नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) संसद के मानसून सत्र में कांग्रेस के साथ एकजुट विपक्ष की आक्रामकता सुर्खियों में है। पेगासुस जासूसी कांड पर जिस तरह विपक्ष एकजुट हुआ है उससे मोदी सरकार भी चकित है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस विपक्षी एकजुटता की अघोषित रूप से अगुआई करते दिख रहे हैं। राहुल गांधी एक ओर बेहद आक्रामक अंदाज में मोदी सरकार को घेर रहे हैं वहीं दूसरी ओर बेहद संयमित तरीके से विपक्ष के अन्य नेताओं से समन्वय भी कर रहे हैं।
देश के वर्तमान सियासी परिदृश्य में इसे राहुल गांधी का नया अवतार माना जा रहा है। वे सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं बल्कि विपक्ष के लिए भी सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित हो रहे हैं। वे संसद की कार्यवाही से पहले विपक्ष के नेताओं के एकजुट कर रहे हैं। ब्रेकफास्ट मीटिंग कर विपक्ष के साथ रणनीतियां बना रहे हैं और विपक्ष के साथ संयुक्त रूप से प्रेस काॅन्फ्रेंस कर रहे हैं।
बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को छोड़ दिया जाए तो विपक्ष की 15 पार्टियां राहुल गांधी के साथ खड़ी नजर आ रही हैं। राहुल गांधी इन पार्टियों के नेताओं को महत्व देते हुए उनके सुझाव सुन रहे हैं उन्हें एकजुटता की ताकत का पाठ पढ़ा रहे हैं।
ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं को एकजुटता का सीधा संदेश दिया था। राहुल गांधी ने साफ कहा था कि मेरी नजर में सबसे अहम हम सब का एकजुट रहना है। जितनी ज्यादा लोगों की आवाज एकजुट होगी, उतनी ज्यादा यह प्रभावी बनेगी। इस एकजुट आवाज को BJP-RSS के लिए दबा पाना उतना ही मुश्किल होगा।
राहुल गांधी के इस सन्देश ने विपक्ष के चेहरे को लेकर उठने वाले सवालों का न सिर्फ जवाब दे दिया था बल्कि बैठक खत्म होने के बाद राहुल गांधी जब साइकिल से संसद रवाना हुए तो विपक्षी दलों के नेताओं का भी उनके साथ साइकिल से संसद आना राहुल गांधी की स्वीकार्यता को साबित कर गया।
पेगासुस जासूसी कांड में मोदी सरकार को घेरने कांग्रेस के राज्यसभा में नेता मल्लिकार्जुन खडगे के चेंबर में भी विपक्ष के नेताओं की मीटिंग हुई थी। इसमें भी राहुल गांधी पूरी तरह विपक्ष की अगुआई करते नजर आए थे। मीटिंग के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी सबसे पहले बोले और अपने बाद शिवसेना के संजय राउत और सपा के रामगोपाल यादव के सामने माइक बढ़ा दिया था। इसका संदेश यही था कि विपक्ष की आवाज एक लगे और विपक्षी दलों को भी इस एकजुटता में महत्व मिलता दिखाई दे।
विपक्ष की मीटिंग में शामिल कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेताओं का भी कहना था कि राहुल सभी को बराबरी का महत्व देते हुए साथ लेकर चल रहे हैं। बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी विपक्ष की एकजुटता के लिए सिर्फ संसद के भीतर ही नहीं बल्कि संसद के बाहर भी प्रयास कर रहे हैं। हंगामे के बाद संसद की कार्यवाही स्थगित होने पर राहुल गांधी रिवाल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के नेता एनके प्रेमाचरण से चर्चा करते भी दिखाई दिए थे। मुलाकात के बाद प्रेमाचरण का कहना था कि राहुल गांधी की इस तरह ‘स्पष्ट और सक्रिय’ भागीदारी स्वागतयोग्य है।
राहुल गांधी के इस अवतार से कांग्रेस भी बदली-बदली और आक्रामक नजर आ रही है। दिल्ली में गैंगरेप पीड़िता के परिजनों से मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने जिस तस्वीर को ट्वीट किया था उस पर एक्शन के बाद पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के साथ खड़ी नजर आ रही है। कांग्रेस नेता ‘मैं भी राहुल’ के स्लोगन के साथ वही तस्वीर पोस्ट कर ट्विटर और मोदी सरकार को सीधी चुनौती भी दे रहे हैं। वहीं सड़कों पर भी कांग्रेस पूरी ताकत के साथ पेट्रोल डीजल, महंगाई और किसानों के मुद्दों पर लड़ती नज़र आ रही है।
भाजपा की सबसे बड़ी ताकत सोशल मीडिया पर उसकी पकड़ है। कांग्रेस इस चुनौती से भी दो-दो हाथ करती दिखने लगी है। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम भाजपा से आगे भी निकल चुकी है। वहीं राष्ट्रीय चैनलों पर जिस तरह पवन खेरा, रागिनी नायक और सुप्रिया श्रीनेत जैसे प्रवक्ता आक्रामक तरीके से भाजपा प्रवक्ताओं पर पलटवार कर रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान ने आक्रमण को भी ही अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है।
राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी ने जिस तरह पंजाब के सियासी संकट का समाधान किया उसे कांग्रेस में एक तरह की नई शुरुआत भी कहा जा रहा है। राहुल-प्रियंका की जोड़ी ने नवजोत सिंह सिद्धू को ताकत देकर पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राजस्थान में अशोक गहलोत जैसे दिग्गज क्षत्रपों को विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय नेतृत्व की अनदेखी बर्दाश्त न किये जाने का सीधा संदेश दे दिया है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ अब विपक्ष भी राहुल गांधी के इस आक्रामक अवतार को स्वीकार कर मोदी सरकार और भाजपा के संगठन का मुकाबला करने को तैयार दिखने लगा है। देखना यह है कि आक्रामक राहुल और आक्रामक कांग्रेस एकजुट विपक्ष के साथ मिलकर लोकसभा चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी को कितनी चुनौती पेश कर पाते हैं?