बेंगलुरू में रिसाॅर्ट के कर्मचारियों के सवाल में छिपा था प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का राज

एक साल पहले आज के ही दिन 15 साल के इंतजार के बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद गिर गई थी।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) मध्यप्रदेश के इतिहास के लिए 20 मार्च एक अहम दिन है। एक साल पहले आज के ही दिन 15 साल के इंतजार के बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद गिर गई थी। लगभग तीन सप्ताह चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 20 मार्च को ही इस्तीफा दे दिया था।

प्रदेश में सत्ता परिवर्तन क्यों हुआ? और इसका हासिल क्या रहा? इस सवाल का जवाब साल भर बाद भी सियासी गलियारों के साथ मीडिया संस्थानों में तलाशा जाता रहा है और अपने अपने तर्कों से इस का जवाब दिए जाने के प्रयास भी होते रहे।

यह सवाल आम आदमी के जेहन में भी हमेशा रहा,सत्ता परिवर्तन के बाद भी और उस समय भी जब बेंगलुरू का रिसाॅर्ट से प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का केंद्र बना हुआ था। यहाँ तक कि वहां काम करने वाले कर्मचारी तक इसका जवाब दलबदल पर उतारू विधायकों से जानना चाहते थे। इसी सवाल के जवाब में सत्ता परिवर्तन का राज भी छिपा था।

पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने प्रदेश के सत्ता परिवर्तन पर लिखी अपनी किताब ‘वो 17 दिन’ में इस वाकए का जिक्र भी किया है। ब्रजेश राजपूत की यह किताब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का बड़ा दस्तावेज कही जाती है।

ब्रजेश राजपूत अपने सूत्रों के हवाले से इस किताब के पृष्ठ 96 पर लिखते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद जब विधानसभा में बहुमत की लड़ाई कोर्ट तक पहुंची तो बेंगलुरू के रिसाॅर्ट में मौजूद सिंधिया समर्थक भी परेशान होने लगे।

इन विधायकों को अपना घर परिवार छोड़े आठ से दस दिन हो गए थे। विधायकों के चेहरे इनकी परेशानी बयां कर रहे थे और भाजपा के रणनीतिकारों को भी इनको संभालना मुश्किल हो रहा था।

यहां रह रहे एक मंत्री ने बताया कि कभी कभी तो रिसाॅर्ट के कर्मचारी भी हमसे पूछ लेते थे आप यह क्यों कर रहे हो? आप आज सरकार में मंत्री हो और यह सरकार गिरा कर भी मंत्री ही बनोगे, मुख्यमंत्री तो बन नहीं जाओगे? फिर इतनी मशक्कत किस लिए कर रहे हो?

यह सवाल सुन हम भी एक बार सोचने को मजबूर हो जाते थे। मगर बाद में अपने को याद दिलाते थे कि यह लड़ाई पद की नहीं अपने नेता के आत्मसम्मान की है इसलिए लड़े जा रहे हैं।

सत्ता परिवर्तन के एक साल बाद भी यही सवाल फिर सामने आता है? वह भी तब जब बगावत करने वाले मंत्री दोबारा मंत्री बन चुके है और कुछ मंत्री तो क्या विधायक भी नहीं बचे। ऐसे में रिसाॅर्ट के कर्मचरियों को मंत्री से मिला यही जवाब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का सारांश माना जा सकता है।

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