नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घटती लोकप्रियता और ब्राजील में सरकार विरोधी आंदोलन में कोई संबंध है? यह सवाल इसलिए क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर के बीच प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा है वहीं जनता के बीच में यह संदेश भी जा रहा है कि मोदी सरकार ने कोरोना संकट के समय जिम्मेदारी से काम नहीं किया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सर्वे में भी यह बात सामने आ रही है। यही कारण है कि भाजपा और संघ में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लेकर पहली बार व्यापक चिंता देखी जा रही है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कोरोना से जंग में नाकामी ब्राजील समेत कई अन्य देशों में सरकार विरोधी जन आंदोलन का कारण बन चुकी है।
कोरोना के कुप्रबंधन को लेकर ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सनारो अपने देश की जनता के निशाने पर हैं। यहां कोरोना से करीब चार लाख 61 हजार मौत हो चुकी हैं। भारत में भी कोरोना से मौतों की संख्या करीब तीन लाख 31 हजार को पार कर चुकी है। पत्रकार अभिसार शर्मा ने भी ब्राजील के हालात को मोदी सरकार के लिए चेतावनी बताया है।
दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के सात साल पूरे किए हैं। इन सात सालों में उनकी लोकप्रियता निर्विवाद रूप से बरकरार रही है लेकिन बीते सात सप्ताह उनकी लोकप्रियता के साल सालों पर भारी साबित हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता की चर्चा है।
कोरोना की दूसरी लहर के बीच पश्चिम बंगाल में अति आक्रामक चुनाव प्रचार ने प्रधानमंत्री की छवि को प्रभावित किया। वहीं अस्पताल में बेड ऑक्सीजन के लिए मची त्राहि-त्राहि और बड़ी संख्या में कोरोना से मौतों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोरोना से जीत के दावों की कलई खोल दी।
इस दौरान अपनों को लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल अपनों को लिए भटकते लोग सरकार को कोसते नजर आए। इनमें वे लोग भी शामिल थे जो कोरोना से जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर न सिर्फ ताली थाली बजाने में सबसे आगे थे बल्कि जिन्होंने पीएम केयर फंड तक में बड़ी राशि दान की थी। सी वोटर के सर्वे में यह नाराजगी जाहिर भी हुई है।
सवाल सिर्फ प्रधानमंत्री के कम होती लोकप्रियता का भी नहीं। बड़ी बात यह है कि देश के लोग अब अपना भविष्य अच्छा नहीं देख रहे हैं। सी वोटर के प्रमुख यशवंत देशमुख के सर्वे में यह बात सामने आई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में उत्तर भारत में किसान आंदोलन कर रहे हैं। सिख समुदाय भी पीएम मोदी के विरोध में दिख रहा है। इसी तरह जाट समुदाय भी सिर पर पगड़ी बांधकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहा है। देश का अधिकांश मुस्लिम समुदाय एनआरसी को लेकर पहले ही विरोध में हैं।
इसी तरह से उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में कोरोना महामारी के प्रति सरकार ने गंभीरता दिखाने के बजाय लापरवाही दिखाई। श्मशान और कब्रिस्तान में शवों को जगह नहीं मिली। जिस तरह से गंगा किनारे शवों की तस्वीरें सामने आ रही है उससे भाजपा को सबसे ज्यादा लोकसभा सीट देने वाले उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री के साथ भाजपा के फायरब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि भी प्रभावित हुई है। उत्तर प्रदेश में चल रही सियासी हलचल इसकी गवाह है।
सरकार कोरोना के प्रबंधन को लेकर ही नहीं घिरी बल्कि बढ़ती मंहगाई, पेट्रोल-डीजल की कीमत और रसातल में जाती अर्थव्यवस्था को लेकर भी सवालों के घेरे में है। घरेलू गैस सिलेंडर के आसमान छू रहे दामों से महिलाओं में नाराजगी है। जो उज्जवला योजना निम्न आय वर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हुई थी वह अब बैकफायर कर रही है। वहीं बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ों से युवाओं का भी केंद्र सरकार से मोहभंग हो रहा है। (पढ़िए रिपोर्ट)
दूसरी ओर भाजपा और संघ द्वारा पूरी ताकत लगाए जाने के बाद भी पश्चिम बंगाल में मिली हार ने प्रधानमंत्री की करिश्माई छवि के तिलिस्म को तोड़ा है। ममता बैनर्जी अब और भी ताकतवर-आक्रामक होकर केंद्र सरकार से दो-दो हाथ कर रही हैं। वहीं केंद्र सरकार के खिलाफ ममता बैनर्जी विपक्षी दलों को भी एकजुट करने का प्रयास भी कर रहीं हैं।
इन हालातों में अचानक से भारतीय जनता पार्टी और संघ के विचारक समूह में इस बात को लेकर चिंता की जाने लगी है कि कहीं भारत में भी ब्राजील और अन्य देशों की तरह जनता सड़कों पर न उतर आए। भारतीय जनता पार्टी के नीति नियंता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि भारत में भी किसान, सिख, जाट और मुस्लिम समुदाय एकजुट हो सड़कों पर आया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए तीसरे कार्यकाल की राह मुश्किल हो सकती है।