तक में झाँसी के नेवालकर और ग्वालियर के सिंधिया के रिश्तों की गहरी ऐतिहासिक पड़ताल करते हुए उन सूत्रों की तलाश की है जिनकी वजह से जयाजीराव सिंधिया और रानी लक्ष्मीबाई का कोई साझा मोर्चा बन पाना सम्भव नहीं था। डॉ. राकेश पाठक ने उस समय के गजेटियर तथा अन्य दस्तावेजों की सहायता से न सिर्फ़ उस दौर के देसी राजाओं की राजनीति का खुलासा किया है अपितु अँग्रेज़ों की कूटनीति का भी पर्दाफाश किया है। सिंधिया परिवार और नेवालकर वंश की भीतरी राजनीति की विवेचना के बाद पुस्तक इस तथ्य को भी सामने लाती है कि अपने विशेषाधिकारों और अपनी सत्ताओं को बचाना ज्यादातर रियासतों का पहला और अन्तिम उद्देश्य था और 1857 में उनमें से ज्यादातर के हस्तक्षेप इसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य से संचालित हुए थे।

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