नरसंहार का उत्सव: जलियांवाला कांड का जश्न मनाने का आइडिया किसका था ?
इतिहासकारों-राजनेताओं और प्रबुद्ध वर्ग द्वारा भी जलियांवाला बाग के रिनोवेशन को इतिहास के साथ छेड़छाड़ बताया जा रहा है।
Ashok Chaturvedi
नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) भारतीय इतिहास में अंग्रेजों की क्रूरता का जीता जागता दस्तावेज कहे जाने वाले जलियांवाला बाग के रिनोवेशन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना लगातार बढ़ती जा रही है। इतिहासकारों-राजनेताओं और प्रबुद्ध वर्ग द्वारा भी जलियांवाला बाग के रिनोवेशन को इतिहास के साथ छेड़छाड़ बताया जा रहा है। यहां लाइट एंड साउंड शो को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
रिनोवेशन के तहत जनरल डायर ने जिस गलियारे से प्रवेश कर गोलियां आदेश दिया था किया था उसे भी आधुनिक स्वरूप दे दिया गया है। वहीं गोलियों से बचने जिस कुएं में लोगों ने छलांग लगा दी थी उसे भी पारदर्शी अवरोध से कवर कर दिया गया है। इस रिनोवेशन को इतिहास और विरासत को सजेहना नहीं बल्कि मिटाना बताया जा रहा है-
इतिहासकार इरफ़ान हबीब और किम वैगनर ने भी इस पर सवाल उठाया है-
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इसे शहीदों का अपमान बताया था अब कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा है कि पता यह लगाना चाहिए। जालियाँवाला कांड का जश्न मनाने का आइडिया किसका था ?
गौरतलब है कि ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में करीब 1,000 से ज्यादा भारतीयों का नरसंहार किया था। अंग्रेज सरकार द्वारा लाये गए रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में सभा बुलाई गई थी और उस सभा में में ही जनरल डायर ने ब्रिटिश सैनिकों को शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे पुरुषों और महिलाओं पर गोली चलाने का आदेश दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जलियांवाला बाग में चार नई गैलरी और पुनर्निर्मित स्मारक का उद्घाटन किया था। पुनर्निर्मित स्मारक में चार संग्रहालय दीर्घाएं निर्मित की गई हैं। ये दीर्घाएं विशेष ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं। साउंड एंड लाइट शो से जालियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को घटित विभिन्न घटनाक्रमों को दर्शाया जा रहा है।