जयपुर (जोशहोश डेस्क) राज्यपाल कलराज मिश्र के जीवन पर आधारित एक किताब को बेचने की कवायद का विरोध बढ़ता जा रहा है। लेखक संघों ने राजभवन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं और राज्यपाल को पत्र लिखा है। राज्यपाल की जीवनी के सह-लेखक लंबे समय से उनके विशेषाधिकारी रहे गोविंद राम जायसवाल हैं जिन पर भी सवाल उठाये जा रहे।
राज्यपाल कलराज मिश्र के जीवन पर आधारित एक किताब ‘कलराज मिश्र निमित्त मात्र हूं मैं…’ का लोकार्पण उनके जन्मदिन पर एक जुलाई को किया गया था। समारोह में पुस्तक के प्रकाशक आईआईएमई जयपुर द्वारा बेहद शातिराना अंदाज़ में राजस्थान के सभी 27 राजकीय विश्वविद्यालयों को मनमानी संख्या में किताब की प्रतियां देकर उनके बिल जबरदस्ती विश्वविद्यालयों केकुलपतियों को थमा दिए गए। इन बिलों में अन्य पुस्तकों की कीमत भी लिखी गई, जबकि ये किताबें उपलब्ध नहीं कराई गईं।
लेखक संघ ने राज्यपाल को लिखे पत्र में इसे एक बड़ी वित्तीय अनियमितता बताते हुए राजभवन जैसी संवैधानिक संस्था की मर्यादा, सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और विश्वविद्यालयों तथा राजभवन के संस्थागत संबंधों के विरुद्ध आचरण भी बताया है।
प्रदेश के विश्वविद्यालयों के सभी कुलपति विश्वविद्यालयों के संचालन के संबंध में 1 जुलाई को विशेष बैठक तथा राज्यपाल कलराज मिश्रा को जन्मदिवस पर बधाई देने के लिए राजभवन आए थे। उनके राजभवन में आगमन की सूचना का प्रकाशक तक पहुँचना और राजभवन के मेहमानों के साथ राजभवन परिसर में ऐसा व्यवहार राजभवन के अधिकारियों अथवा प्रबंधकों की जानकारी के बिना संभव नहीं है। ऐसे में, इस मामले में राजभवन में मौजूद कुछ लोगों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है ।
किताब के सह-लेखक गोविंद राम जायसवाल हैं पर भी सवाल उठ रहे है। लेखक संघों का आरोप है कि इस पुस्तक की प्रतियाँ विश्वविद्यालयों को बलात् बेचने में उनकी भूमिका संदेहास्पद हो सकती है, क्योंकि पुस्तक विक्रय के बहाने से वसूली प्रकरण को इस पुस्तक के लेखक डी के टकनेत और उनकी प्रकाशक संस्था ने ही अंजाम दिया है। स्थानीय अखबारों में ऐसी खबरें भी प्रकाशित हुई हैं कि पूर्व में इसी प्रकाशक संस्था द्वारा आपके राज्यपाल के रूप में कार्यकाल के दौरान ही राजभवन के निर्देश का हवाला देकर लगभग 55 लाख रुपए की किताबें विश्वविद्यालयों को जबरदस्ती भेज कर तुरंत बिल भुगतान की मांग के साथ सरकारी विश्वविद्यालयों से लाखों रुपए की वसूली की है।
लेखक संघ का कहना है कि यह पूरा प्रकरण राजभवन जैसे उच्च संवैधानिक कार्यालय की आड़ लेकर किताबों के नाम पर एक बड़े रैकेट के जरिए लाखों रुपए के गबन का मामला प्रतीत होता है। यह भी संभव है कि 01.07.2021 की घटना और प्रकाशक द्वारा 20.01.2020 को लिखे पत्र, जिसमें कुछ पुस्तकों की 25-25 प्रतियाँ बिना मांग के राजभवन के निर्देशों का हवाला देकर विश्वविद्यालयों को प्रेषित कर बिल भुगतान के लिए कहा गया, के प्रकरणों में राजस्थान स्थित 27 राजकीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त प्रदेश, देश या कहीं और स्थापित अन्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों, शोध केन्द्रों, पुस्तकालय आदि से भी राजभवन के हवाले से जबरदस्ती पुस्तकें भेजकर वसूली की गई हो।
लेखक संघ ने पत्र में लिखा कि
इन परिस्थितियों में भी, हम राजस्थान के चिंतित जन, आप जैसे व्यक्ति के हवाले से जाहिर किए गए सार्वजनिक बयान पर विश्वास करते हैं। यह हमारे लिए बेहद सुकून वाली बात भी है। स्थानीय समाचार पत्रों के हवाले से जानकारी आई है कि इस मामले में राजभवन की किसी भी भूमिका से इनकार किया गया है तथा माननीय राज्यपाल की ओर से राजभवन के ही सचिव को प्रकरण की जांच कर विधिक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन महोदय, राजभवन की संवैधानिक मर्यादा, नैतिकता के उच्च आदर्श और न्याय के सिद्धांत की दृष्टि से यह नाकाफी है। राज्यपाल की संवैधानिक मर्यादाओं के प्रति संवेदनशील होकर ही हम इस खुले पत्र के माध्यम से आपसे मांग करते हैं कि इस प्रकरण की गहराई से राजभवन से सीधे रूप में असम्बद्ध संस्थान अथवा प्राधिकारी से निष्पक्ष जांच करवा कर राज्यपाल के पद की गरिमा को प्रस्थापित करने का उदाहरण पेश करें।
लेखक संघ ने मांग की है कि इस प्रकरण में प्रकाशक संस्था, उसके निर्देशक और पुस्तक के लेखकडी के टकनेत, पुस्तक के सह लेखक तथा राज्यपाल के विशेषाधिकारी गोविंद राम जायसवाल, राज्यपाल के सचिव सहित अन्य अधिकारियों एवं कार्मिकों की संदिग्ध भूमिका की जांच की जाए। जायसवाल तथा जीवनी लेखन और प्रकाशन के कार्य से जुड़े राजभवन के अधिकारियों, कार्मिकों को जांच पूरी होने तक उनके वर्तमान दायित्वों से हटाया जाए, ताकि जांच की प्रक्रिया निष्पक्ष रहे। राज्यपाल के सचिव को इस जांच में किसी भी भूमिका से दूर रखकर प्रकरण में स्वयं उनकी भूमिका को जांच के दायरे में लाया जाए।
प्रकाशक संस्था द्वारा इस पुस्तक के अलावा अन्य पुस्तकें राजभवन के निर्देशों का हवाला देकर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, शोध एवं शैक्षणिक संस्थानों, पुस्तकालयों आदि को बिना मांग के भेजी गई पुस्तकों और बिलों की वसूली के अन्य मामलों को भी जांच के दायरे में रखा जाए।
एकजुट लेखक-संघ
डॉ. जीवन सिंह, अध्यक्ष, जनवादी लेखक संघ, राजस्थान
प्रो. राजीव गुप्ता, कार्यकारी अध्यक्ष, जनवादी लेखक संघ, राजस्थान
संदीप मील, सचिव, जनवादी लेखक संघ, राजस्थान
शैलेन्द्र चौहान, उपाध्यक्ष, जनवादी लेखक संघ, राजस्थान
ईशमधु तलवार, महासचिव, राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ
गोविन्द माथुर, उपाध्यक्ष, राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ
प्रो. सुधा चौधरी, जन संस्कृति मंच, राजस्थान
रणवीर सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्टा व अध्यक्ष, लोक अध्ययन संस्थान
सुधांशु मिश्र, महासचिव, लोक अध्ययन संस्थान
बसंत हरियाणा, राजस्थान नागरिक मंच
प्रो. मोहन श्रोत्रिय, आलोचक और शिक्षाविद
मुकेश गोस्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता
अखिल चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता