राफेल डील की फ्रांस में जांच शुरू, मोदी सरकार की बढ़ेगी मुश्किल

फ्रांस में राफेल डील में भ्रष्टाचार और कम्पनी विशेष को फेवर देने के आरोपों की जांच शुरू हो गई।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) राफेल डील को लेकर मोदी सरकार एक बार फिर मुश्किल में आ सकती है। फ्रांस में राफेल डील में भ्रष्टाचार और कम्पनी विशेष को फेवर देने के आरोपों की न्यायिक जांच शुरू हो गई। जांच एक स्वतंत्र जज की निगरानी में होगी। करीब 59000 करोड़ की राफेल डील को लेकर खुलासे करने वाली वेबसाइट मीडियापार्ट के हवाले से द वायर ने यह खबर ब्रेक की है।

मीडियापार्ट के खोजी पत्रकार यान फिलिपियन के मुताबिक साल 2016 में भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई डील को लेकर यह बेहद संवदेनशील जांच फ्रेंच पब्लिक प्राॅस्क्यिूशन सर्विस (पीएनएफ) की आर्थिक अपराध शाखा की अनुशंसा पर 14 जून को शुरू हुई है। भ्रष्टाचार, मनी लांड्रिंग,अनुचित लाभ पहुंचाने के साथ ही पद के प्रभाव से डील को प्रभावित करने जैसे बिंदुओं को जांच के दायरे में रखा गया है। साथ ही डील में मिडिलमेन की भूमिका भी जांच होगी।

पेरिस की इनवेस्टिगेटिव वेबसाइट मीडियापार्ट में लगातार इस डील को लेकर प्रकाशित खबरों के आधार पर फ्रांस के एक एंटी करप्शन एनजीओ शेरपा ने ट्रिब्यूनल ऑफ़ पेरिस में शिकायत दर्ज कराई थी। जिस पर एक्शन लेते हुए अब यह जांच शुरू हुई है।

मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोस ओलांद के अलावा वर्तमान राष्ट्रपति इमानुए मैक्रों पर भी डील को लेकर उठ रहे सवालों को भी जांच के दायरे में लाया गया है। जब भारत और फ्रांस ने राफेल डील को फाइनल किया था तब ओलांद ही राष्टपति थे।

अनिल अंबानी भी शक के घेरे में

मीडियापार्ट ने अहम खुलासे में बताया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट और अनिल अंबानी की कंपनी के बीच पहला एमओयू 26 मार्च 2015 को साइन किया था। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को डील की औपचारिक घोषणा की थी। इसमें विमानों की संख्या भी 126 से कम कर 26 हो गई थी। वहीं दसॉल्ट एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस ने 2017 में जाॅइन्ट वेंचर में दसाॅ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीएआरएल) बना ली थी। अब इस बात की भी जांच होगी कि क्या दसॉल्ट एविएशन ने रिलांयस के साथ ज्वाइंट वेंचर में बनाई कंपनी के पीछे कोई राजनीतिक दवाब था?

अनिल अंबानी की रिलायंस के डील में शामिल होने को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी सवाल उठा चुके हैं। दसॉल्ट से 126 राफेल विमानों के लिए 2012 में जो डील की जा रही थी उसके मुताबिक भारतीय एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) इसमें शामिल था। दसॉल्ट के मुताबिक, 2015 तक ये बातचीत अपने आखिरी चरण में पहुंच गई थी लेकिन 2016 में अचानक ही HAL की जगह रिलायंस ग्रुप ने ले ली और नए सौदे के तहत 36 विमानों की डिलीवरी तय की गई। इसके बाद पूरी डील विवादों मी आ गई।

इससे पहले मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का सामना कर रहे कारोबारी सुषेन गुप्ता की भूमिका विवादित राफेल डील में भी थी। रिपोर्ट के मुताबिक राफेल डील के लिए गुप्ता को दसाॅ एविएशन और इसके पार्टनर ‘थेल्स’ की ओर से करोड़ों रुपये का कमीशन मिला था।

ईडी की फाइलों से प्राप्त किए गए दस्तावेजों के आधार पर इस मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि सुषेन गुप्ता ने गैरकानूनी तरीके से रक्षा मंत्रालय की फाइलों को हासिल कर लिया था और इसका इस्तेमाल फ्रांसीसी पक्ष को अच्छी डील दिलाने में किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक ईडी के पास इस बात की पुख्ता जानकारी थी कि गुप्ता ने रक्षा मंत्रालय के दस्तावेजों को प्राप्त कर फ्रांसीसी पक्ष की मदद की है, लेकिन उन्होंने इस संबंध में कोई जांच शुरू नहीं की. यह दर्शाता है कि जांच एजेंसी सत्ताधारी दल के ‘मुताबिक’ काम कर रही है।

राफेल डील को लेकर कांग्रेस मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुकी है। कांग्रेस का दावा है कि उसकी सरकार ने 136 राफेल विमान 10 अरब 20 करोड़ डॉलर में खरीदने का करार किया था जबकि मोदी सरकार 8 अरब 70 करोड़ डॉलर में महज 36 विमान खरीद रही है। कांग्रेस का आरोप है कि दोनों करारों की तुलना करने पर पता चलता है कि मोदी सरकार प्रत्येक विमान की खरीद पर 1670 करोड़ रुपए यानी पुरानी कीमत से तीन गुना अधिक खर्च कर रही है।

गौरतलब है कि भारत ने फ्रांस के साथ 2016 में 59 हजार करोड़ रुपए में 36 राफेल की डील की है। इसके तहत भारत को 30 लड़ाकू और 6 ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट मिलेंगे।अभी तक 14 लड़ाकू विमान भारत आ चुके हैं।

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