भोपाल (जोशहोश डेस्क) कांग्रेस 20 मार्च को ‘लोकतंत्र सम्मान दिवस’ मना रही है। आज के ही दिन कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के दलबदल के बाद संख्या बल के आगे झुकते हुए इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान की चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की राह साफ़ हो गई थी।
2018 विधानसभा में सत्ता गंवाने के छह महीने बाद ही भाजपा ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ ऑपरेशन लोटस शुरू कर दिया था। अगर भूपेंद्र सिंह और शिवराज के एक करीब सांसद से चूक नहीं हुई होती तो शायद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के बिना जी प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो जाता।
पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के घटनाक्रम पर लिखी अपनी किताब ‘वो 17 दिन’ में सूत्रों के हवाले से जो लिखा है वह कुछ ऐसा ही संकेत देता है।
ब्रजेश राजपूत की किताब में इस बात का उल्लेख है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने से सात दिन पहले ही यानी तीन मार्च को ही गुरूग्राम के होटल आईटीसी ग्रांड में कमलनाथ सरकार को गिराने की पूरी तैयारी हो चुकी थी।
ब्रजेश राजपूत ने अपनी किताब ‘वो 17 दिन’ के पहले अध्याय में लिखा…
प्रदेश के इस पाॅलिटिकल डामे के किरदार इस होटल मे जुट चुके थे। सत्ता पलट के इस ड्रामे के निर्देशक दिल्ली में बैठे थे। मगर उन्होंने इसकी पटकथा लिखने का काम सौंपा था एमपी के ग्वालियर-चंबल संभाग के बीजेपी के दो कददावर नेताओं को जो बीजेपी के विधायक भी थे। एक विधायक शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके थे वहीं दूसरे विधायक चंबल के ठेठ ठाकुर हैं।
जैसा कि पटकथा लिखने वाले ग्वालियर चंबल इलाके के भाजपा के एमएलए थे। इसलिए कांग्रेस से पाला बदल वाले किरदार भी उसी इलाके से चुने गए थे। सबसे पहले निशाना बनाया गया अंबाह सीट से विधायक कमलेश जाटव, गोहद के रणवीर जाटव, मुरैना के रघुराज कंसाना, सुमावली के एदल सिंह कसाना, और भिंड जिले की मेहगांव सीट के ओपीएस भदौरिया को। इन विधायकों के दल में मंदसौर की सुवासरा सीट के हरदीप सिंह डंग और अनूपपुर के बिसाहूलाल सिंह को भी जोड़ा गया।
ये सभी कांग्रेसी विधायक पार्टी के बड़े नेताओं की उपेक्षा और सम्मान नहीं मिलने से मुख्यमंत्री कमलनाथ से नाराज थे। इनकी नाराजगी को लालच की धौंकनी से हवा दी भाजपा के उन दो नेताओं ने। कांग्रेस के इन विधायकों को दिल्ली से भोपाल तक के बड़े भाजपा नेताओं से मिलवा दिया गया था। इन असंतुष्टों में चार में दो निर्दलीय विधायक और सपा-बसपा के तीन और विधायकों को जोड़ने की सोची गई।
ब्रजेश राजपूत लिखते हैं..
इस ऑपरेशन से जुड़े विश्वस्त सूत्रों की मानें तो गुरूग्राम की इस आलीशान होटल में करीब बारह विधायकों को इकट्ठा करना था। तीन मार्च की रात को इकट्ठा होना था और चार तारीख को इनकी मुलाकात बीजेपी के बड़े नेताओं से करवाकर सरकार को पलट देना था। मगर तीन की रात को ही भाजपा के रणनीतिकारों की बाजी पलट गई।
ब्रजेश राजपूत लिखते हैं भाजपा की बाजी पलटने के पीछे दो चूक रहीं..
पहली यह कि एक ओर विधायकों को प्रदेश सरकार की ख़ुफ़िया नजर से बचाने पहले सड़क मार्ग से इंदौर और वहां से दिल्ली भेजा गया लेकिन बसपा विधायक रामबाई को भूपेंद्र सिंह चाटर्ड प्लेन से लेकर दिल्ली के लिए उड़े। यहां सरकार को इस मूवमेंट की खबर लग गई। फिर कया था विधायक जी के गनमेन के फोन की लोकेषन पर नजर रखी जाने लगी।
दूसरी ओर भिंड मुरैना के चार विधायकों को दिल्ली ले जाने की जिम्मेदारी भाजपा के जिस सांसद को गई थी वह वे भी थोड़े कच्चे निकले। शिवराज के बेहद करीबी और पहली बार के सांसद महोदय से विधायकों ने कहा कि पंडित जी आप खाते पीते नहीं हो इसलिए आप हवाईजहाज से दिल्ली पहुंचिए। हम अपनी गाड़ी से रास्ते में खाते पीते हुए आराम से गुरूग्राम पहुंच जाएंगे। हुआ वही जिसका डर था। सांसद महोदय तो होटल पहुंच गए लेकिन एमएलए के इस जत्थे को खाते पीते इतनी देर हो गई कि इन सबने देर रात को गुरूग्राम जाने की जगह दिल्ली में मध्यप्रदेश सरकार के रेस्टहाउस मध्यांचल में ही डेरा डाल दिया।
इधर कांग्रेस का संकट मोचक दल एक्टिव हो चुका था। दिग्विजय सिंह, गुरूग्राम के इसी होटल में दो रूम आनलाइन बुक करा चुके थे और उन्होंने जीतू पटवारी, जयवर्धन सिंह और कुणाल चौधरी को आनन फानन में गुरूग्राम में बुलवा लिया। इसके बाद पूरी रात होटल में हंगामा होता रहा और अंतत जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह बसपा विधायक राम बाई और उनकी बेटी को बड़ी मशक्कतों के बाद दिल्ली में मध्यप्रदेश सरकार के गेस्ट हाउस मध्यांचल पहुंच गए। यहां उन्हें कांग्रेस के तीन विधायक भी मिल गए जो होटल न जाकर यहीं रूक गए थे।
‘वो 17 दिन’ के पहले अध्याय के मुताबिक इस तरह चार मार्च को कमलनाथ सरकार पर आया खतरा टल गया। हालांकि अरविंद भदौरिया गुरूग्राम के होटल से चार विधायकों कांग्रेस के हरदीप डंग, बिसाहूलाल साहू, रघुराज कंसाना और निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा को किसी तरह बेंगलुरू ले जाने में कामयाब रहे और फिर बेंगलुरू से कमलनाथ सरकार को गिराने की आगे की कहानी शुरू हुई। जो दस मार्च को सिंधिया के इस्तीफे के बाद परवान चढ़ी।