कोरोनाकाल: व्यवसायियों ने की किसानों से ज्यादा आत्महत्या, 8 साल में बढ़े 7.6 करोड़ गरीब
एनसीआरबी के आंकड़ों से खुलासा, बीते साल व्यवसाय से जुडे लोगों की आत्महत्या की संख्या किसानों से भी ज्यादा।
Ashok Chaturvedi
नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) व्यवसायिक गतिविधियों पर कोरोना महामारी के असर को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। बीते साल व्यवसाय से जुडे लोगों की आत्महत्या की संख्या किसानों से भी ज्यादा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2020 के आंकड़ों से यह खुलासा हुआ है। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक बीते आठ सालों में देश में गरीबों की संख्या में करीब सात करोड़ 60 लाख का इजाफा हुआ है।
व्यवसाय से जुडे आत्महत्या के आंकड़ों में एक बात और चौंकाने वाली है। इन आत्महत्याओं में से करीब 40 प्रतिशत विकसित राज्य कहे जाने वाले कर्नाटक तमिलनाडु और महाराष्ट्र से हैं। कर्नाटक में व्यवसाय से जुड़े 1610 लोगों ने आत्महत्या की है। जो देश भर में सबसे ज्यादा है।
दूसरी ओर भारत में पिछले आठ सालों में गरीबों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जर्मनी के बोन में स्थित आईजेडए इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (IZA Institute of Labour Economics) के फेलो रिसर्च संतोष मेहरोत्रा और उनके साथी जजती केशरी परिदा की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक 7 करोड़ 60 लाख लोग और गरीबी की लिस्ट में जुड़ चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में गरीबों की संख्या में इतनी तेज वृद्धि पहली बार देखी जा रही है।
बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट में जो डाटा लिया गया है वो कोरोना महामारी के प्रारंभिक दौर का है। यानि कोरोना से पहले ही इस संख्या में वृद्धि हो चुकी थी। प्रोफेसर संतोष ने कहा कि हम प्रति व्यक्ति खपत व्यय के सरकार के अपने माप के आधार पर गरीबी के आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। हमारे देश में मेरे हिसाब से अगर हम सरकारी गरीबी रेखा के पैमाने को मानकर चलते हैं, तो उसके हिसाब से 2012 में जितने गरीब थे, उससे साढ़े सात करोड़ गरीबों की संख्या बढ़ गई है। मतलब पिछले आठ सालों में हर साल लगभग एक करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ रहे थे।